इंदौर। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव व इंदौर 1 विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। विजयवर्गीय साल 1999 के एक अपराधिक मानहानि के मामले में फरार चल रहे हैं। इतना ही नहीं सोमवार को नामांकन दाखिल करते वक्त उन्होंने चुनावी हलफनामे में इस केस का जिक्र तक नहीं किया है। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।



चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों को उनके खिलाफ लंबित सारे आपराधिक मामलों के रिकॉर्ड देने के निर्देश दिए थे। विजयवर्गीय के विरुद्ध भी महिला से गैंगरेप से लेकर जान से मारने की धमकी जैसे कई संगीन मामले दर्ज हैं। छत्तीसगढ़ के दुर्ग कोर्ट ने तो वारंट जारी कर रखा है और विजयवर्गीय फरार हैं। सोमवार को नामांकन दाखिल करते समय उन्होंने आयोग को जो शपथ पत्र दिया उसमें बताया कि पश्चिम बंगाल में उनके खिलाफ पांच प्रकरण दर्ज हैं।



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आपराधिक प्रकरण की जानकारी में विजयवर्गीय ने एक विशेष टिप्पणी लिखी है जिसमें उन्होंने लिखा है, 'भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव होने के चलते मैंने देश में कई चुनाव दौरे किए हैं। ऐसे में राजनीतिक व्यस्तता के कारण मेरे खिलाफ कोई शिकायत या जांच हो जिसकी मुझे जानकारी नहीं है इसकी संभावनाएं हैं।' माना जा रहा है कि फरारी वाले केस को छिपाने के लिए विजयवर्गीय ने यह टिप्पणी लिखी है। कैलाश विजयवर्गीय ने जिन पांच प्रकरणों की जानकारी दी है उन्हें 2018 से 2020 के बीच का बताया है। इसमें उनके खिलाफ तीन केस धार्मिक भावनाएं भड़काने के भी दर्ज हैं।



बता दें कि छत्तीसगढ़ के दुर्ग में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने विजयवर्गीय को फरार घोषित कर 2019 में स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। मामले में शिकायतकर्ता कनक तिवारी ने बताया कि वे 1995 से 1998 तक तत्कालीन मध्य प्रदेश के हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष थे। 1998 के अंत में, बोर्ड के इंदौर कार्यालय के तीन कर्मचारियों ने उनपर रिश्वत मांगने का आरोप लगाया कि करीब डेढ़ महीने पहले ही उन्हें निलंबित कर दिया गया था और उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई थी। इसी मामले में विजयवर्गीय ने मीडिया में बयान जारी कर कनक तिवारी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।





कनक तिवारी के मुताबिक, 'मैंने उन्हें नोटिस भेजा और कहा कि अगर वे माफी नहीं मांगते तो मैं कानूनी कार्रवाई शुरू करूंगा। लेकिन उन्होंने माफ़ी नहीं मांगी। जैसे ही मेरा कार्यकाल समाप्त हुआ, मैं 1999 में अपने गृहनगर दुर्ग लौट आया जहाँ, मैंने उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया। 20 साल तक अदालत ने उन्हें बुलाने की कोशिश की और वारंट जारी किए गए लेकिन वे पेश नहीं हुए। अंततः नवंबर 2019 में अदालत ने उन्हें फरार घोषित कर दिया और स्थायी वारंट जारी किया।'