मध्य प्रदेश के आर्थिक अपराध विंग ने 100 करोड़ के कृषि उपकरण घोटाले की जांच शुरू कर दी है। इस संबंध में विंग ने हॉर्टी-कल्चर और खाद्य प्रसंस्करण विभाग से कई पहलुओं पर जानकारी मांगी है। घोटाला किसानों को कृषि यंत्रों की खरीद में मिलने वाली सब्सिडी से जुड़ा है, जिसमें अधिकारियों और डीलरों की मिलीभगत बताई जा रही है। यह योजना 2011-12 में शुरू हुई थी। उद्यानिकी विभाग से तब से लेकर अब तक इस योजना का लाभ पा चुके किसानों, उनके द्वारा खरीदे गए कृषि यंत्रों, यंत्रों के मॉडल, कीमत, भुगतान और सब्सिडी की जानकारी मांगी गई है। 

आरोप है कि उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने ना केवल खराब गुणवत्ता वाले कृषि यंत्रों के बाजार से अधिक कीमत के बिल को मंजूरी दी बल्कि सब्सिडी का पैसा किसानों के खातों में भेजने की जगह डीलरों के खाते में डाल दिए। जबकि योजना के तहत सब्सिडी का पैसा किसानों के खाते में आना चाहिए ताकि वे अपनी मर्जी के मुताबिक कृषि यंत्र खरीद सकते हैं। योजना के तहत कृषि यंत्र खरीदने के लिए किसानों को 50 फीसदी सब्सिडी मिलती है। 

आर्थिक अपराध विंग के इंस्पेक्टर पंकज गौतम ने बताया, "हमने इस योजना से जुड़ी पिछले आठ साल की सारी जानकारियां उद्यानिकी विभाग से मांगी हैं। हमने यह जानकारी भी मांगी है कि कृषि यंत्रों की सरकारी खरीद किस तरह से की गई और उन्हें किसानों को किस तरह से दिया गया। हम इस मामले की पूरी जांच करेंगे। घोटाले की रकम का निर्धारण जांच के दौरान ही हो पाएगा।"

दरअसल, यह पूरा मामला तब प्रकाश में आया जब मंदसौर जिले के एक किसान मुकेश पाटीदार ने इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई। मुकेश ने अगस्त में उद्यानिकी विभाग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि किसानों को कृषि यंत्र यांत्रीकरण योजना के नियमों की अनदेखी करते हुए दिए गए हैं। 

उन्होंने अपनी शिकायत में कहा कि विभाग ने किसानों को 50 फीसदी सब्सिडी देने की जगह पैसा सीधे डीलरों को दे दिया। साथ ही विभाग ने किसानों को चीन में निर्मित खराब गुणवत्ता वाले कृषि यंत्र दिए। शिकायत में कहा गया कि इन खराब गुणवत्ता वाले यंत्रों को बाजार की कीमत से कहीं अधिक दामों पर खरीदा गया। इस तरह से इस योजना में अब तक 100 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है। 

उद्यानिकी विभाग ने किसान की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए मामले को आर्थिक अपराध विंग को ट्रांसफर कर दिया। साथ ही अपनी रिपोर्ट भी दी। जिसमें कहा गया कि जो यंत्र किसानों को दिए गए हैं वो योजना के अनुरूप गुणवत्ता पर खरे नहीं उतरते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस योजना के तहत जो भी पैसा आवंटित किया गया, वो नकद के रूप में दिया गया जिससे खरीद प्रक्रिया में अनियमितताएं सामने आईं।