भोपाल। मध्य प्रदेश में महापौर और नगर निकाय अध्यक्ष चुनाव अब अप्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे। यानी अब महापौर और निगम अध्यक्ष डायरेक्ट जनता द्वारा नहीं चुने जाएंगे, बल्कि निर्वाचित पार्षदों को अब उनका चुनाव करना होगा। राज्य निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है। कांग्रेस ने इस आदेश को लेकर कहा है कि खरीद फरोख्त की नीयत से शिवराज सरकार अब अप्रत्यक्ष प्रणाली पर लौटी है।



राज्य निर्वाचन आयुक्त बसंत प्रताप सिंह ने नगरी निकाय चुनाव की तैयारियों को लेकर आज बैठक ली थी। इस दौरान सिंह ने निकाय चुनाव की तैयारियां पूरी करने के निर्देश दिए। उन्होंने बताया कि नगरीय निकाय चुनाव पहले होंगे। इसके बाद पंचायत चुनाव कराए जाएंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यदि कोरोना वायरस की तीसरी लहर नहीं आती है या फिर उतनी भयावह नहीं होती है तो इस साल सितंबर-अक्टूबर में चुनाव करा लिए जाएंगे।



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मामले पर कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह ने पूछा है कि कमलनाथ सरकार के दौरान बीजेपी ने इस फैसले का विरोध क्यों किया था? सिंह ने ट्वीट किया, 'कांग्रेस सरकार द्वारा महापौर/अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष करवाने का विरोध करने वाली बीजेपी की सरकार में महापौर/अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष होगा। फिर भाजपा ने विरोध क्यों किया था ???' 





दरअसल, साल 2015 तक महापौर-अध्यक्ष के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होते रहे हैं, लेकिन तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने का फैसला लिया था। इस फैसले को बीजेपी ने उस दौरान लोकतंत्र की हत्या करार दी थी। साथ ही बीजेपी नेता इस फैसले के खिलाफ राज्यपाल से मिलने भी पहुंचे थे। हालांकि, अब खुद बीजेपी भी वही प्रणाली अपनाने वाली है जिसे कमलनाथ सरकार ने लागू करने का निर्णय लिया था।



बीजेपी सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा ने भी निशाना साधा है। उन्होंने आरोप लगाया है कि बीजेपी खरीद फरोख्त की नीयत से अप्रत्यक्ष प्रणाली पर आई है। बीजेपी को पता है कि कांग्रेस के खिलाफ सीधा चुनाव लड़ा को दमोह विधानसभा जैसे परिणाम आएंगे।