भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर से पत्रकारों और मीडिया से जुड़े लोगों पर मेहरबान हैं। सीएम ने आदेश जारी कर प्रदेश के 10 पत्रकारों को राजधानी भोपाल में बंगला अलॉट किया है। यह बंगले प्रेस पूल योजना के अंतर्गत तीन साल के लिए किराए पर दिए गए हैं। बता दें कि इसके पहले से ही प्रेसपूल योजना के तहत मध्य प्रदेश में लगभग 210 पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को सरकारी बंगले मिले हुए हैं।

राज्य सरकार द्वारा बीते 4 दिसंबर को जारी आदेश के मुताबिक बंगला पाने वाले पत्रकारों में नया इन्डिया के जगदीप सिंह, न्यूज़ 18 के शरद श्रीवास्तव, अग्निबाण के रामेश्वर धाकड़, आईएनडी-24 के सुनील श्रीवास्तव, आईबीसी-24 के सुधीर दंडोतिया, डिजियाना के अश्विनी कुमार मिश्र, पीपुल्स समाचार के संतोष चौधरी, टीवी-9 भारतवर्ष के मकरंद काले, ज़ी न्यूज़ के विवेक पटैय्या और नवदुनिया के धनंजय प्रताप सिंह शामिल हैं।

सीएम ने बांटा उपचुनाव में प्रचार का मेहनताना

सरकार द्वारा चुनिंदा दस पत्रकारों को बंगला दिए जाने को कई पत्रकार उप-चुनाव में प्रचार का मेहनताना बता रहे हैं। राजधानी के युवा स्वतंत्र पत्रकार सुहृद तिवारी का कहना है कि सरकार ने बंगला देने के लिए जिन 10 पत्रकारों का चयन किया है वह पत्रकार कम और प्रवक्ता ज्यादा हैं। उनके लिखने और बोलने के अंदाज से कोई भी व्यक्ति बता सकता है कि यह किस पार्टी के प्रवक्ता है। ऐसे में मैं मानता हूं कि सरकार ने पत्रकारों को बंगला नहीं दिया है, बल्कि उपचुनाव में प्रचार करने वाले कार्यकर्ताओं को मेहनताना दिया है।

न्यूज़ क्लिक के मध्य प्रदेश चीफ काशिफ काकवी ने भी शिवराज सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, 'सीएम शिवराज के कार्यालय में अक्सर यही देखने को मिला है कि पत्रकारिता का चोला ओढ़े लोग सरकारी सुविधाओं का दोहन करते हैं। वास्तविक पत्रकारों को कभी इस तरह की सुख सुविधाएं नहीं दी जाती। मेरा मानना है कि वास्तविक पत्रकार सरकारी बंगले और गाड़ी के मोहताज नहीं होते।

बता दें कि शिवराज सरकार पर हमेशा से अपने करीबियों और सरकार के पक्ष में स्पॉन्सर्ड खबरें छापने वाले पत्रकारों को बंगलाबांट योजना के तहत लाभ देने का आरोप लगता रहा है। इतना ही नहीं शिवराज ने कमलनाथ सरकार के दौरान जिन पत्रकारों को बंगला अलॉट किया गया था उस आदेश को रद्द भी कर दिया है।

प्रेस पूल के नियमों के अनुसार उन्हीं पत्रकारों को सरकारी बंगले दिए जाने चाहिए जिनके खुद के नाम पर या उनके परिवार के किसी व्यक्ति के नाम पर भोपाल नगर निगम की सीमा में घर नहीं हो। पत्रकारों को यह आवास सिर्फ तीन साल के लिए आवंटित होते हैं। नियमों के अनुसार अगर कोई पत्रकार पत्रकारिता छोड़ चुका है या भोपाल छोड़ कर जा चुका है तो उसे सरकारी आवास खाली करना अनिवार्य है।

नियम यह भी कहते हैं कि पत्रकारों की वरिष्ठता के आधार पर एक फेहरिस्त बनाकर एक उच्च स्तरीय समिति के सामने पेश की जानी चाहिए, जिसके बाद उच्चस्तरीय समिति जनसम्पर्क विभाग की राय लेने की बाद ही सरकारी बंगले पत्रकारों को आवंटित कराएगी। लेकिन आरोप है कि दरअसल ये नियम-कायदे सिर्फ कागजों तक सीमित हैं।