भोपाल। मध्य प्रदेश में होने वाले आगामी नगरीय निकाय चुनाव को लेकर एक बड़ी खबर सामने आई है। अब नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से करवाए जाएंगे। यानी अब नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्षों का चुनाव सीधे पहले की तरह जनता करेगी।

दरअसल, साल 2018 में कमलनाथ सरकार बनने के बाद प्रत्यक्ष की जगह अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू कर दी गई थी, जिसके बाद अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली के तहत पार्षदों के माध्यम से हुआ था। लेकिन मध्य प्रदेश की कई नगर पालिका-परिषदों में मौजूदा अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की बात सामने आ रही है, ऐसे में सरकार ने अब कमलनाथ सरकार के समय लिया गया फैसला पलटने का मन बना लिया है।

मोहन सरकार ने इस बदलाव को अमल में लाने के लिए जल्द ही एक अध्यादेश लाएगी, जिसके तहत अब नगरीय निकायों में प्रत्यक्ष प्रणाली लागू होगी। इसका अर्थ है कि अब नागरिक अपने नगर परिषद या नगर पालिका अध्यक्ष के लिए सीधे वोट करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे महापौर का चुनाव किया जाता है। सरकार का तर्क है कि इस प्रणाली को लेकर समय-समय पर विवाद उठते रहे हैं, खासकर पार्षदों की खरीद-फरोख्त और धनबल के दुरुपयोग के आरोपों को लेकर, इसलिए प्रत्यक्ष प्रणाली सही रहती है क्योंकि इसमें सीधे जनता अपना नगर पालिका-परिषद का अध्यक्ष चुनती है, इसलिए एमपी में यह प्रणाली फिर से लागू होने वाली है।

सरकार का मानना है कि प्रत्यक्ष प्रणाली लागू होने से लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी और पारदर्शिता बढ़ेगी, पार्षदों की खरीद-फरोख्त, दबाव की राजनीति और भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सकेगी, जबकि आम मतदाता को अपने नेता को चुनने का सीधा हक मिलने से जनता और प्रतिनिधि के बीच जवाबदेही भी बढ़ेगी।

इतना ही नहीं, सरकार ने अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से जुड़े नियमों में भी बदलाव किया है, अब किसी नगर परिषद या नगर पालिका अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की न्यूनतम अवधि को 3 साल से बढ़ाकर 4.5 साल कर दिया गया है। इसका सीधा असर यह होगा कि अध्यक्षों को कार्यकाल के अधिकतर समय तक स्थिरता मिलेगी और वे बिना राजनीतिक अस्थिरता के अपना कार्यकाल पूरा कर सकेंगे।