मुंबई। महाराष्ट्र के मालेगांव ब्लास्ट मामले में बीजेपी नेत्री प्रज्ञा ठाकुर व अन्य की मुश्किलें खत्म होती नजर नहीं आ रही है। मामले में मृतकों के छह परिजनों ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इन परिवारों ने विशेष एनआईए अदालत के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सात आरोपियों को बरी कर दिया गया था।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 31 जुलाई को एनआईए कोर्ट द्वारा दिया गया बरी करने का आदेश गलत और कानून के खिलाफ है। इसलिए इसे खारिज किया जाना चाहिए। पीड़ित परिवारों ने दलील दी है कि अदालत ने सबूतों को नजरअंदाज किया और दोषियों को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया। निसार अहमद सैयद बिलाल और पांच अन्य लोगों ने अपने वकील मतीन शेख के माध्यम से हाई कोर्ट में अपील की है। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया है कि विशेष अदालत ने जो फैसला दिया है, उसे रद्द कर दिया जाए। 

बता दें कि इस मामले में फैसला सुनाते हुए NIA कोर्ट ने कहा था कि मात्र संदेह वास्तविक सबूत की जगह नहीं ले सकता। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि किसी भी सबूत के अभाव में आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि कुल मिलाकर सभी साक्ष्य अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए विश्वसनीय नहीं हैं। दोषसिद्धि के लिए कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं है।

NIA कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि प्रॉसिक्यूशन ने ये तो साबित कर दिया कि मालेगांव में धमाका हुआ था, लेकिन वे ये साबित करने में नाकाम रहे कि बाइक में बम प्लांट किया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नही किया गया और घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं किए गए। बाइक का चेसिस नंबर भी कभी रिकवर नहीं हुआ। प्रज्ञा ठाकुर उस बाइक की मालिक थी, यह भी सिद्ध नही हो पाया।

बता दें कि 29 सितंबर 2008 को मालेगांव ब्लास्ट हुए थे। इस धमाके में 6 लोगों की मौत हुई थी। करीब 101 लोग जख्मी हुए थे। इस ब्लास्ट के पीछे हिंदू राइट विंग ग्रुप्स से जुड़े लोगों का हाथ होने की बात सामने आई थी। इस केस की शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की थी। 2011 में केस एनआईए को सौंप दिया गया। 2016 में एनआईए ने चार्जशीट दायर की। इस मामले में 3 जांच एजेंसियां और 4 जज बदल चुके हैं। साथ ही 323 गवाहों में से 32 ने कथित तौर पर दबाव में आकर अपने बयान वापस ले लिए थे।

17 साल से चल रहे इस मामले की दलीलें पूरी होने के बाद अप्रैल 2025 में NIA की ओर से आखिरी लिखित दलील दायर की गई थी। NIA द्वारा दायर की गई 1,500 से अधिक पृष्ठ लंबी इस दलील में सभी सात आरोपियों पर व्यापक साजिश के तहत विस्फोट की साजिश रचने और उसे अंजाम देने का आरोप लगाया गया था। NIA ने मुंबई के स्पेशल कोर्ट से 2008 के इस मामले में प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी सात आरोपियों को मौत अथवा आजीवन कारावास की सजा देने की मांग है। हालांकि, 31 जुलाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सबूतों के अभाव में सभी को बरी कर दिया।