नई दिल्ली। दिल्ली की एक कोर्ट ने राजद्रोह कानून के इस्तेमाल को लेकर तल्ख टिप्पणी की है। पटियाला हाउस कोर्ट ने कहा है कि विरोधियों को चुप कराने के लिए राजद्रोह जैसे कानून का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सरकार के हाथ में राजद्रोह का कानून एक ताकतवर औजार है, लेकिन इसका इस्तेमाल उपद्रवियों को शांत कराने के नाम पर असहमति को दबानेे के लिए नहीं किया जा सकता है।

किसान आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया पर फेक वीडियो पोस्ट कर अफवाह फैलाने और राजद्रोह करने के दो आरोपियों को जमानत देते हुए एडीशनल सेशंस जज धर्मेंद्र राना ने यह टिप्पणी की है। कोर्ट ने मामले में देवीलाल बुड़दाक और स्वरूप राम को जमानत दे दी है। इन दोनों दोनों को इसी महीने दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। आरोप है कि इन्होंने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया था कि किसानों के समर्थन में दिल्ली के 200 पुलिसवालों ने इस्तीफा दे दिया है। 

कोर्ट ने कहा कि समाज में शांति और लॉ ऐंड ऑर्डर को बरकरार रखने के उद्देश्य से राजद्रोह का कानून सरकार के हाथ में एक ताकतवर औजार है लेकिन इसका इस्तेमाल असंतुष्टों को चुप करने के लिए नहीं किया जा सकता। न्यायाधीश ने 15 फरवरी को दिये गए अपने आदेश में कहा, 'जाहिर तौर पर, कानून ऐसे किसी भी कृत्य का निषेध करता है जिसमें हिंसा के जरिये सार्वजनिक शांति को बिगाड़ने या गड़बड़ी फैलाने की प्रवृत्ति हो।' 

दरअसल, बुड़दाक ने अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो डाला था और उसके साथ कैप्शन दिया था कि, 'दिल्ली पुलिस में बगावत, करीब 200 पुलिसकर्मियों ने सामूहिक इस्तीफा दिया। जय जवान, जय किसान। आई सपोर्ट राकेश टिकैत।' हालांकि, पोस्ट किया गया वीडियो एक ऐसी घटना से संबंधित था जिसमें दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी प्रदर्शन स्थल पर पुलिस कर्मियों को ब्रीफ कर रहे हैं और साथ ही उन्हें स्थिति से निपटने के लिए प्रोत्साहित करते हुए नजर आ रहे हैं।

मामले की जांच कर रहे अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि आवेदक ने ये पोस्ट खुद नहीं तैयार किया था। उसने तो सिर्फ इसे फॉरवर्ड किया था। अदालत ने दोनों आरोपी व्यक्तियों को 50-50 हजार दो मुचलकों पर जमानत दे दी दिया है।