नई दिल्ली। केंद्र सरकार और आंदोलन कर रहे किसानों के बीच जल्द किसी समझौते की उम्मीद कमज़ोर पड़ती जा रही है। दोनों के तेवर देखकर तो फिलहाल यही लग रहा है। केंद्र सरकार के सूत्रों के हवाले से अब मीडिया में दावा किया जा रहा है कि किसान आंदोलन में अतिवादी हिंसक ताकतों का कब्ज़ा होता जा रहा है। खबर है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐसी आशंकाओं के चलते पुलिस और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े आला अधिकारियों के साथ उच्च स्तरीय बैठक की है। चिंता की बात यह भी है कि ऐसी खबरों को किसान अपने आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश के तौर पर देख रहे हैं, जिससे देश के अन्नदाता और सत्ता पर काबिज़ हुक्मरानों के बीच अविश्वास की खाई और गहरी हो रही है।

कथित सरकारी सूत्रों के हवाले से चलाई जा रही खबरों में दावा किया जा रहा है कि किसान आंदोलन को अल्ट्रा लेफ्ट यानी हिंसक क्रांति का समर्थन करने वाले तत्वों ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की हाईलेवल बैठक में इस मसले पर विचार किए जाने की बात भी कही जा रही है। बताया जा रहा है कि अमित शाह ने शुक्रवार को वरिष्ठ पुलिस और  सुरक्षा अधिकारियों के साथ बैठक की, जिसमें दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन में किसी भी तरह की हिंसा को रोकने के तरीकों पर चर्चा की गई।

मीडिया रिपोर्ट्स में सरकारी सूत्रों के हवाले से यह दावा भी किया जा रहा है कि केंद्र सरकार को इंटेलिजेंस इनपुट मिला है कि किसान आंदोलन को अल्ट्रा लेफ्ट ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। ऐसी खबरों में जिन सरकारी सूत्रों का हवाला दिया जा रहा है उन्हें किसान आंदोलन और भीमा कोरेगांव में भी समानता दिख रही है। सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में आंदोलन के दौरान आगज़नी और तोड़फोड़ भी हो सकती है। उनका दावा है कि किसानों को दिल्ली-जयपुर हाईवे जाम करने के लिए ऐसे ही तत्व उकसा रहे हैं। इन कथित सरकारी सूत्रों का दावा है कि माओवादी ताकतें इस आंदोलन में शामिल हैं, जिनका उद्देश्य राजधानी में हिंसा करना है।

हालांकि दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों ने कथित सरकारी सूत्रों के हवाले से किए जा रहे इन दावों को पूरी तरह खारिज़ किया है। किसान संगठन अपने आंदोलन में माओवादी तत्वों के प्रवेश करने और हिंसा-आगजनी की आशंका के खुफिया इनपुट को खारिज करते हुए इसे आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश और सरकार के इशारे पर किया जा रहा दुष्प्रचार बता रहे हैं। किसान संगठनों ने कहा है कि यह इनपुट सिर्फ एक बकवास है। कीर्ति किसान संगठन के प्रमुख रमिंदर सिंह पटियाल ने कहा, 'हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण और गैर राजनीतिक है। यह सब केंद्र सरकार का दुष्प्रचार है ताकि हमें बदनाम किया जा सके। हमारे सारे फैसले संयुक्त किसान यूनियन के जरिये लिए जाते हैं। सरकार अपना प्रोपेगैंडा बंद करे।'

हाल ही में सरकार ने नए कृषि कानून को किसानों का उद्धारक बताने के लिए देश में युद्ध स्तर पर जो प्रचार अभियान छेड़ने का एलान किया है, वो भी खाई को पाटने की जगह बढ़ाने वाला ही कदम है। क्योंकि किसान इसे भी आंदोलन विरोधी प्रचार के तौर पर ही देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि सरकार इस प्रचार के जरिए यह बताने की कोशिश कर रही है कि जो लाखों किसान इस सर्दी में अपने घरबार छोड़कर सड़कों पर डटे हैं, वो या तो कुछ जानते समझते नहीं हैं या फिर गुमराह हैं। जबकि किसान संगठनों का साफ कहना है कि वो नए कृषि कानूनों के प्रावधानों को अच्छी तरह जानने समझने की वजह से ही उनका इतना विरोध कर रहे हैं।