नई दिल्ली। देश की राजधानी से इस समय बड़ी खबर सामने आ रही है। किसानों ने एक साल से ज्यादा समय से चल रहे अपने आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया है। आंदोलनकारी किसान 11 दिसंबर को घर वापसी करेंगे। केंद्र की मोदी सरकार ने किसानों की सभी मांगें मान ली है। दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों में जश्न का महौल है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्र सरकार की ओर से सभी मांगें माने जाने के बाद किसान संगठनों ने आज शाम 5: 30 बजे फतह अरदास (victory prayer) करेंगे। साथ ही 11 दिसंबर को सिंघु और टिकरी धरना स्‍थल पर फतह मार्च की योजना बनाई गई है।  आंदोलन खत्‍म करने के बाद आगामी 15 दिसंबर को किसान नेता अमृतसर में स्‍वर्ण मंदिर जाकर मत्‍था टेकेंगे। 

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इसके पहले आज दोपहर केंद्र सरकार ने किसानों को पत्र लिखकर सभी मांगें मानने की जानकारी दी थी। केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पत्र में बताया गया कि, 'एमएसपी के लिए जो कमेटी बनेगी उसमें संयुक्त मोर्चा के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। इसके अलावा किसानों पर दर्ज सभी एफआईआर वापस होगा।' सरकार ने आंदोलन के दौरान जान गंवाने वालों को मुआवजा देने को लेकर कहा है कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। सरकार ने बिजली बिल और पराली जलाने के मुद्दे पर भी किसानों की मांग स्वीकार कर लिया है। 

सरकार के इस प्रस्ताव से किसान नेता संतुष्ट हैं, और उन्होंने आंदोलन वापस लेने का निर्णय लिया है। फिलहाल बॉर्डर पर आंदोलनरत किसान जीत का जश्न मनाएंगे और 11 दिसंबर से घर जाना शुरू करेंगे। केंद्र के इस फैसले किसान नेता बलबीर राजेवाल ने कहा कि 'हम अहंकारी सरकार को झुकाकर जा रहे हैं। हालांकि, यह मोर्चे का अंत नहीं है। हमने इसे स्थगित किया है। 15 जनवरी को फिर संयुक्त किसान मोर्चा की फिर मीटिंग होगी और हम आंदोलन की समीक्षा करेंगे। मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने हमारा इस लंबी लड़ाई में समर्थन दिया है।'

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किसान 26 नवंबर 2020 को आंदोलन पर बैठे। नवंबर की कड़कड़ाती ठंड, फिर जून के लू के थपेड़े और मॉनसून का मूसलाधार बारिश सबकुछ सहन करते हुए दिल्ली बॉर्डर पर किसानों ने अपने सत्याग्रह को जारी रखा और आज 9 दिसंबर को वह क्षण आया जब उनके ऐतिहासिक आंदोलन की जीत हुई।

आंदोलन के दौरान देश सबसे भीषण कोरोना आपदा का भी गवाह बना लेकिन जान की परवाह किए बगैर किसान अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए डटे थे। यह कल्पना कर पाना भी बेहद मुश्किल है कि एक-एक दिन किसानों ने कितने दुःख और तकलीफ से काटे होंगे। इस आंदोलन में 700 से अधिक किसानों को जान गंवाना पड़ा। लेकिन सत्याग्रह की ताकत ने सरकार को न सिर्फ विवादित कानूनों को रद्द करने बल्कि किसानों के सभी मांगों को मानने पर मजबूर कर दिया।