गिरफ्तारी के तीन साल बाद जेल से बाहर आई एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज, भीमा कोरेगांव मामले में मिला डिफॉल्ट बेल

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में अगस्त  2018 में गिरफ्तार हुई थी सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, NIA कोर्ट ने लगाई सख्त जमानत शर्तें, मुंबई से बाहर जाने की अनुमति नहीं

Updated: Dec 09, 2021, 09:57 AM IST

मुंबई। भीमा कोरेगांव मामले में पिछले 3 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद सोशल एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज आखिरकार आज मुंबई के भायखला जेल से बाहर आ गई हैं। करीब 1200 से ज्यादा दिन जेल की यातना सहकर निकलीं सुधा भारद्वाज के चेहरे पर इस दौरान राहत के भाव स्पष्ट झलक रहे हैं। सुधा को कोर्ट ने 50 हजार रुपए के नगद मुचलके पर डिफॉल्ट जमानत दिया है। साथ ही NIA कोर्ट में जमानत की कई सख्त शर्तें भी रखी है।

स्पेशल NIA कोर्ट ने भारद्वाज पर जो जमामत कि शर्तें थोपी है उसके मुताबिक वह बगैर अनुमति लिए मुंबई से बाहर नहीं जा सकेंगी। न्यायालय ने उनका पासपोर्ट भी जमा करवा लिया है। इसके अलावा भारद्वाज को उस तरह की किसी गतिविधि में शामिल न होने की हिदायत भी दी है। इतना ही नहीं उनके मीडिया से बातचीत करने पर भी पाबंदी लगाई गई है। साथ ही उन्हें अपने घर का पता, फोन नंबर, उनके साथ रहने वाले लोगों का विवरण देने और सुनवाई के दौरान न्यायालय में मौजूद रहने के लिए कहा गया है।

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सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज सहित अन्य आरोपियों को जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले में गिरफ्तार किया गया था। यह गिरफ्तारियां जून से अगस्त 2018 के बीच हुई थीं। सुधा भारद्वाज को अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था। सामाजिक कार्यकर्ता पर प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) का सदस्य होने का भी आरोप लगाया गया था।

सुधा भारद्वाज ने इसी साल जुलाई महीने में डिफॉल्ट बेल के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया था। सुधा भारद्वाज की ओर से कोर्ट में यह दलील दी गई थी कि गिरफ्तारी के नब्बे दिनों के भीतर उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं की गई। इसलिए वे डिफॉल्ट जमानत पाने की हकदार हैं। जिसके बाद उन्हें जमानत मिली और आखिरकार वह जेल से बाहर आईं। भारद्वाज उन 16 कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों में पहली आरोपी हैं, जिन्हें तकनीकी खामी के आधार पर जमानत दी गई है।

क्या है भीमा कोरेगांव का मामला

दरअसल, हर साल जब 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगांव में जमा होते है। वो यहां 'विजय स्तम्भ' के सामने सम्मान प्रकट करते हैं। इसी जश्न के दौरान साल 2018 में दलितों और मराठों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। पुलिस का आरोप है कि यहां हिंसा भड़काने में सामाजिक कार्यकर्ताओं का हाथ है। इस मामले में वरवर राव, सुधा भारद्वाज, रोना विल्सन और अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वेरनॉन गोन्जाल्विस जैसे एक्टिविस्टों और बुद्धिजीवियों को आरोपी बनाया गया। 

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खास बात यह है कि उद्धव ठाकरे सरकार के आने के बाद इस मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई। अब एक रिपोर्ट से पता चल रहा है कि जिन दस्तावेजों की बदौलत इन सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ देशद्रोह समेत कई संगीन धाराओं में मामले दर्ज किए, वे दरअसल फर्जी और प्लांटेड थे। भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का इसी साल जुलाई महीने में बीमारी के चलते निधन हो गया था। स्टेन स्वामी को पिछले साल दिसंबर 2017 में एलगार परिषद के कार्यक्रम में दिए गए उनके बयान को लेकर गिरफ्तार किया गया था। जेल में कैद होने के बाद अस्सी वर्षीय स्टेन स्वामी की तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई और उन्होंने दम तोड़ दिया।