नई दिल्ली। युवती से गैंगरेप मामले में बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की मुश्किलें बढ़ गई है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विजयवर्गीय और उनके दो साथियों के खिलाफ रेप केस में जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट को अग्रिम जमानत वाली याचिका पर विचार करने की अनुमति दी है लेकिन आपराधिक मामले पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया है।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा है कि अगली सुनवाई यानी 16 नवंबर तक आरोपियों को गिरफ्तारी से सुरक्षा दी जाए। यानी 16 नवंबर तक विजयवर्गीय को गिरफ्तार न किया जाए। न्यायालय ने कहा है कि मामले में पीड़िता की भी सुनवाई जरूरी है। सुनवाई के दौरान विजयवर्गीय के वकील ने दावा किया कि शुरूआत में यौन शोषण के आरोप नहीं थे। यौन शोषण के आरोपों को बाद में जोड़ा गया है। इसपर बंगाल सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि इसपर वे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं, यह अदालत पर छोड़ते हैं।

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दरअसल, पीड़िता का आरोप है कि विजयवर्गीय ने उसे अपने फ्लैट पर बुलाया था। जहां उनके अलावा 2 और लोगों ने एक के बाद एक उसके साथ बलात्कार की घटना को अंजाम दिया। इसके बाद असहाय अवस्था में फ्लैट से जाने के लिए मजबूर किया गया। महिला के मुताबिक गैंगरेप में विजयवर्गीय के साथ आरएसएस के स्वयंसेवक जिष्णु बसु और प्रदीप जोशी शामिल थे।

इतना ही नहीं पीड़ित महिला ने यह बताया है कि उस घटना के बाद कई मौकों और विभिन्न जगहों पर 39 बार से ज्यादा उसे शारीरिक प्रताड़ना दी गई। महिला के मुताबिक कैलाश विजयवर्गीय और उनके साथियों ने उसे और उसके बेटे को जान से मारने की धमकी भी दी थी। पीड़ता ने 20 दिसंबर, 2019 को आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी हालांकि, पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की।

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पीड़िता ने 12 नवंबर, 2020 को FIR दर्ज कराने के लिए सीजेएम, अलीपुर से गुहार लगाई लेकिन वहां भी उसकी याचिका खारिज हो गई। पीड़िता ने फिर सीजेएम कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दिया। उच्च न्यायालय ने सीजेएम के फैसले को रद्द कर पुनर्विचार के लिए भेजा लेकिन सीजेएम ने दुबारा हाईकोर्ट के निर्देश को एफआईआर के लिए पर्याप्त मानने से इनकार कर दिया। पीड़िता के वकील के मुताबिक निचली अदालत में अपराध की गंभीरता को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई।