नई दिल्ली। केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान पिछले सत्रह दिनों में ग्यारह किसानों की मौत हो चुकी है। दिल्ली की भीषण ठंड में अपनी मांगों को लेकर खुले आसमान के नीचे प्रदर्शन करने वाले किसानों में 11 की मौत होने की जानकारी एक मीडिया रिपोर्ट में सामने आई है। जिसके बाद कांग्रेस ने मोदी सरकर को जमकर खरी-खोटी सुनाई है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला तक किसानों की मांगों को मानने की बजाय अपनी ज़िद पर अड़ी मोदी सरकार की असंवेदनशीलता पर बरस पड़े हैं। 



राहुल गांधी ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए ट्विटर पर सवाल किया है, 'कृषि क़ानूनों को हटाने के लिए हमारे किसान भाइयों को और कितनी आहुति देनी होगी?' 



 





 



राहुल ने इसके साथ जिस अखबार की खबर को साझा किया है उसमें उन सभी 11 किसानों के नाम, पते और तस्वीरें दी गई हैं, जिन्होंने प्रदर्शन के दौरान दम तोड़ दिया। इसमें लिखा है, '17 दिनों से जारी आंदोलन में सरकार और किसानों की वार्ता से समाधान की उम्मीदें गतिरोध में फंस चुकी हैं। टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर एक-एक करके अबतक 11 किसान आंदोलनकारी दम तोड़ चुके हैं।'



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इसमें आगे लिखा है कि 'किसी को पेट या सीने में दर्द तो किसी की हादसे में जान गई। सर्दी में आसमान तले बैठे लोग लगातार बीमार पड़ रहे हैं। धरने पर मौतों का यह सिलसिला रुकना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि किसान नेता और सरकार दोनों ही जल्द से जल्द गतिरोध से निकल समाधान की ओर बढ़े।'



"राजधर्म" बड़ा या "राजहठ"



किसानों की मौत को लेकर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला भी मोदी सरकार पर भड़क गए। उन्होंने पूछा है कि राजधर्म बड़ा है या राजहठ। सुरजेवाला ने ट्वीट किया, 'पिछले 17 दिनों में 11 किसान भाइयों की शहादत के बावजूद निरंकुश मोदी सरकार का दिल नहीं पसीज रहा। वह अब भी अन्नदाताओं के नहीं, अपने धनदाताओं के साथ क्यों खड़ी है? देश जानना चाहता है- “राजधर्म” बड़ा है या “राजहठ” ?'





इसके पहले राहुल गांधी ने एक ग्राफ साझा करते हुए लिखा था कि, 'किसान चाहता है कि उसकी आय पंजाब के किसान जितनी हो जाए। मोदी सरकार चाहती है कि देश के सब किसानों की आय बिहार के किसान जितनी हो जाए।' बिजनेड डुडे के इस ग्राफ में बताया गया था कि किस राज्य के किसानों की औसतन आय कितनी है। इसमें पंजाब के किसानों की औसत सालाना आया 2 लाख 16 हजार 708 रुपये बतायी गयी थी, जो देश में सबसे अधिक है। जबकि देश में सबसे कम औसत सालाना आय 42 हजार 684 रुपये बिहार के किसानों की है।





 



सरकार को किसान आंदोलन में दिख रहे हैं माओवादी



बता दें कि केंद्र सरकार और आंदोलन कर रहे किसानों के बीच जल्द किसी समझौते की उम्मीद कमज़ोर पड़ती जा रही है। इसी बीच अब सरकार के सूत्रों के हवाले से मीडिया में दावा किया जा रहा है कि किसान आंदोलन में अतिवादी हिंसक ताकतों और माओवादीयों का कब्ज़ा होता जा रहा है। सरकार के इंटेलिजेंस को किसानों के आंदोलन और भीमा कोरे गांव में समानता दिख रही है। खबर यह भी है कि गृह मंत्री अमित शाह ने हिंसा की आशंका से निपटने के लिए अधिकारियों के साथ बैठक भी कर ली है।



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हालांकि दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों ने कथित सरकारी सूत्रों के हवाले से किए जा रहे इन दावों को पूरी तरह खारिज़ किया है। किसानों का मानना यह है कि यह हमारे आंदोलन को बदनाम करने की साजिश और सरकार के इशारे पर किया जा रहा दुष्प्रचार है। कीर्ति किसान संगठन के प्रमुख रमिंदर सिंह पटियाल ने कहा, 'हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण और गैर राजनीतिक है। यह सब केंद्र सरकार का दुष्प्रचार है ताकि हमें बदनाम किया जा सके। हमारे सारे फैसले संयुक्त किसान यूनियन के जरिये लिए जाते हैं। सरकार अपना प्रोपेगैंडा बंद करे।'