नई दिल्ली। दिल्ली की कंपकंपाने वाली सर्दी में सीमाओं पर डटे लाखों किसानों का आंदोलन जारी है। वे मोदी सरकार के बनाए तीनों नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे है। इस बीच, सरकार के मंत्री और नेता देश भर में अलग-अलग जगहों पर किसान सम्मेलन करके कृषि क़ानूनों के लिए समर्थन जुटाने के दावे कर रहे हैं। यानी किसानों से बातचीत करके मसले को सुलझाने की कोशिश की जगह अब सरकार किसान आंदोलन के ख़िलाफ़ प्रचार युद्ध में जुट गई है।



मोदी सरकार के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी जगह-जगह किसान सम्मेलन करके इस प्रचार युद्ध में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। इसी सिलसिले में तोमर ने अब कृषि कानूनों के समर्थन में आठ पन्ने की एक चिट्ठी भी लिखी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपील कर रहे हैं कि कृषि मंत्री की यह चिट्ठी सबको पढ़नी चाहिए।



 





 



कृषि मंत्री की चिट्ठी में किसानों को बताया गया भ्रमित



कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की 8 पन्नों की चिट्ठी में सबसे अहम दलील वही दी गई है, जिसे ख़ुद प्रधानमंत्री से लेकर बीजेपी के तमाम नेता-मंत्री-मुख्यमंत्री इन दिनों लगातार दोहराते रहे हैं। दलील ये कि किसान संगठनों में कृषि कानूनों को लेकर कुछ भ्रम पैदा किया गया है। जिसे दूर करने की ज़रूरत है। उनका दावा है कि मोदी सरकार ने तीनों कृषि क़ानून दरअसल किसानों के फ़ायदे के लिए ही बनाए हैं, लेकिन किसान अपने फ़ायदे को समझ नहीं पा रहे हैं। उन्हें विपक्ष ने गुमराह कर दिया है। तोमर ने लिखा है कि मोदी सरकार पिछले छह सालों से किसानों को सशक्त करने के प्रयास कर रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में उन्होंने कहा कि MSP व्यवस्था जारी है और आगे भी जारी रहेगी। हालांकि उन्होंने किसानों की उस मांग के बारे में कुछ नहीं लिखा कि सरकार एमएसपी से कम मूल्य पर फसल खरीदने को कानूनन जुर्म घोषित कर दे।



कृषि मंत्री तोमर ने अपने पत्र में ये दावा भी किया है कि देश के कई हिस्सों के कई किसान संगठनों ने कृषि सुधार कानूनों का स्वागत किया है और वह इस कानून के जरिए लाभ भी उठा रहे हैं। उनका कहना है कि नए कानून लागू होने के बाद इस बार एमएसपी पर सरकारी खरीद के पिछले सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं, इसके बाद भी कुछ लोग किसानों से झूठ बोल रहे हैं कि एमएसपी बंद कर दी जाएगी। तोमर ने आरोप लगाया है कि राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित होकर किसानों से झूठ बोला जा रहा है और कानून को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है।



कृषि मंत्री ने लिखा है कि जिस सरकार ने किसानों को लागत का डेढ़ गुना एमएसपी दिया है, जिस सरकार ने पिछले छह साल में एमएसपी के जरिए लगभग दोगुनी राशि किसानों के खाते में पहुंचाई, वह सरकार कभी एमएसपी बंद नहीं करेगी। उन्होंने पत्र में लिखा है कि पीएम किसान सम्मान निधि के जरिए हर साल 6 हजार रुपये देने का मकसद भी यही है कि किसानों को कर्ज न लेना पड़े। तोमर ने अपने पत्र में यह भरोसा भी दिलाया है कि मंडियां चालू हैं और चालू रहेंगी। इसके साथ ही खुले बाजार में उपज को अच्छे दामों पर बेचने का विकल्प भी मिलेगा। इतना ही नहीं, इन्हें आने वाले समय में और भी आधुनिक बनाया जाएगा। लेकिन कृषि मंत्री ने किसानों की इस आशंका का समाधान नहीं किया कि अगर निजी मंडियों के जरिए बाज़ार में कदम रखने वाले बड़े कॉरपोरेट्स ने एक-दो साल तक ज़्यादा दाम देकर सरकारी मंडियों को सूना कर दिया, तो वो कैसे बच पाएंगी? और अगर सरकारी मंडियां इस तरह ख़त्म हो गईं तो क्या किसान अपनी फसल बेचने के लिए बड़े कॉरपोरेट के रहमोकरम पर नहीं रह जाएंगे? और अगर निजी मंडियों के ख़रीदारों पर एमएसपी की अनिवार्यता लागू नहीं होगी, तो किसानों को उसका लाभ कैसे मिल पाएगा?



एक प्रमुख किसान नेता तो खुलकर आरोप लगा चुके हैं कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किसान नेताओं के साथ मुलाकात में साफ़ कह दिया था कि किसानों की सारी फसल एमएसपी पर ख़रीदना संभव नहीं है। ऐसे में क्या कृषि मंत्री की चिट्ठी पढ़कर किसानों की शंकाओं का समाधान हो जाएगा? हमारे प्रधानमंत्री को भले ही इसका यक़ीन हो, लेकिन अब तो देश का सुप्रीम कोर्ट भी कहने लगा है कि किसानों से संवाद करके समाधान निकालना सरकार के बस की बात नहीं है।