नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार लगातार यह दावा करती रही है कि कृषि कानूनों को लागू करने से पहले उसने किसानों से कई दौर की चर्चा की और परामर्श लेकर इसे लागू किया। लेकिन अब इस बात का खुलासा हुआ है कि सरकार ने किसी से बातचीत या परामर्श नहीं किया था। एक आरटीआई के जवाब में केंद्र सरकार ने खुद कहा है कि उसके पास इससे संबंधित कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

दरअसल, न्यूज़ चैनल एनडीटीवी ने केंद्र के कृषि, सहयोग और किसान कल्याण विभाग में बीते 15 दिसंबर को आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी। चैनल ने तीनों कानूनों पर किसान समूहों के साथ सरकार की तरफ से हुए परामर्श का विवरण मांगा था। इसके एक हफ्ते बाद जो जवाब आया वह हैरान करने वाला था। विभाग के मुख्य लोक सूचना अधिकारी ने अपने जवाब में बताया कि इससे संबंधित किसी भी तरह का रिकॉर्ड हमारे पास नहीं है। 

यह स्थिति तब है जब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद तक यह दावा कर चुके हैं कि इन्हें लागू करने से पहले देश के किसानों के साथ बातचीत की गई है और परामर्श लिया गया है। सोमवार को ही मोदी सरकार में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक फेसबुक लाइव कार्यक्रम के दौरान कहा था कि इन कानूनों पर देश में बहुत लंबे समय से चर्चा चल रही है। कई समितियों का गठन किया गया था, जिसके बाद देश भर में कई चर्चाएं आयोजित की गई थीं। 

बीते दिनों केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी दावा किया था कि कृषि कानून पर हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श, प्रशिक्षण और आउटरीच कार्यक्रम  किए गए थे। उन्होंने ने यह भी कहा था कि इससे संबंधित 1.37 लाख वेबिनार और प्रशिक्षण जून में आयोजित किए गए थे जिनमें 92.42 लाख किसानों ने भाग लिया था। अब सवाल यब उठता है कि यदि सच में बातचीत की गई थी तो उससे संबंधित जानकारियां सरकार के पास क्यों नहीं है? क्या केंद्रीय मंत्री झूठे आंकड़े दे रहे थे? 

इस मामले में अब केंद्र सरकार चौतरफा घिरती दिख रही है। गौरतलब है कि नए कानून पर सलाह-मशविरा नहीं करने के मुद्दे पर विपक्ष और किसान संगठन की ओर से मोदी सरकार को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। विपक्ष और किसान संगठनों का आरोप है कि सरकार ने कानून लागू करने से पहले किसी से सलाह-मशविरा नहीं किया था, इस बारे में केंद्रीय मंत्री झूठे दावे कर रहे हैं।