नई दिल्ली। एक विवाहित महिला पति की संपत्ति या गुलाम नहीं है। उसे पति के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह अहम टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान की है। दरअसल, एक शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि कोर्ट उसकी पत्नी को उसके साथ रहने का आदेश दे। इस पर कोर्ट ने उसकी अर्जी को खारिज करते हुए पत्नी को संपत्ति या गुलाम समझने की मानसिकता को गलत बताया है।

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन और हेमंत गुप्ता की बेंच ने कहा, 'आपको क्या लगता है? क्या एक महिला कोई संपत्ति है जो हम ऐसे आदेश दें? क्या महिला कोई गुलाम है जिसे हम आपके साथ रहने का आदेश दें?' 

दहेज के लिए प्रताड़ित करता था पति

मामला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का है। साल 2013 में दोनों की शादी हुई थी लेकिन पत्नी का आरोप है कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया। जिसके बाद वो मजबूर होकर अलग रहने लगी। 2015 में उसने गुजारा-भत्ता पाने के लिए मामला दर्ज किया तो गोरखपुर की अदालत ने पति को 20,000 रुपये हर महीना देने का आदेश दे दिया। इसके बाद पति ने दांपत्य के अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर कर दी।

पति ने कोर्ट के फैसले के बाद हाई कोर्ट में याचिका दायर कर गुजारा-भत्ता दिए जाने पर सवाल उठाए। उसके वकीलों ने दलील दी कि जब पति अपनी पत्नी के साथ रहना चाहता है तो फिर गुजारा भत्ता क्यों दिया जाए? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया तो पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

महिला का आरोप है कि उसके पति ने दांपत्य के अधिकार बहाल करने की अर्जी सिर्फ गुजारा-भत्ता देने से बचने के लिए ही दायर की है। महिला के वकील ने कोर्ट से कहा कि पति ने गुज़ारा भत्ता देने का आदेश मिलने के बाद ही फैमिली कोर्ट का दरवाया खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद सख्त टिप्पणी करते हुए दांपत्य अधिकारों के बहाली की पति की याचिका खारिज कर दी।