बदलाव की हवा के बीच एक खास संकेत की तरह है यह इस्‍तीफा 

चुनाव के ठीक पहले मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के सीईओ ललित मोहन बेलवाल का इस्तीफा होने की खबर ने सबको चौंका दिया है। बदलाव की हवा के बीच सरकार के प्रिय अफसरों में शुमार बेलवाल के इस्‍तीफे को एक खास संकेत रूप में देखा जा रहा है। 

इस इस्‍तीफे का महत्‍व तब समझ आएगा जब आईएफएस बेलवाल के कद को जाना जाएगा। यूं तो वे वन सेवा के अधिकारी हैं लेकिन उन्‍हें लंबे समय तक डेपुटेशन के तहत आईएएस के समान जिम्‍मेदारियों दी गईं। रिटायर होने के बाद भी प्रतिनियुक्ति जारी रखी गई। आरोप है कि उन्होंने आजीविका मिशन के सीईओ रहते हुए बीमा कंपनी बनाई और भारी अनियमिताएं की। स्कूली बच्चों के गणवेश में भी भ्रष्टाचार की शिकायत की गई है। बात हाईकोर्ट पहुंची तो सरकार ने जांच करवाई लेकिन जब जांच अधिकारी युवा आईएएस नेहा मारव्या उनके खिलाफ एफआईआर की अनुशंसा कर दी तो बेलवाल पर कार्रवाई नहीं हुई उल्टे नेहा मारव्‍या से सारी जिम्‍मेदारी और सुविधाएं छीन ली गईं। 

ताजा शिकायत यह है आईएफएस बेलवाल ने आजीविका मिशन से जुड़ी 55 लाख महिलाओं को एक पार्टी के पक्ष में वोट करने के लिए दबाव बनाया है। पिछले एक माह में उनके खिलाफ एक दर्जन शिकायतें चुनाव आयोग तक पहुंची। यह भी आरोप लगा कि लाड़ली बहना योजना को चर्चित करने तथा सभाओं में महिलाओं को लाने का प्रबंधन आईएफएस बेलवाल के हाथ में ही होता था। 

दर्जनों शिकायतों, हाईकोर्ट के दखल, आईएएस की जांच में दोषी पाए जाने के बाद भी जिस अफसर को अब तक हर हाल में बचाया गया उस लाड़ले अफसर के औचक इस्‍तीफे के पीछे के कारणों को तलाश जा रहा है। एक कारण तो यह है कि सीएस इकबाल सिंह बैंस की सेवावृद्धि का मामला अटका हुआ है। ऐसे में उनके पहले उनके प्रिय अफसरों के इस्‍तीफे शुरू हो चुके हैं। दूसरा, अब घोटालों को छिपाना आसान नहीं है और कार्रवाई के पहले ही अफसर की रवानगी हो गई है। तीसरा, सरकार कांग्रेस की शिकायतों का असर लाड़ली बहना योजना पर नहीं पड़ने देना चाहती है इसलिए लाड़ले अफसर की विदाई सही समझी गई। 

चुनाव आ गया, दिवाली आ गई, तनख्वाह नहीं आई

कहते हैं मौका हो तो दस्‍तूर भी पूरा हो ही जाता है। चुनाव ऐसा मौका है जब मतदाता को मनाने वाले हर तरह के दस्‍तूर हो ही जाते हैं लेकिन इसबार प्रदेश के कांट्रेक्ट कर्मचारियों, व्यावसायिक शिक्षकों, संविदा डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ के लिए राखी भी सूनी गई और दिवाली भी बेरोनक हैं। वजह है इन कर्मचारियों को पिछले तीन से पांच माह का वेतन नहीं बंटना। त्‍योहार मनाना तो दूर जीवनयापन मुश्किल हो रहा है। 

स्वास्थ्य विभाग में 4500 के करीब संविदा पैरामेडिकल स्टाफ तथा डॉक्टर कार्यरत हैं। इन सभी ने शासन को चेतावनी दी है कि वेतन भुगतान कराया जाए नहीं तो संविदा मेडिकल स्टाफ तथा डॉक्टर दीपावली नहीं मनाएंगे। इतना ही नहीं ये सभी चुनाव का बहिष्कार भी करेंगे।  

सरकारी स्‍कूलों में कार्य करने वाले व्यावसायिक शिक्षकों का वेतन 5 महीने से नहीं मिला है। संगठन दु:खी है कि हर साल की तरह इस बार भी दूसरे कर्मचारियों को दिपावली के पहले वेतन जारी किया जाता है लेकिन उन्‍हें वेतन नहीं दिया गया है। वेतन समय पर न मिलने से परेशान व्यावसायिक शिक्षक आकाश यादव ने अपनी जान दे दी थी। अब कर्मचारी कह रहे हैं कि सबके साथ उनका विकास क्‍यों नहीं हो रहा है? 

वेतन मांगने पर विभाग की ओर से कहा जाता है कि वेतन हेड में पैसा नहीं है तो दूसरे मद से इसमें वेतन मद में पैसा देने में वित्‍त विभाग से अनुमति नहीं मिल रही है। मुद्दा यह है कि इनके वेतन का पैसा गया कहां? ऐसे हालत में यह आरोप सही लगते हैं कि सरकार ने कर्मचारियों के वेतन सहित तमाम जनकल्‍याणकारी योजनाओं का सारा पैसा लाड़ली बहना जैसी योजना में लगा दिया है और इस राजनीतिक निर्णय से अन्‍य कर्मचारियों व लोगों को परेशानी हो रही है। 

अपनी-अपनी जुगाड़ जमाते अफसर

बहुत सालों बाद यह मौका आया है जब ब्‍यूरोक्रेसी नई सरकार के बारे में आकलन नहीं कर पा रही है। तमाम सर्वे, रूझान और कवायदें उलझनें बढ़ा रही हैं। ऐसे में अफसरों ने दोनों हाथों में लड्डू रखते हुए कांग्रेस और बीजेपी के शीर्ष नेताओं से संपर्क बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। जिन्‍हें यहां कोई राह नहीं पसंद आ रही हैं वे दिल्‍ली जाने की जुगत में हैं। 

जो अफसर बीजेपी के करीब माने जाते हैं वे अफसर संपर्क सूत्र साध रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार आने पर भले ही मलाईदार पोस्‍ट न रहे लेकिन लूप लाइन में न भेज दिए जाएं। जो पूरी तरह से बीजेपी समर्थक के रूप में जाने जाते हैं ऐसे अफसरों ने पार्टी और सरकार ने वादा भी किया है और पूरी कोशिश में लगे हैं कि उनके अधिकार क्षेत्र में सारी सीटें बीजेपी जीते। जबकि कांग्रेस के करीबी माने जाने वाले अफसर अपने दुर्दिन टल जाने के ख्‍वाब देख रहे हैं। इस जुगत में अफसरों ने दोनों दलों के प्रभावशील व्‍यक्तियों से मेल मुलाकात शुरू कर दी है। 

इस जुगत में मुख्‍यमंत्री तथा मुख्‍य सचिव कार्यालय के अफसर भी शामिल हैं। ट्रेंड रहा है कि सरकार बदले या न बदले, मुख्‍यमंत्री के प्रमुख सचिव बदल जाते हैं। इस क्रम में सीएम के पीएस मनीष रस्‍तोगी का बदलना लगभग तय है। ऐसे में उनकी पत्‍नी और प्रमुख सचिव वित्‍त व महिला-बाल विकास विभाग दीपाली रस्‍तोगी की दिल्‍ली जाने की राह नहीं खुल रही हैं। लाडली बहना योजना का पैसा खाते में डालने के मुद्दे पर सरकार से पंगा लेनी वाली वरिष्‍ठ आईएएस दीपाली रस्‍तोगी को केंद्र से प्रतिनियुक्ति पर आने की स्‍वीकृति नहीं मिल रही है जबकि प्रतिनियुक्ति आदेश का इंतजार कर रही एक अन्‍य आईएएस दीप्ति गौड़ मुखर्जी को पदस्‍थापना मिल गई है। जबकि मंशा थी कि दीपाली रस्‍तोगी के बाद उनके पति मनीष रस्‍तोगी भी दिल्‍ली चले जाएंगे।

कुछ अफसर मैदानी फीडबैक देने के साथ तथ्‍य और जानकारियों उपलब्‍ध करवा रहे हैं ताकि मनचाही सरकार बने तो मनचाहा पद मिले। फिलहाल तो जमावट की जुगत जारी है और 3 दिसंबर को सरकार का फैसला ही नहीं होगा, ऐसे सभी अफसरों की जिम्‍मेदारियों और रसूख का निर्णय भी हो जाएगा। 

 
फोन पर धमकियां, मैदान में जमावट के जतन 

नई सरकार को जनता चुनेगी लेकिन उनक वोट से अपनी मनचाही सरकार चुनवाने के लिए मैदान में डराने, धमकाने, ललचाने के हर तरह के जतन किए जा रहे हैं। मैदानी पोस्टिंग पाने के लिए सरकार का प्रभाव बढ़ाने का वादा करने वाले अफसरों पर आरोप लग रहे हैं कि वे बीजेपी के समर्थन में मैदान में सारे जतन कर रह हैं। जैसे, बीजेपी समर्थकों की आचार संहिता का उल्‍लंघन उन्‍हें दिखाई नहीं दे रहा है तो कांग्रेस समर्थकों पर अतिरिक्‍त सख्‍ती है। 

प्रलोभन देने के साथ ही पहले किए गए सहयोग का हवाला देकर वोट देने का दबाव बनाने के मामले सामने आ रहे हैं। सीधी का एक ऑडियो वायरल हुआ। लोक कलाकार नरेंद्र बहादुर सिंह को आए इस कॉल में कथित तौर पर सीएम हाउस से कहा गया कि सीएम शिवराज सिंह चाहते हैं कि सभी कलाकार बीजेपी को ही वोट दें।

प्रदेश में मतदाता जागरूकता के नाम पर भी लोगों को एक ही पार्टी को वोट देने का संकेत दिया जा रहा है। आदिवासी क्षेत्रों से दुष्‍प्रचार कर डराने की शिकायतें मिल रही हैं। आदिवासी तथा महिलाओं में भ्रम फैलाया जा रहा है कि रिकार्डिंग से पता चल जाएगा कि उन्‍होंने किसे वाट दिया है। यदि उन्‍होंने दोबारा नहीं चुना तो उन्‍हें योजना का लाभ आगे नहीं मिलेगा तथा अब तक मिली सुविधाएं तथा पैसा वसूला जाएगा।