अपनी धरोहरों और धार्मिक स्थलों के जरिए पर्यटन स्थलों की ब्रांडिंग कर रहे मध्य प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी भ्रष्टाचार के नए आयाम जोड़ रही है। भ्रष्टाचार को शिष्टाचार बताने वाले लोग इस बात से राहत में रहते हैं कि पैसे देने के बाद भी काम हो रहे हैं वरना तो काम होता नहीं है और रिश्वत के पैसे भी डूब जाते हैं। ऐसे नुकसान से पीड़ित लोग अब रिश्वत वापस पाने के लिए बड़े अधिकारियों के पास गुहार लगा रहे हैं।
बसौड़ा गांव के 50 ज्यादा लोग कलेक्टर कार्यालय पहुंचे और जनसुनवाई में सिंगरौली के कलेक्टर को आवेदन दे कर कहा कि हमने नायाब तहसीलदार बुद्धसेन मांझी को जमीन का बंटवारा कराने के लिए 65 हजार रुपए रिश्वत दे दिए। रुपया देने के बाद भी हमारा कोई काम नही हुआ। हम गरीब लोग है, मेहनत मजदूरी करके रिश्वत दी है। इसलिए साहब हमारा रुपया वापस दिलवा दीजिए।
ग्रामीणों ने बताया कि नायब तहसीलदार ने जमीन का काम करने के लिए 65 हजार रुपये की मांग की थी। ग्रामीणों ने 45 हजार रुपए नायब तहसीलदार के कमरे पर जाकर दिए और बाकी 20 हजार रुपए उनके ड्राइवर को दिए गए। कलेक्टर ने इस आवेदन पर क्या कार्रवाई की यह तो उजागर नहीं हुई लेकिन जनसुनवाई में खुल कर रिश्वत देना स्वीकार कर रहे ग्रामीणों की पीड़ा से समझा जा सकता है कि अफसर पैसा लेकर भी काम नहीं कर रहे हैं और इससे आम जनता कितनी परेशान है। जनता की इस पीड़ा से भोपाल अनजान है। हालांकि, भोपाल में भी भ्रष्टाचार के आरोप गूंज तो रहे हैं लेकिन ये अनसुने हैं।
136 करोड़ के घोटाले में दो अदने कर्मचारियों को सजा
मध्यप्रदेश में एक तरफ जलसंकट गहरा रहा है और दूसरी तरफ गांव-गांव पानी पहुंचाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना जल जीवन मिशन में घोटाले सामने आ रहे हैं। रीवा में जल जीवन मिशन में मिली घोटाले की शिकायतों के बाद सहायक कलेक्टर आईएएस सोनाली देव की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी गठित की गई थी। कमेटी ने जांच में पाया कि ठेकेदार ने पाइप लाइन भी नहीं बिछाई और काम को पूरा मान कर करोड़ों का भुगतान कर दिया गया। जागरूकता अभियान के नाम पर भी लाखों रुपए व्यय किए गए। जांच रिपोर्ट का खुलासा होते ही जिला प्रशासन विपक्ष के निशाने पर आ गया। विधानसभा सत्र में सेमरिया विधायक अभय मिश्रा ने इस घोटाले को सदन में उठाया। स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने भी कार्रवाई को लेकर ज्ञापन सौंपा था
मामला गर्माता देख रीवा कलेक्टर ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के खंड रीवा में पदस्थ दैनिक वेतनभोगी और तत्कालीन प्रभारी ऑडिटर सिरमौर जया शंकर प्रसाद त्रिपाठी और तत्कालीन प्रभारी ऑडिटर राजीव श्रीवास्तव की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। जबकि आरंभिक रिपोर्ट में कार्यपालन यंत्री, प्रभारी सहायक यंत्री, उपयंत्री भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार पाए गए थे सरकार ने इन्हें शोकॉज नोटिस दिया था। फिलहाल केवल दो कर्मचारियों पर ही कार्रवाई की गई है। यानी छोटो पर गाज गिरी है बड़ों की मौज है।
अफसरों का जमीनी खेल, बीजेपी विधायक हैरान, किसान परेशान
उज्जैन में हर 12 साल में होने वाला सिंहस्थ सरकार के लिए प्रतिष्ठा आयोजन होता है। इस बार 2028 में होने वाला सिंहस्थ और भी खास है क्योंकि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव स्वयं उज्जैन से हैं। उन्होंने सिंहस्थ को और भव्य रूप देने की तैयारी करने को कहा है। इसी क्रम में महाकाल लोक की तरह ओंकारेश्वर लोक निर्माण का कार्य आरंभ हो गया है।
पर्याप्त धन उपलब्ध करवाने के लिए सरकार ने इस बार बजट में सिंहस्थ के लिए 2 हजार करोड़ का बजट रखा है। जब बजट इतना है तो इसके खर्च की प्रक्रिया और औचित्य पर सवाल भी उठेंगे। ये सवाल खुद बीजेपी विधायक उठा रहे हैं। विधानसभा के जारी सत्र में बीजेपी विधायक चिंतामण मालवीय ने अफसरों पर सिंहस्थ की जमीन की हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया है। उनकी आपत्ति सिंहस्थ में पक्के आवास बनाने को लेकर हैं। आलोट विधायक चिंतामण मालवीय ने कहा है कि सिंहस्थ तंबू में ही होता आया है, वहीं अच्छा भी लगता है। पर अब सिंहस्थ जमीनों पर प्रयोग हो रहे हैं। उज्जैन के किसान डरे हुए हैं। उन्हें धर्म नगरी के नाम पर जमीन के स्थाई अधिग्रहण के नोटिस बांटे जा रहे हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है जब सिंहस्थ से पहले किसानों की जमीन का स्थायी अधिग्रहण हो रहा है, पूर्व में अस्थायी अधिग्रहण होता था। यह कुछ कालोनाइजरों और माफिया का षड्यंत्र है, जिसमें अफसर भी साथ दे रहे।
यह पहला मौका नहीं है जब विधायक चिंतामण मालवीय ने आरोप लगाए हैं वे पिछले सत्र में भी उज्जैन की जमीनों को खुर्दबुर्द करने के आरोप लगा चुके हैं। पिछले सत्र में घटिया से बीजेपी विधायक सतीश मालवीय ने 1.64 हेक्टेयर जमीन की हेराफेरी का मुद्दा उठाया था। तब विधायक ने दस्तावेज लहराए थे जिस पर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने उन्हें समझाइश दी थी। लेकिन अपने आरोपों पर स्थिर रहते हुए विधायक सतीश मालवीय ने कहा था कि अफसर मंत्री विजयवर्गीय को भ्रमित कर रहे हैं।
यह बात और है कि उज्जैन के बीजेपी विधायक सरकार की योजनाओं का विरोध नहीं कर रहे हैं लेकिन बीजेपी के आलोट और घटिया विधायकों अफसरों सहित सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं और उनके आरोपों को कांग्रेस का समर्थन मिल रहा है।
हाई प्रोफाइल विदाई पार्टी की चर्चा
बीते दिनों मध्य प्रदेश के प्रशासनिक जगत में ताकतवर आईएएस अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान के वीआरएस की चर्चा रही। कयास लगाए गए कि ऐसी क्या वजह रही कि उन्हें रिटायरमेंट के पांच माह पहले वीआरएस लेना पड़ा? हर कोई उनके इस औचक फैसले से हैरान था तथा उनके अगले कदम को आंक रहा था। आईएएस मोहम्मद सुलेमान ने अपने वीआरएस के तय अवधि में पीएचडी करने का उल्लेख किया है। कयास हैं कि उसके बाद वे किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी को ज्वाइन करेंगे।
यह तो आईएएस मोहम्मद सुलेमान के भविष्य की बात हुई है लेकिन उनके अतीत के कई घाव हैं। माना जा रहा है कि नेतृत्व परिवर्तन के बाद उन्हें अपेक्षित तवज्जो नहीं मिली और इसी पीड़ा के चलते वे अपने बैचमेट सीएस अनुराग जैन के साथ भी काम करने में सहज नहीं महसूस कर रहे थे। जब उनका दफ्तर में अंतिम दिन था तब 12 मार्च को मध्यप्रदेश विधानसभा में बजट प्रस्तुत किया गया था। उस दिन विधानसभा में सभी प्रमुख अधिकारी उपस्थित थे लेकिन आईएएस मोहम्मद सुलेमान नहीं पहुंचे। इस तरह मध्य प्रदेश के अपने समय के सबसे चर्चित और कद्दावर आईएएस की विदाई खामोशी से हो गई।
लेकिन प्रशासनिक गलियारों में एक हाईप्रोफाइल विदाई पार्टी की चर्चा है। खबर है कि स्वयं मुख्यसचिव अनुराग जैन ने बैचमेट मोहम्मद सुलेमान की विदाई में पार्टी का आयोजन किया जिसमें चुनिंदा अफसर शामिल हुए। इसे साथी आईएएस के प्रति सीएस के गुड जेस्चर के रूप में देखा जा रहा है।