सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) का प्रश्न: क्या आप rigyajursama@outlook.com ई-मेल एड्रेस रखने वाले व्यक्ति की पहचान साझा कर सकती हैं ?

चित्रा रामकृष्ण का उत्तर: सिद्ध पुरुष/योगी तो एक परमहंस हैं जो कि अधिकांशतः हिमालय पर्वत श्रंखलाओं में निवास करते हैं। मैं विशेष अवसरों पर उनसे धार्मिक स्थलों में मिलती हूँ। उनसे मिलने का कोई निश्चित स्थान नहीं है।

सेबी का प्रश्न: आपने यह तथ्य उद्घाटित किया है कि सिद्ध पुरुष अधिकांशतः हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में निवास करते हैं, कृपापूर्वक यह समझाइये कि उनकी नियमित तौर पर आपसे ई-मेल और पत्राचार तक पहुंच कैसे होती है ?

चित्रा रामकृष्ण का उत्तर: मेरी जानकारी के अनुसार उनकी आध्यात्मिक शक्तियों की वजह से उन्हें किसी भी तरह के दैहिक सामंजस्य (समन्वय) की आवश्यकता नहीं है।

अगर उपरोक्त वार्तालाप से "सेबी’’ को हटा दिया जाए तो यह स्पष्ट तौर पर प्रतीत होगा कि एक भक्त, एक अंधभक्त से अपने गुरु के महिमामंडन के लिए प्रश्न पूछ रहा है। उपरोक्त जांच प्रक्रिया हमें बेहद सुकून दिलाती है कि हमारी जांच एजेंसियां कितनी शिष्टता के साथ, कितने सम्मान के साथ पूछताछ करती हैं। वे बेहद आग्रह की मुद्रा में माननीय चित्रा जी से पूछ रहीं हैं कि वे उस ई-मेल धारक की पहचान साझा कर सकती हैं?

चित्रा जी उस विभूति को सिद्ध पुरुष/योगी और परमहंस बता रहीं हैं। अब आप ध्यान से सोचिए कि पिछली दो शताब्दियों में आपने ‘‘रामकृष्ण परमहंस’’ के अलावा किसी और को परमहंस अवस्था में प्रवेश करते सुना है?  नहीं न? तो अब सेबी के प्रश्न की भाषा पर गौर करिए। सेबी पूछती है कृपापूर्वक समझाएए कि आपके ई-मेल और पत्राचार उन तक कैसे पहुंचते हैं? पहले प्रश्न का उत्तर सुन सेबी का स्वर और भी दीन हो जाता है और अगले प्रश्न में वह चित्राजी से ‘‘कृपापूर्वक’’ उत्तर की अपेक्षा करती है। जाहिर है उत्तर और भी श्रद्धा भरा है। वे बताती हैं कि सिद्ध पुरुष की इतनी जबरदस्त आध्यात्मिक शक्तियां हैं कि उन्हें किसी तरह के शारीरिक या प्रत्यक्ष संपर्क की आवश्यकता ही नहीं है।

और पढ़ें: विराट प्रश्नों के बौने उत्तर

जांच एजेंसियां बजाय जोर देकर यह पूछने के कि उस व्यक्ति का नाम बताएं, वे पूर्व अध्यक्ष से मात्र इस जवाब की अपेक्षा रख रही हैं। जांच एजेंसियां क्या सामान्य आरोपियों से इस भाषा में संवाद करतीं हैं? बहरहाल यह इस अपराध का बहुत सोचा समझा उत्तर है। चित्रा रामकृष्ण जानती हैं कि हम अपने कम्प्यूटरों पर प्रतिवर्ष दीपावली से पहले पुष्य नक्षत्र में और दीपावली के मुहुर्त में ‘‘शुभ लाभ’’ ही लिखते हैं। स्वास्तिक बनाते हैं। उस यंत्र पर भोग चढ़ाते हैं और उस पर कलावा (रंगीन डोरी) बांधते हैं। उस पर हल्दी, कुमकुम और चावल चढ़ाते हैं। जब कागजी बही-खाते रखते थे तब भी यहीं करते थे। अब भी यही कर रहे हैं। वे जानती थीं कि भारत देश का पूरा संचालन जब भगवान भरोसे ही हो रहा है तो एनएसई (नेशनल स्टाक एक्सचेंज) को किसी और तरह से क्यों संचालित किया जाए।

तो चित्रा जी ने भी एक नए परमहंस को गढ़ा और 330 लाख करोड़ से अधिक की कीमत वाले संस्थान को एक ‘‘कथा वाचन परिसर’’ में रुपांतरित कर दिया। चूंकि इन नए कथित परमहंस की कुछ नई तरह की अपेक्षाएं थीं तो उन्होंने अपने व्यक्तिगत विन्यास में भी परिवर्तन किया। अपने बालों को सजाने का तरीका बदल डाला और सिद्ध पुरुष को यह बेहद पसंद आया और बदले में उस सिद्ध पुरुष ने इन्हें एक ऐसा सहायक उपलब्ध करवाया जो वर्तमान से करीब 50 गुना ज्यादा वेतन लेकर, बाकी लोग जो हफ्ते में पांच या छः दिन काम करते हैं, के स्थान पर सारा कार्य तीन दिन में ही कर देता था।

दुःखद बात यह है कि आधुनिक परमहंस यह नहीं जानते थे कि उनकी भक्त को तैरना आता है या नहीं। ये परमहंस अब हिमालय के सीमित दायरे से निकलकर स्वयं को समुद्र जैसा विस्तारित कर लेना चाहते थे। और ऐसा वे जगत कल्याण के लिए ही कर रहे थे। गौर करिए हिमालय पर्वत श्रंखला की लंबाई मात्र 2400 किलोमीटर हैं, इसका कुल क्षेत्रफल 5,95,000 वर्ग किलोमीटर है और यह केवल चार देशों भारत, नेपाल, चीन और भूटान तक ही सीमित है। जबकि समुद्र का विस्तार करीब 37 करोड़ वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा है और 200 से ज्यादा देश इसके किनारे पर स्थित हैं। सेशेल्स समुद्रतट पर अवतरित होने का एक कारण यह भी है कि हिमालय में धूप की कमी से भी नव परमहंस स्वयं को मुक्त करना चाह रहे होंगे। चूंकि हमारे पास इन सिद्ध युग पुरुष के जन्म का कोई प्रमाण नहीं हैं, अतएव हमें उन्हें अजर-अमर मानना ही होगा। वे सीधे-सीधे जगत कल्याण के लिए ही तो हिमालय की कंदराओं से बाहर निकलकर महासागरों की विशालता और अनंतता से हम सबको परिचित करवाने को प्रवृत्त हुए हैं। जब वह हिमालय में रहकर भारत की सबसे बड़ी कंपनी को संचालित कर सकते हैं तो सोचिए जब वे समुद्र में विचरण करेंगे तो विश्व अर्थव्यवस्था उनके हिसाब से ही संचालित होगी और तब किसी भी देश की यह हिम्मत नहीं होगी कि वह भारत को विश्वगुरू न माने।

और पढ़ें: कांग्रेस की नई सोच को सलाम

इन परमहंस की मायावी शक्ति को समझिए। सेबी सन् 2015 में भक्त चित्रा से सवाल - जवाब करती है और उन प्रश्नों को परिपक्व होकर आम जनता तक आने में 7 वर्ष लग जाते हैं। यदि परमहंस स्वयं सामने आते तो यह सब डी-कोड होने में 7 दशक तक लग सकते थे। अतएव उन्होंने सेबी को अपने शक्तिपात से इस लायक बनाया कि वह महज सात वर्षों में उनके संबंध में कृपापूर्वक चर्चा करने में समृद्ध हो गया। हमें उनकी आध्यत्मिक शक्तियों के प्रति साष्टांग दंडवत करना चाहिए। उनकी अगाध शक्ति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दुनिया की सबसे काबिल मानी जाने वाली भारतीय आईटी बिरादरी उनके ई-मेल एड्रेस का अभी तक ठीक से पता नहीं लगा पा रही है कि उसे किसने रचा है। इस तरह वे दुनिया के लिए एक अबूझ पहेली बन गए हैं। उनका पता न चल पाना उनकी निःस्वार्थ साधु प्रवृत्ति को भी सामने लाता है। यह भी पता चलता है कि वे अपने साधु कर्म के प्रति कितने समर्पित हैं और स्वयं को सार्वजनिक जीवन से दूर रखे हुए है। यदि वे ऐसा नहीं करते तो भारत सहित दुनिया के तमाम कथित सिद्धों की दुकान व प्रसिद्धि खतरे में पड़ जाती और वे एकमात्र परमहंस के रूप में स्थापित हो जाते। वे चाहते तो आसाराम व राम रहीम जैसा अपना एक विशिष्ट संप्रदाय भी बना सकते थे। उपरोक्त दोनों महापुरुषों ने अपना ऐसा भक्तवर्ग तैयार किया है जो इनके बलात्कारी व हत्यारे सिद्ध हो जाने के बाद भी इनकी आराधना में लीन रहता है।

अब आगे की जांच सीबीआई और ईडी के जिम्मे दी गई है/दी जा रही है। ईडी का तो शानदार इतिहास है सजा दिलवाने का। वैसे वह अभी 6 मार्च तक काफी व्यस्त है। आप जानते ही हैं, कि क्यों व्यस्त है। भगवान कृष्ण भगवत गीता के 18वें अध्याय में कहते हैं, ‘‘परंतु जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है तथा जो बिना युक्तिवाला तात्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है- वह तामस कहा गया है।’’ इससे प्राप्त होने वाले फल की व्याख्या करते हुए वे आगे कहते हैं, ‘‘जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है, वह तामस कहा जाता है।’’ तामस का अर्थ है, अंधकार, अज्ञान व गलत प्रवत्ति का व्यक्ति।

भारत के सर्वाधिक धनी व सामर्थ्यवान 5 प्रतिशत लोग शेयर बाजार में लेनदेन करते हैं और इस महान पथप्रदर्शक समुदाय की चुप्पी बता रही है कि भारत में किस तरह की प्रभुद्धता अपनी पैठ जमाए हुए है। नियति में विश्वास रखने वालों इन सभी में से अधिकांश के लिए स्टाक एक्सचेंज, एक किस्म का सट्टा बाजार या जुआघर है, जहां पर सिर्फ जीत यानी लाभ ही मायने रखती है फिर वह चाहे जिस ढंग से अर्जित की गई हो। नैतिकता वहां आड़े नहीं आती और आती है तो चित्रा रामकृष्ण और उनके अनुयायियों को पता है कि एक अनाम काल्पनिक सिद्ध परमहंस उनकी रक्षा के लिए साक्षात रूप में मौजूद हैं और उस साक्षात रूप का प्रतीक चिन्ह है अंधविश्वास और अंधभक्ति। ये अंधभक्ति विज्ञान को ढेंगे पर रखती है। यह भक्ति अपने अनगिनत भक्तों को समझा रही है कि तुम अपने फायदे को ध्यान में रखो, बस ! गांधी एक फिजूल की बात कहता रहा कि साध्य के लिए साधन की पवित्रता अनिवार्य है। तुम सब साधन की अपवित्रता को अपना आराध्य मानो और लूट-पाट में जुट जाओ। साध्य यानी धन तुम्हारा ही होगा। गोरे-काले, किसी भी धन के बारे में मत सोचो। अब देश के धन या मुद्रा के बारे में भी चिंतित मत हो। क्रिप्टो मुद्रा तुम्हारे पास है। सरकार उसे ‘अवैध’ मानती है पर उस पर ‘‘कर’’ लेती है तो वह स्वमेव ‘वैध’ हो ही जाती है।

हम आभारी रहेंगे चित्रा रामकृष्ण के जिन्होंने हमें व्यापार में की गई बेइमानी को वैध करने का एक (नव) आध्यात्मिक तरीका सुझाया हैं। हमें गांधी की इस बात को हमेशा के लिए भूल जाना होगा कि, ‘‘जो मनुष्य स्वयं शुद्ध है, द्वेष रहित है, किसी से गलत लाभ नहीं उठाता, हमेशा पवित्र मन से व्यवहार करता है, वही मनुष्य धार्मिक है, वही सुखी है और वही धनवान है।’’ याद रखिये उनके हत्यारे गोडसे को महिमामंडन करने वाली वाद विवाद प्रतियोगिता के युग में हमें मनुष्य के धार्मिक, सुखी व धनवान होने की परिभाषाएं बदलना है। चित्रा रामकृष्ण व उनके सिद्ध परमहंस हमें इसमें सहायता करने को तत्पर रहेंगे।

(गांधीवादी विचारक चिन्मय मिश्रा के यह स्वतंत्र विचार हैं)