शिक्षा स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से आवश्यक है का संदेश देने वाले महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की 131 वीं पुण्यतिथि 28 नवंबर को है। ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले महिला शिक्षा के पक्षधर थे, वे समाज से छुआछूत और असमानता का सफाया करना चाहते थे। यह सब उनकी बातों में ही नहीं बल्कि उनके कार्यो से भी परिलक्षित होता था।  वे जात पात और लिंग भेद से उपर उठकर महिला शिक्षा के पक्षधर थे। महाराष्ट्र के पुणे में उनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को हुआ था। वे अपनी पत्नी सावित्री बाई के साथ मिलकर महिला सुधार और दलितों के उत्थान के लिए कार्य करते रहे। 28 नवंबर सन् 1890 में ज्योतिबा फुले का निधन हो गया।

उन्होंने सन 1848 में देश के पहले गर्ल्स  स्कूल की स्थापना पुणे में की थी। इस स्कूल की पहली टीचर उनकी पत्नी  सावित्री बाई फुले हीं थीं। सावित्री पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती थीं। उन्होंने लड़कियों को अपने घर में रखकर उनका पालन पोषण किया और पढ़ाया भी। उनकी पत्नी द्वारा स्कूल में पढ़ाने का समाज में विरोध भी हुआ। जिसके बाद  ज्योतिबा फुले को अपना पहला स्कूल बंद करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और दूसरी जगह पर फिर से लड़कियों के लिए स्कूल खोला।

ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई ने महिला शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाने का काम किया। वैसे तो उन्होंने कई स्कूलों की स्थापना की। लेकिन उनके द्वारा पुणें मे में स्थापित पहला स्कूल बदहाली की मार झेल रहा है। रखरखाव के अभाव में स्कूल की बिल्डिंग जर्जर हो गई है।

जोतिबा फुले जीवनभर महिला शिक्षा के लिए काफी संघर्ष करते रहे। इसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार से भी टक्कर लेनी पड़ी।  महात्मा ज्योतिबा फुले वे ताउम्र छुआछूत, अशिक्षा, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ रहे। उन्होंने बच्चियों के लिए स्कूलों के अलावा विधवाओं के लिए आश्रमों का निर्माण करवाया, विधवा पुनर्विवाह के लिए भी संघर्ष किया। उन्हेंदेश में दलितों और महिलाओं को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए  संघर्षों का आगाज किया था, यही वजह है कि संविधान के निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर उन्हें अपना तीसरा गुरू मानते थे।