आत्महत्या नाम सुनते ही मौत का ख्याल आता है। अक्सर आत्महत्या की खबरें देखने और सुनने को मिलती हैं, कहीं कोई किसान फसल खराब होने से दुखी होकर जान दे देता है, तो कहीं परीक्षा में फेल होने की वजह से बच्चा मौत को गले लगा लेता है। इनदिनों कोरोना काल में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं, किसी ने पारिवारिक कलह से तंग आकर मौत को गले लगा लिया तो कोई नौकरी चले जाने से दुखी था।

पिछले दिनों भोपाल में एक बच्चे ने मोबाइल नहीं होने की वजह से खुदकुशी कर ली थी। वहीं कोलार इलाके की एक बच्ची ने अपनी जान देदी थी क्योंकि उसकी मां ने उसे टीवी देखने से मना किया था। ये केवल एक बानगी है। विश्व में सालाना करीब आठ लाख लोग खुदकुशी करते हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि हर साल करीब 8 लाख लोग मौत को गले लगा लेते हैं। विश्व में हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। वहीं WHO का मानना है कि करीब 25 गुना ज्यादा लोग सुसाइड की कोशिश भी करते हैं।

मौजूदा समय में लोगों में मानसिक तनाव बढ़ा है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में 79 प्रतिशत सुसाइड निम्न और मध्यवर्ग वाले देशों के लोग करते हैं। वहीं महिलाओं अपेक्षा पुरुष आत्महत्या ज्यादा करते हैं, अब बच्चों के भी आत्महत्या करने के मामले सामने आने लगे हैं।

खुदकुशी के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए 2003 में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की शुरुआत हुई थी। माना जाता है कि लोगों में मानसिक स्वास्थ के प्रति जागरुकता फैलाकर सुसाइड के केस काफी हद तक रोका जा सकत है। डिप्रेशन होने पर तुरंत मनोचिकित्सक से मिलना चाहिए। ताकि आत्महत्या के पहले के संकेतों को पहचान कर उसे रोका जा सके।

सुसाइड का विचार एक मनोरोग है जिसके लक्षण एक बार में नहीं आते बल्कि वो लंबे वक्त में इंसान के दिमाग में पलते रहते हैं। वह व्यक्ति के व्यवहार में झलकता भी है, लेकिन उन्हे समझाना आसान नहीं है। लेकिन मनोचिकित्सक की मदद से उसे पहचाना जा सकता है। मानसिक बीमारी का इलाज पूरी तरह संभव है। जिससे खुदकुशी की घटनाओं पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है। कई बार देखने में आता है कि लोग काउंसलिंग और इलाज कराने के बाद अपने मन से नकारात्म ख्यालों को अलग करने में सफल हो जाते हैं।

यदि किसी के मन में जिंदगी के प्रति नकारात्मक विचार आ रहे हैं। वह आत्महत्या के बारे में सोचता है, ज्यादा डिप्रेशन, मूड स्विंग होना या उसके व्यवहार में परिवर्तन आता है। तो उसे किसी अपने से अपनी बातें शेयर करना चाहिए। इसके लिए कई हेल्पलाइन नबंर और पेशेवर परामर्शदाता और मनोचिकित्सक मददगार साबित हो सकते हैं। नकारात्म विचार आने पर अपने परिवार और दोस्त के साथ रहने पर भी बुरे विचारों से दूर रहा जा सकता है। 

 क्यों आते हैं आत्महत्या के विचार

खुदकुशी के विचार आने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक, व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं। जिंदगी के प्रति संतुलित नजरिया रखना चाहिए। अच्छा और बुरा दोनों ही जिंदगी के पहलू हैं। अपनी गलतियों से सीखना चाहिए। नेगेटिव विचारों से दूर रहने की कोशिश की जानी चाहिए। कई बार लोग गंभीर बीमारी या पारिवारिक कलह की वजह से जान दे देते हैं। युवाओं में आर्थिक कमजोरी और मानसिक विकार, परीक्षा में असफलता की वजह से नाकारत्मक विचार आते हैं जिसकी वजह से वो मौत को गले लगा लेते हैं। प्रेम में असफलता और करियर में मनचाहा स्थान नहीं मिलना और कर्ज की वजह से भी खुदकुशी करने से लोग नहीं चूकते।

खुश रहने से दूर होंगे नकारात्मक विचार

नकारात्मक विचारों से बचने के लिए अपनी दिनचर्या नियमत रखें। अपने खानपान का ख्याल रखें, एक्सरसाइज को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएं। अपनी पसंद और शौक को पूरा करते रहें। हंसने में कभी कंजूसी नहीं करें, हमेशा खुलकर हंसे। दोस्तों और परिवार से अपनी बातों को शेयर जरूर करें। करियर का चुनाव अपनी काबिलियत के हिसाब से करें।  

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर कुछ विचार जो खुदकुशी के विचारों को रोकने में सहायक हो सकते हैं।  

  • आत्महत्या या स्वेच्छा से मरने के लिए प्रस्तुत होना-भगवान की अवज्ञा है. जिस प्रकार सुख-दुःख उसके दान है, उन्हें मनुष्य झेलता है, उसी प्रकार प्राण भी उसकी धरोहर है। - जयशंकर प्रसाद
  • आत्महत्या इस दौर की सबसे बड़ी राजनैतिक सच्चाई और विरोध की अभिव्यक्ति के रूप में उभर रही है। - इतालवी सिद्धांतकार फ्रैंको (बिफो बेरार्दी)
  • आत्महत्या करने वाले को रोकने की ज़िम्मेदारी हम सब पर -अज्ञात