अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्र का पर्व शुरु हो रहा है। 15 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा।  नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना करके शक्ति पूजन शुरू किया जाता है। प्रतिपदा से नवमी तक भक्त मां दुर्गा के  विभिन्न स्वरूपों की पूजा अर्चना करते हैं।
नवरात्र पर  श्रीदुर्गााशप्तसती, दुर्गा जी के 108 नाम , दुर्गा चालीसा, विंध्यवासिनी चालीसा का पाठ करने से जगत जननी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इन नौ दिनों में संयम का पालन करें। नवरात्र का व्रत  शुद्ध अंत:करण से करने से पूजा सफल होती है। ऋगवेद में माँ दुर्गा को आदि-शक्ति बताया गया है। दुर्गा मां सभी की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। उन्हें दुर्गतिनाशिनी कहा गया है, वे जीवन की सभी परेशानियां को दूर करती हैं। 

नौ स्वरूपों की आराधना से मिलेगा शुभ फल
नवरात्र के नौ दिनों में  मां दुर्गा के 9 दिव्य स्वरूपों की उपासना की जाती है। पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है।
प्रतिपदा पर शुभ मुहूर्त में करें
नवरात्र में घट या  कलश स्थापना का विशेष महत्व है । इस शारदीय नवरात्र में घटस्थापना का शुभ मूहूर्त सुबह 6:17 मिनट से सुबह 7:07 मिनट तक है।  वहीं घट स्थापना अभिजित मुहूर्त दिन में 11:45 से दोपहर 12:32 तक है।मां दर्गा 'डोली' पर सवार होकर आ रही हैं
पालकी पर होकर सवार आएंगी मां भवानी
इस साल  शारदीय नवरात्र का आरंभ गुरुवार से होने जा रहा है। इस  बार मां दुर्गा डोली या पालकी पर सवार होकर आ रही हैं। इस बार वे  डोली पर  ही सवार होकर प्रस्थान भी करेंगी। मान्यता है कि जब जगत जननि जगदम्बा  डोली पर सवार होकर आती हैं तो वे जीवन में सुख-समृद्धि और रोग से मुक्ति प्रदान करती हैं।
 

पूजन से प्रसन्न होंगी देवी

नवरात्र पर मां दुर्गा की पूजा विधि विधान से करने का विधान है। सबसे पहले साफ स्थान पर माता की चौकी रखें, उसपर माता की प्रतिमा या फोटो रखें। फिर उन्हें स्नान करवाएं। वस्त्र, सिंदूर, अक्षत, फूल, माला, श्रंगार का सामान, इत्र अर्पित करें। माता को फलों और मिष्ठान का भोग लगाएं।  नारियल अर्पित करें। घर में अखंड दीप जलाएं। धूप, दीप, कपूर से माता की आरती करें। रोजाना दुर्गासप्‍तशती का पाठ माता के सामने करें। नवरात्र पर कन्या भोजन करने की परंपरा  है। एक से 9 साल तक की कन्याओं को अपनी सुविधा के अनुसार घर पर आमंत्रित करें और उनकी पूजा कर उन्हें भोजन करवाएं। ऐसा करने से माता की विशेष कृपा की प्राप्ति होती है।