आज ग्लोबल डे ऑफ पैरेंट्स है...यानि माता पिता को सम्मानित करने का दिन, बच्चे के लिए माता-पिता द्वारा किए गए सेक्रिफाइज या बलिदान को याद करने का दिन। उसके लिए शुक्रिया करने का दिन। वो हमारे पेरेंट्स ही तो हैं, जो हमें इस खूबसूरत दुनिया में लेकर आए हैं। इसांन के जन्म से पहले से ही माता-पिता से उसका नाता जुड़ जाता है। भारतीय संस्कृति में माता-पिता को भगवान का दर्जा दिया जाता है। पेरेंट्स अपने बच्चों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। उन्हे खुश रखने के लिए अपना सारा जीवन न्योछावर कर देते हैं। किसी भी बच्चों के विकास में सबसे ज्यादा और बड़ा योगदान उनके पेरेंट्स का ही होता है। माता-पिता बच्चे को जीवन की हर चुनौती के लिए तैयार करते हैं। लेकिन इन दिनों पैरेंटिंग के सामने भी कई चुनौतियां हैं। एक तो कोरोना का कहर, दूसरा लॉकडाउन, ऐसे में दिन भर बच्चों को घर में बिजी रखना उनकी हर एक्टिविटी में पार्टिसिपेट करना काफी चुनौती पूर्ण हो गया है।

बच्चों के साथ बच्चा बनने से मिलती है खुशी

जुड़वां बच्चों की मां रिशु दुबे का कहना है कि उनके बच्चों की उम्र एक साल है। ऐसे में दोनों बच्चों को हर कदम पर माता-पिता का साथ चाहिए। उनके उठने से लेकर खेलने, खाने और सोने में उन्हे साथ रहना होता है। लॉकडाउन के कारण बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी बिल्कुल नहीं है, उन्हें ना तो पार्क खेलने ले जाया जा सकता है और ना ही कहीं घुमाने। जिससे उनके सामने बच्चों को दिनभर इंगेज रखने की चुनौती है, ऐसी स्थिति में उन्हे बच्चों के साथ बच्चा बनना पड़ता है। वहीं स्कूल गोइंग पेरेंट्स की अपनी अलग दिक्कतें हैं, पूनम शर्मा की बेटी 11 साल की है, स्कूल बंद है ऐसे में उसकी आनलाइन क्लास और डांस क्लास के बीच तालमेल बैठाना काफी चैलेंजिंग हो रहा है। इनका कहना है कि कभी उन्हे बिटिया के सवालों के जवाब गूगल की तरह तुरंत देने होते हैं। वहीं एक कुशल खिलाड़ी की तरह हर गेम उसके साथ खेलना पड़ता है।

पैरेंटिंग इंसान के देती है अलग पहचान

पेशे से शिक्षिका शाहीन अख्तर अंसारी का कहना है कि पैरेंट्स की पैरेटिंग ही इंसान को एक अलग पहचान देती है। उनका विश्वास आगे बढऩे की प्रेरणा देता है। माता पिता का सपोर्ट हर रुकावट को पार करने का हौसला देता है, हर इंसान की सक्सेस में उनके पैरेंट्स का ही रोल होता है। पेरेंट्स बच्चों से जुड़े फैसलों में कभी कोई समझौता नहीं करते। लेकिन बच्चों को सही गलत का फर्क बताना चाहिए, जरूरी नहीं कि बच्चों की हर बात मानना ही अच्छी पैरेंटिंग है, उनकी गलत मांग पर उन्हें ना कहना भी पेरेंट्स को ही सिखाना होगा। दौर चाहे कोई भी हो, माता-पिता का उनकी संतान से हमेशा एक सा नाता रहता है, कभी खट्टा तो कभी मीठा जरूरी है कि वक्त की नजाकत को ध्यान में रखते हुए बच्चों के साथ कदम से कदम मिला कर चला जाए, कुछ उनकी सुनें कुछ अपनी कहें, तभी जिंदगी की गाड़ी आसानी से वक्त के साथ कदमताल कर पाएगी।