प्राइवेट सेक्‍टर के लक्ष्‍मी विलास बैंक (Lakshmi Vilas Bank) के ग्राहकों के लिए अच्छी खबर नहीं है। खबर है कि केंद्र सरकार ने तमिलनाडु के इस निजी बैंक के ग्राहकों के लिए निकासी की सीमा (Withdrawal Limit) तय कर दी है। जिसके बाद अब बैंक के ग्राहक 16 दिसंबर तक बैंक से अधिकतम 25 हजार रुपये ही निकाल सकेंगे। यह जानकारी वित्‍त मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान में दी गई है।

हालांकि वित्‍त मंत्रालय ने यह भी कहा है कि बीमारियों के इलाज, उच्‍च शिक्षा के लिए फीस जमा करने और शादी जैसे कुछ खास खर्चों के लिए बैंक के ग्राहक 25 हजार रुपये से अधिक भी निकाल सकेंगे, लेकिन इसके लिए उन्हें रिज़र्व बैंक की इजाजत लेनी पड़ेगी। रिज़र्व बैंक का कहना है कि लक्ष्मी विलास बैंक के मामले में यह कदम उसकी लगातार बिगड़ती वित्तीय हालत और रिवावल की कोई ठोस योजना पेश नहीं किए जाने की वजह से उठाया गया है।

टीएन मनोहरन एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त

तीस दिन के मोरेटोरियम की अवधि के दौरान बैंक के कामकाज में उसके मौजूदा मैनेजमेंट का कोई दखल नहीं होगा और सारा कामकाज रिजर्व बैंक की निगरानी में होगा। आरबीआई ने इस दौरान बैंक का प्रशासन संभालने के लिए केनरा बैंक के पूर्व नॉन एक्ज़िक्यूटिव चेयरमैन टीएन मनोहरन को लक्ष्मी विलास बैंक का एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया गया है। 

डीबीएस बैंक के साथ मर्जर की योजना

रिज़र्व बैंक का कहना है कि इस दौरान वो लक्ष्मी विलास बैंक को किसी और मज़बूत बैंक में समाहित करने की योजना पर काम करेगा और उम्मीद है कि मोरेटोरियम खत्म होने से पहले ही ऐसा कर लिया जाएगा। रिजर्व बैंक ने भरोसा दिलाया है कि ऐसा हो जाने पर बैंक के ग्राहकों की दिक्कतें दूर हो जाएंगी। रिज़र्व बैंक की तरफ से जारी एक अलग नोटिफिकेशन में बताया गया है कि लक्ष्मी विलास बैंक का मर्जर डीबीएस  बैंक लिमिटेड के साथ करने की योजना है। 

तीन साल से बिगड़ रही थी लक्ष्मी विलास बैंक की हालत

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया कहना है कि लक्ष्मी विलास बैंक को 30 दिन के लिए मोरेटोरियम में डालने का फैसला किया गया है। रिज़र्व बैंक के मुताबिक यह कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि तीन सालों के दौरान लक्ष्मी विलास बैंक की वित्तीय स्थिति लगातार बिगड़ती रही। इस दौरान बैंक को लगातार घाटा होता रहा, जिससे इसकी नेट-वर्थ ख़त्म होती चली गई। इतना ही नहीं, उसके सामने बैंक की हालत में सुधार के लिए कोई ठोस रिवाइवल प्लान भी पेश नहीं किया गया। इन हालात में जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा और बैंकिंग व फ़ाइनेंशियल सिस्टम की स्थिरता के लिए उसे यह कदम उठाना पड़ा है।

रिज़र्व बैंक का कहना है कि बैंक की हालत में सुधारने की रणनीतिक योजना के अभाव, बढ़ते NPA और घटते एडवांसेज़ के मद्देनज़र आने वाले दिनों में भी इसका घाटा जारी रहने की आशंका है। रिजर्व बैंक के मुताबिक बैंक अपनी निगेटिव नेट-वर्थ की समस्या को दूर करने के लिए पूंजी जुटाने में भी नाकाम रहा है, जबकि जमाकर्ता अपनी रकम लगातार निकालते जा रहे थे और लिक्विडिटी का स्तर घटता जा रहा था।

सितंबर 2019 में ही PCA में रखा गया था लक्ष्मी विलास बैंक

रिजर्व बैंक के मुताबिक गवर्नेंस से जुड़े गंभीर मसले और तौर-तरीके लक्ष्मी विलास बैंक के कामकाज में आई गिरावट के लिए ज़िम्मेदार हैं। आपको बता दें कि लक्ष्मी विलास बैंक को सितंबर 2019 में ही प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) फ्रेमवर्क के दायरे में रख दिया गया था। PCA में रखे जाने का मतलब ही होता है कि बैंक की वित्तीय सेहत ठीक नहीं है।

बैंक की हालत के लिए जिम्मेदार कौन

लेकिन गंभीर सवाल यह है कि एक साल से भी ज्यादा वक्त पहले PCA में रखे जाने के बाद भी अगर बैंक की सेहत में सुधार आने की जगह उसकी हालत बिगड़ती ही चली गई तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? अगर बैंक में रखे आम लोगों के पैसे फंस जाते हैं तो क्या इसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार जिम्मेदार नहीं हैं? अगर इनके रहते लोगों की गाढ़ी कमाई के पैसे बैंकों में फंस जाते हैं, तो फिर बैंकिंग रेगुलेटर और सरकारी मशीनरी के होने का मतलब ही क्या रह जाता है?

वैसे भी ये कोई पहला मौक़ा नहीं है, जब निजी क्षेत्र का कोई बैंक ऐसे आर्थिक संकट में फंसा हो। इससे पहले मार्च 2020 में यस बैंक और सितंबर 2019 में पीएमसी बैंक को भी इसी तरह के वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा था। इन बैंकों की हालत को देखकर यह सवाल भी ज़रूर महत्वपूर्ण हो गया है कि बैंकों के निजीकरण की रणनीति कितनी सही है?