भोपाल। कोरोना महामारी को देखते हुए भोपाल,इंदौर संभाग में सब्जी मंडियां बंद हैं, जिससे कई जिलों के किसान अपनी सब्जियां नहीं बेच पा रहे हैं। इंदौर मंडी में अपनी सब्जियां बेचने वाले बड़वानी के नागलवाड़ी गांव के किसान इन दिनों परेशान हैं। किसानों का खीरा ककड़ी 2 रुपए किलो में भी कोई खरीदने को तैयार नहीं है।

नागलवाड़ी गांव के उन्नत किसान सब्जियों की जैविक खेती करते हैं। इलाके के 600-700 एकड़ के रकबे में किसान संगठित होकर सब्जियों उगाते हैं। यहां सब्जियों के उचित दाम नहीं मिलने से किसान दुखी हैं।बड़वानी जिले नागलवाडी गांव के किसान मुकेश हम्मड़ का कहना है कि 5 रुपए किलो बिकने वाला खीरा-ककड़ी अब दो-दो रुपए में भी मुश्किल से बिक रहा है। मुकेश मध्यप्रदेश के साथ-साथ हरियाणा दिल्ली, मुंबई में बेचते हैं। किसान का कहना है कि मजदूरी और लागत तक नहीं निकल पा रही है। 500 एकड़ में लगी खीरे की फसल के लिए बीज-खाद से लेकर मजदूरी तक में लाखों रुपए खर्च हुए हैं। लेकिन अब उन्हे अपनी फसल सस्ते में बेचनी पड़ रही है। 

सावन में भी नहीं हो रही खीरे की बिक्री

किसान मुकेश का कहना है कि इस मौसम में खीरे की अच्छी खपत होती थी। जिसकी वजह से उन्होने जून में खीरे की फसल लगाई थी। सब्जियों से कोरोना फैलने के डर से बिक्री पर असर पड़ा है। किसानों को उनकी फसल की लागत तक नहीं मिल पा रही है। खेत में बोए बीज, सिंचाई और मजदूरी का पैसा निकालना दुश्वार हो रहा है।

किसान मुकेश ने बताया कि हाल ही में उन्होंने 5 रुपए प्रति किलो की दर से 10 टन खीरा रोहतक भेजा है। खेप भेजने के बाद रोहतक के व्यापारी ने भी उनसे दाम कम करने को कहा है।अब परेशान है कि फसल भी भेज दी और दाम भी कम मिलेंगे।  

अप्रैल में 9 लाख की टमाटर की खेती हुई थी बरबाद

मुकेश ने बताया कि अप्रैल में सात एकड़ में लगी टमाटर की फसल बिक्री नहीं होने के कारण बरबाद हो गई थी। जिससे किसानों को करीब 9 लाख रुपए का नुकसान हुआ था। दरअसल किसानों के साथ करीब दो हजार दिहाड़ी मजदूरों का घर भी इन्ही फसलों की बिक्री से चलता है। नागलवाड़ी गांव के किसान सब्जियों की आर्गेनिक खेती करते हैं। कीटनाशक की जगह गौमूत्र और देशी चीजों का उपयोग करते हैं। किसानों की सुनवाई कहीं नहीं हो रही है। किसानों की मेहनत और पैसे का दाम नहीं मिल पा रहा है।लॉकडाउन ने क्षेत्र के सब्जी उगाने वाले किसानों की कमर तोड़ दी है। सब्ज्यिों के उचित दाम न मिलने से उनकी परेशानी बढ़ गई है। इससे वे स्थानीय मंडी में ही सस्ते दामों में अपनी सब्जियां बेचने को मजबूर हैं।