हल्दी एक मसाला होने के साथ साथ जड़ीबूटी का भी काम करती है। यह करकुमा लोंगा पौधे की जड़ से प्राप्त होता है, जो अदरक परिवार में एक बारहमासी है। हल्दी का सबसे प्रमुख सक्रिय अंश है करक्यूमिन। करक्यूमिन हल्दी को पीला रंग देता है। वहीं आयुर्वेदिक चिकित्सा में हल्दी का उपयोग कई वर्षों से किया जा रहा है। 

आयुर्वेद में इसे हरिद्रा कहते है। साथ ही हल्दी एक्स्ट्रा एसिड को रोकने में भी प्रभावी है। इसमें एक ऐसा नैचुरल कंपाउंड पाया जाता है। यह दावा वैज्ञानिकों ने बीएमजे एविडेंस-बेस्ड मेडिसिन जर्नल में ऑनलाइन प्रकाशित एक अध्ययन (Ref) में किया है। हल्दी के प्रभाव को लेकर हुआ यह इस तरह का पहला अध्ययन है।

इस अध्ययन के अनुसार वैज्ञानिकों का मानना है कि हल्दी में नैचुरली एक एक्टिव कंपाउंड होता है। जिसे कर्क्यूमिन कहा जाता है। इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी माइक्रोबियल गुण होते हैं। दक्षिण पूर्व एशिया में अपच से लेकर कई तरह के रोगों के लिए हल्दी का एक औषधीय उपचार के रूप में उपयोग किया जाता है। दरअसल शोधकर्ताओं ने अपच, तेजाब बनने और पेट की अलग-अलग समस्याओं से पीड़ित लोगों को 28 दिनों तक एक समूह को हल्दी दी गई, दिन में चार बार एक डमी कैप्सूल के साथ करक्यूमिन के दो बड़े कैप्सूल का सेवन किया था। 

वहीं, दूसरे समूह को संतुलन बनाए रखने के लिए ओमेप्राज़ोल, प्रतिदिन 20 मिलीग्राम कैप्सूल और दो डमी कैप्सूल दिए गए हल्दी के कैपसूल खाने को दिए थे। बाकी लोगों को हल्दी और ओमेप्राजोल का मिश्रण दिया गया। जिसके बाद वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि हल्दी के सेवन से अपच जैसी पेट की समस्या को खत्म किया जा सकता है। तीनों समूहों के रोगियों ने अपने लक्षणों में समान सुधार का अनुभव किया। 

बता दें इससे पहले भी, ऐसे अध्ययन किए जा चुके हैं जो हल्दी को लीवर की चोट से जोड़ते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए भविष्य में और भी दीर्घकालिक परीक्षण किए जाने चाहिए।