भोपाल। सर्दी-खांसी या हल्की तबीयत खराब होते ही लोग अकसर मेडिकल स्टोर से खुद एंटीबायोटिक खरीदकर खा लिया करते हैं। वहीं, ठीक होने के बाद दवा का कोर्स बीच में ही छोड़ देते हैं। वैसे तो ये चीजें इन दिनों आम बात हो गई है लेकिन अब यह गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गया है। एम्स भोपाल ने चेतावनी दी है कि इस आदत के कारण निमोनिया और यूटीआई जैसी आम बीमारियों में भी दवाओं का असर कम हो रहा है।

एम्स भोपाल के डायरेक्टर माधवानंद कर के अनुसार, बिना डॉक्टर की सलाह एंटीबायोटिक लेने से शरीर के बैक्टीरिया दवा के खिलाफ लड़ना सीख जाते हैं। यह एएमआर की स्थिति पैदा करता है जिसमें दवाएं निष्प्रभावी होने लगती हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि गलत तरीके से एंटीबायोटिक लेने वाले मरीजों में संक्रमण का स्तर बढ़ जाता है जिससे गंभीर जटिलताएं तक सामने आ सकती हैं।

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खतरे को रोकने के लिए एम्स भोपाल ने सख्त एंटीबायोटिक पॉलिसी लागू की है। डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ को विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि दवाओं का उपयोग जरूरत और जांच के मुताबिक ही हो। मरीजों व परिजनों में जागरूकता बढ़ाने के लिए अस्पताल परिसर में नुक्कड़ नाटकों और पोस्टरों के जरिए अभियान चलाया जा रहा है ताकि लोग अंदाजे से दवा लेने से बचें।

विशेषज्ञों के अनुसार, रोजमर्रा की गलतियां जैसे दवा का कोर्स बीच में छोड़ देना, बिना कल्चर-सेंसिटिविटी टेस्ट के दवा शुरू कर देना और डॉक्टर की बिना पर्ची गलत डोज लेना इस संकट को और भी ज्यादा बढ़ा रही हैं। इससे बैक्टीरिया पूरी तरह खत्म नहीं होते बल्कि और मजबूत होकर लौटते हैं और भविष्य में इलाज मुश्किल हो जाता है।

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