कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजय सिंह ने किसानों की समस्‍या को लेकर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है। सिंह ने लिखा है कोरोना महामारी के कारण संपूर्ण देश की अर्थव्यवस्था पर अत्यंत विपरीत असर पड़ रहा है लेकिन मध्यप्रदेश के संदर्भ में काफी बातें चिन्ताजनक है। मध्यप्रदेश में लगभग पौने तीन करोड़ लोग खेती या खेती से जुड़े हुये कार्यो में संलग्न है तथा उसी से अपना और अपने परिवार का भरण-पोशण करते है। जहां एक ओर लॉक डाउन के कारण फसलों का विक्रय नहीं हो पा रहा है वहीं दूसरी ओर व्यापारिक गतिविधियां रूक जाने के कारण फसलों के मूल्य में बेतहाशा गिरावट आ गई है। प्रदेश के अनेक किसान प्रतिनिधियों ने मुझसे चर्चा कर कृषि से जुड़े अनेक बिन्दुओं पर अपनी चिन्ताओं को प्रकट किया है।

सिंह ने किसानों की समस्‍याओं पर सुझाव दिए हैं कि गेँहू खरीदी की राशि से सहकारिता के कर्ज को सेटलमेंट नहीं किया जाए क्योंकि पिछले वर्ष पूरी राशि को किसानों के खातों में हस्तांतरित किया गया था। 20 हजार क्विंटल के उत्पादित क्षेत्र के लिए अलग से विपणन केन्द्र बनाया जाए। वेयरहाउस पर बड़े तोल-कांटों पर तुलाई सुनिश्चित की जाए। खरीदी के लिए किसानों को आमंत्रित संख्या की बजाय सेंटर की खरीदी क्षमता अनुसार एस.एम.एस. के माध्यम से सूचना देकर दिन में दो बार बुलाया जाए ताकि समय और हम्माल की क्षमताओं का पूरा उपयोग किया जा सके। प्रति सेंटर न्यूनतम 1500 से 2000 खरीदी सुनिश्चित की जाए क्योकि इस वर्ष मध्य प्रदेश में 260 से 270 लाख टन उत्पादन का अनुमान है एवम न्यूनतम समर्थन मूल्य 1⁄4एम.एस.पी.1⁄2 पर 100 लाख टन की खरीदी की योजना है इसलिए बाकी गेँहू खरीदने और मूल्य स्थरीकरण के लिए अलग से किसानों के लिए फण्ड दिया जाए। सभी खरीदी केंद्रों पर न्यूनतम 4 से 5 कांटो की व्यवस्था की जाए। किसानों से क्रय की गई फसल का भुगतान किसानों को 3 से 5 दिवस में किया जाए। जिला स्तर पर खरीदी हेतु टास्क फोर्स बनाया जाए ताकि खरीदे केंद्रों में सुधार, खरीदी व्यवस्था, बारदान, ट्रांसपोर्ट, हम्माल और ऑनलाइन त्रुटियों को सुधारा जा सके।

सिंह ने कहा है कि गेँहू के पंजीयन हेतु 8 दिवस के लिए पोर्टल शुरू किया जाएं। ग्रीष्म कालीन मूंग की लगभग 5 लाख हेक्टयर में खेती हो रही इसके लिए भी पंजीयन शुरू किया जाए एवं उत्पादन के बारे में केंद्र सरकार को अवगत कराया जाय ताकि आयात को नियंत्रित कर मूल्य का स्थरीकरण हो सके। दूध पूर्व में 7 रुपये प्रति फेट था जो अब घटाकर 5.2 रु प्रति फेट हो गया है जिससे दुग्ध उत्पादन करने वाले पषुपालक किसानों को नुकसान हो रहा है। इस पर भी ध्यान दिया जाये।

सिंह ने अफीम उत्पादक किसानों, फूल उत्पादकों, सब्जी, तरबूज और नदी किनारे छोटी बगिया लगाने वाले किसानों, प्‍याज, संतरा, पान और केला उत्‍पादकों की समस्‍याएं दूर करने को कहा है।