इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर में एयरपोर्ट रोड पर नो-एंट्री जोन में घुसे ट्रक से हुए हादसे ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को गंभीर रूप से चिंतित कर दिया है। बुधवार की सुनवाई में हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस संजीव सचदेव और जस्टिस विनय सराफ की पीठ ने इंदौर में लगातार हो रही दुर्घटनाओं पर कड़ी नाराजगी जताई और मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए पुलिस-प्रशासन से सख्त सवाल पूछे।
सुनवाई की शुरुआत इंदौर पुलिस कमिश्नर संतोष सिंह की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थिति से हुई। उन्होंने बताया कि कोर्ट के सक्रिय होने के बाद ट्रैफिक पुलिस ने 1244 चालान बनाए हैं। यह सुनते ही चीफ जस्टिस ने तीखे शब्दों में कहा कि इतनी बड़ी संख्या इस बात का संकेत है कि लोगों को नियम तोड़ने दिया जाता है और बाद में चालान काटकर मामला पूरा कर दिया जाता है। अदालत ने यह भी कहा कि ट्रैफिक व्यवस्था लागू करने की बजाय पूरा जोर चालान संख्या बढ़ाने पर लगता दिखाई देता है। कोर्ट ने पूछा कि क्या चालान बनाने का कोई वार्षिक लक्ष्य तय किया जाता है जिसके दबाव में पुलिस काम कर रही है।
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इस दौरान पीठ ने अफसरों द्वारा 75 दिन पहले प्रस्तुत किए गए एक्शन प्लान पर भी सवाल उठाए गए। अदालत ने कहा कि कमेटी जिसमें महापौर, कलेक्टर, पुलिस कमिश्नर, निगमायुक्त और आरटीओ शामिल हैं, ने जो प्लान दिया था उस पर जमीनी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं दिख रही है। अतिक्रमण, लेफ्ट-टर्न चौड़ा करने जैसे बिंदुओं के अलावा उस मूल समस्या पर कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है। जिसके कारण हादसे हो रहे हैं।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सराफ ने पूछा कि एयरपोर्ट रोड हादसे के बाद भी भारी वाहन शहर में कैसे घुस रहे हैं? ड्रिंक-एंड-ड्राइव के मामले क्यों बढ़ रहे हैं? इस पर पुलिस कमिश्नर ने बताया कि भारी वाहनों पर सख्ती जारी है। हालांकि, कलेक्टर द्वारा आवश्यक सेवाओं और ट्रांसपोर्ट श्रेणी के बड़े वाहनों को अनुमति दी गई है। उन्होंने यह भी बताया कि जागरूकता अभियान चल रहे हैं और 600 से अधिक ट्रैफिक वालंटियर बनाए गए हैं।
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अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि इंदौर में अक्सर जवान पेड़ों के पीछे खड़े दिखते हैं। जबकि, मुंबई जैसे शहरों में पुलिस चौराहे पर मुस्तैदी से मौजूद रहती है। कोर्ट ने कहा कि व्यवस्था बनाये रखने के बजाय चालान बनाने पर अधिक जोर दिया जा रहा है। जिसकी वजह से ट्रैफिक नियंत्रण की मूल समस्या जस की तस बनी हुई है।
इस मामले में इंदौर अदालत ने भी 27 नवंबर को अफसरों को उपस्थित रहने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने नोट किया था कि 75 दिन पहले दिए गए प्लान के बावजूद शहर में अतिक्रमण वही है, चौराहों पर जाम की स्थिति लगातार बनी रहती है और पुलिस चालानी कार्रवाई में उलझी रहती है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की कमेटी भी इंदौर की बिगड़ती ट्रैफिक व्यवस्था पर असंतोष जता चुकी है।
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