नई दिल्ली। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान शुक्रवार को लोकसभा में एक ऐसा निजी विधेयक पेश हुआ जिसने नौकरीपेशा लोगों की दिलचस्पी बढ़ा दी है। यह बिल कर्मचारियों को काम के घंटों के बाहर ऑफिस कॉल और ईमेल का जवाब न देने का अधिकार देने की बात करता है। इसे एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने पेश किया है।

सुप्रिया सुले की ओर से लोकसभा में पेश इस बिल के तहत कर्मचारियों को कई तरह के अधिकार मिल सकेंगे। उन्हें यह हक मिलेगा कि वे ऑफिस ऑवर के बाद या छुट्टियों के दौरान काम से जुड़े फोन कॉल, ईमेल और मैसेज का जवाब देने के लिए मजबूर नहीं किए जाएंगे। अगर कोई कर्मचारी इन समयों में कॉल या मैसेज का जवाब नहीं देता है, तो उसके खिलाफ कोई सजा, जुर्माना या दूसरी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकेगी। 

इस विधेयक का मकसद काम और पर्सनल लाइफ के बीच संतुलन बनाना है। बिल में एक अहम प्रावधान 'एम्प्लॉयी वेलफेयर अथॉरिटी' बनाने का भी है। यह एक तरह की निगरानी संस्था होगी, जो यह सुनिश्चित करेगी कि कर्मचारियों के अधिकारों का उल्लंघन न हो। अगर किसी कंपनी या संस्थान की ओर से कर्मचारियों पर ऑफिस टाइम के बाद भी काम का दबाव डाला जाता है, तो कर्मचारी इस अथॉरिटी के पास शिकायत कर सकेंगे। इससे कंपनियों पर भी यह दबाव बनेगा कि वे कर्मचारियों की निजी ज़िंदगी का सम्मान करें।

हालांकि लोकसभा में यह बिल पास हो पाएगा या नहीं, इस बारे में अभी संशय है। इसकी वजह ये है कि यह एक प्राइवेट मेंबर बिल है और ऐसे अधिकतर बिल सरकारी जवाब के बाद वापस ले लिए जाते हैं। फिलहाल सरकार की ओर से इस बिल पर अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। अगर सरकार इस बिल पर गंभीरता से चर्चा कर कानून का रूप देने को तैयार होती है तो इससे देश का वर्क कल्चर काफी हद तक बदल जाएगा। आमतौर पर ऐसे ज्यादातर बिल सरकार की प्रतिक्रिया के बाद वापस ले लिए जाते हैं। लेकिन ऑफिस कॉल से छुटकारे वाले इस बिल ने बहस जरूर छेड़ दी है क्योंकि आज के दौर में वर्क लाइफ बैलेंस सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है।