करनाल। हरियाणा की आशा वर्कर्स अपनी मांगों को लेकर पिछले दो महीनों से मोर्चा खोल रखा है, लेकिन राज्य की बीजेपी सरकार उनकी लगातार अनदेखी कर रही है। राज्य सरकार की इस उपेक्षा से नाराज आशा वर्कर्स ने मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के गृह नगर करनाल में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। कोरोना के खिलाफ जंग की अगली कतार में रहने वाली इन जुझारू महिलाओं की सबसे प्रमुख मांग यह है कि कोविड-19 से जुड़ी ड्यूटी करने वाली आशा कर्मियों को हर महीने 4000 रुपये रिस्क एलाउंस यानी जोखिम भत्ता दिया जाए।

7 अगस्त से आंदोलन कर रही हजारों आशा वर्कर्स ने अपनी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के गृह नगर करनाल में सीआईटीयू के नेतृत्व में जोरदार रैली की। सीपीएम ने आशा वर्कर्स की मांगों का समर्थन करते हुए खट्टर सरकार से मांग की है कि अपनी ज़िद छोड़कर आशा वर्कर्स की मांगों को फौरन पूरा करे। करनाल में रैली करने के बाद हज़ारों आशा वर्करों ने ज़िला सचिवालय का घेराव भी किया। इसके बाद मुख्यमंत्री के एक प्रतिनिधि ने आशा वर्करों को चंडीगढ़ जा कर 20 अक्टूबर मुख्यमंत्री से मुलाकात करने का न्योता दिया है। आशा वर्करों ने कहा है कि अगर 20 अक्टूबर को उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे 22 अक्टूबर को विधानसभा के सामने रैली करेंगी। 

क्या है आशा वर्करों की प्रमुख मांगें

आशा वर्कर्स की सबसे अहम मांग कोविड-19 से जुड़ी ड्यूटी करने वाली आशा कर्मियों को हर महीने 4000 रुपये रिस्क एलाउंस यानी जोखिम भत्ता दिया जाए। इसके साथ ही आशा वर्कर्स हर महीने राज्य सरकार की तरफ से मिलने वाली 500 रुपये की प्रोत्साहन राशि को फिर से बहाल करने की मांग भी कर रही हैं। यह प्रोत्साहन राशि पहले उन्हें मिलती थी, लेकिन अब खट्टर सरकार ने उसे बंद कर दिया है। 

सामुदायिक स्तर पर राज्य सरकार की नियमित स्वास्थ्य कर्मचारी का दर्जा देने की मांग भी आशा वर्कर्स कर रही हैं। उनकी मांग है कि जब तक उन्हें स्थायी कर्मचारी बनाया नहीं जाता तब तक हरियाणा सरकार उन्हें राज्य कर्मचारियों को मिलने वाले न्यूनतम वेतन का भुगतान करे और इसे महंगाई भत्ते के साथ जोड़ा जाए। इसके अलावा आशा वर्कर्स ईएसआई और पीएफ जैसी बुनियादी सुविधाएं दिए जाने की मांग भी कर रही हैं। इसके अलावा उनकी मांग एक अहम मांग यह भी है कि गंभीर रूप से बीमार पड़ने पर आशा वर्कर्स का इलाज सरकार के पैनल पर मौजूद अस्पतालों में कराया जाए।