नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर्स को ऑपरेशन का प्रशिक्षण लेने की इजाजत दे दी है। इसके बाद ये चिकित्सक साधारण ट्यूमर और गैंग्रीन, नाक और मोतियाबिंद जैसे कुछ सामान्य किस्म के ऑपरेशन कर सकेंगे। गैंग्रीन एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर के ऊतक ( टिशू ) नष्ट होने लगते हैं। यह मुख्य रूप से चोट, संक्रमण या किसी अन्य समस्या के कारण शरीर के किसी भाग में खून नहीं जा पाने से है। सरकार की इस अधिसूचना का इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने कड़ा विरोध किया है।

आयुष मंत्रालय के तहत आने वाली वैधानिक संस्था भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (सीसीआईएम) की ओर से जारी अधिसूचना में 39 सामान्य ऑपरेशन प्रक्रियाओं और करीब 19 प्रक्रियाओं की सूची है। जिनमें आंख, कान, नाक, गला आदि हैं। इसके लिए भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (परास्नातक आयुर्वेद शिक्षा), नियमन 2016 में संशोधन किया गया है। 

हालांकि ऑपरेशन की इजाज़त हर आयुर्वेदिक पोस्ट ग्रेजुएट को नहीं होगी। आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने स्पष्ट किया पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले सभी चिकित्सकों को ऑपरेशन करने की इजाजत नहीं दी जा रही है। यह छूट सिर्फ उन्हें मिलेगी जिन्होंने आयुर्वेद की पढ़ाई करते हुए भी सर्जरी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। सीसीआईएम के संचालक मंडल के प्रमुख वैद्य जयंत देवपुजारी का कहना है कि आयुर्वेदिक संस्थानों में 20 साल से ऑपरेशन होते आए हैं और यह अधिसूचना केवल उन्हें कानूनी जामा पहनाने का काम कर रही है। 

अधिसूचना के मुताबिक, पढ़ाई के दौरान सर्जरी (शल्य और शल्क्य) में पीजी कर रहे आयुर्वेद के छात्रों को ऑपरेशन करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। कोटेचा ने कहा कि सीसीआईएम की अधिसूचना से आयुर्वेद से जुड़ी शिक्षा में किसी तरह का नीतिगत बदलाव नहीं हुआ है या यह कोई नया फैसला नहीं है। उन्होंने कहा कि यह अधिसूचना आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए ऑपरेशन के सभी क्षेत्रों को नहीं खोलती है, बल्कि उन्हें कुछ सीमित तरह के ऑपरेशन करने की अनुमति देती है। 

आईएमए ने केंद्र के फैसले पर जताई आपत्ति  
आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टरों को ऑपरेशन करने का छूट देने के फैसले का इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने विरोध किया है। आईएमए ने इसे देश को पीछे की तरफ ले जाना वाला कदम करार देते हुए आदेश को वापस लेने की मांग की है। आईएमए ने सीसीआईएम से अनुरोध किया कि आयुर्वेद के चिकित्सकों को उनकी प्राचीन पुस्तकों के जरिये खुद से अपनी सर्जिकल शाखा विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। आयुर्वेद चिकित्सकों को आधुनिक मेडिसिन की सर्जिकल विधियों को अपना नहीं बताना चाहिए।

आईएमए की ओर से यह भी मांग की गई है कि आयुर्वेद कॉलेजों में मॉडर्न मेडिसिन के किसी डॉक्टर की नियुक्ति नहीं की जाए। आईएमए ने सवाल किया कि अगर मेडिकल के क्षेत्र में इस तरह के वैकल्पिक रास्ते तैयार कर दिए जाएंगे तो नीट जैसी परीक्षाओं का क्या मतलब रह जाएगा ?