कोडरमा। "तुम्हारी औकात नहीं कि राजधानी जैसी वीआईपी ट्रेन में बैठो। इस ट्रेन में अधिकारी और बड़े लोग सफर करते हैं, चलो उतरो ट्रेन से। ट्रेन से नहीं उतरे तो पांच हजार का फाइन काट देंगे।" यह कहते हुए टीटीई ने मजदूरों को राजधानी ट्रेन से धक्के मारकर नीचे उतार दिया। इन मज़दूरों के पास राजधानी का टिकट था, लेकिन टीटीई को उनकी वेशभूषा और हैसियत कथित बड़े लोगों की ट्रेन में चलने लायक नहीं लगी। करीब 127 साल पहले ऐसा ही वाकया महात्मा गांधी के साथ दक्षिण अफ्रीका में हुआ था, जब उन्हें ट्रेन से धक्के मारकर बाहर किया गया था और सत्याग्रह की नींव पड़ी थी। दोनों घटनाओं में एक बात कॉमन है। गांधी के पास भी टिकट था और मजदूरों के पास भी। 

दरअसल, बीते 16 दिसंबर को रामचंद्र यादव और अजय यादव नाम के दो मजदूर नई दिल्ली-भुवनेश्वर राजधानी ट्रेन से विजयवाड़ा जा रहे थे। तभी सुबह 5:22 बजे कोडरमा स्टेशन पर टीटीई ने दोनों को ट्रेन से धक्का मार कर उतार दिया। इसका कारण यह बताया कि राजधानी जैसे ट्रेनों में चढ़ने की उनकी औकात नहीं है जबकि उन्होंने बाकायदा टिकट भी खरीदी थी। इस दौरान मजदूर हाथ जोड़कर टीटीई से टिकट दिखाते हुए आग्रह कर रहे थे कि हमें भी जाने दो लेकिन वह नहीं माना।

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हिंदी अखबार दैनिक भास्कर ने मजदूरों के हवाले से बताया कि उन्हें विजयवाड़ा और फिर नैनूर जाना था। ठंड में सफर आसान हो, इसलिए उन्होंने राजधानी ट्रेन में सीट बुक कराई। इससे पहले भी वे दो बार टिकट बुक करा चुके थे, लेकिन सीट कंफर्म नहीं हुई। तीसरे प्रयास में 16 दिसंबर को राजधानी ट्रेन की B-6 बोगी में 10 व 15 नंबर की बर्थ कंफर्म हुई जिसमें वह सफर कर रहे थे। 

ट्रेन से उतारे जाने के बाद वह कोडरमा के स्टेशन मास्टर से इस बात की शिकायत की। उन्होंने शिकायत पुस्तिका में पूरा वृतांत लिखवाया। स्टेशन प्रबंधक का कहना है कि इस शिकायत को वरीय अधिकारियों के पास फॉरवर्ड कर दी गई है। वहीं रेल मंडल धनबाद के डीआरएम का कहना है कि उन्हें इस बात की जानकारी तक नहीं है। उन्होंने कहा है कि यदि ऐसा हुआ है तो जांच के बाद संबंधित टीटीई के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। 

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यहां सवाल सिर्फ इस बात का नहीं है कि उस टीटीई पर अबतक कार्रवाई क्यों नहीं हुई। सवाल पूरे सिस्टम पर है। क्या रेलवे को पीड़ित मजदूरों के लिए उसी वक्त अलग से व्यवस्था नहीं करनी चाहिए थी? मजदूरों को अपने पैसे से राजधानी एक्सप्रेस में सफर करने का अधिकार नहीं है? एक देश, एक कानून और एक संविधान का नारा क्या सिर्फ कागजों तक सीमित रहेगा? ठीक ऐसी ही एक घटना ने जिस देश को आजादी दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाई हो उसी देश में उसी प्रकार की घटना को दोहराया जाना सोचने के लिए मजबूर कर देता है।