पटना/नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है। पीएम नरेंद्र मोदी भी राज्य के चुनावी समर में कूद गए हैं। पीएम मोदी ने शुक्रवार को बिहार में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत समस्तीपुर में स्थित कर्पूरी ग्राम से किया। जो भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की जन्मस्थली भी है। उनके इस दौरे के बीच कांग्रेस ने RSS और जनसंघ पर कर्पूरी ठाकुर की सरकार गिराने के आरोप लगाए हैं।
कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने पीएम मोदी से तीन सवाल किए हैं। उन्होंने पूछा कि क्या यह सच नहीं है कि अप्रैल 1989 में RSS और जनसंघ ने मिलकर कर्पूरी ठाकुर जी की सरकार गिराई थी? कांग्रेस नेता के मुताबिक ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि तब जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने नई आरक्षण नीति अपनाई थी। जिसमें OBC को 26% आरक्षण देने के लिए एक अधिनियम पेश कर विधानसभा में पारित किया गया था।
जयराम रमेश ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और अन्य नेताओं ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई, तो नरेंद्र मोदी ने 28 अप्रैल, 2024 को कहा कि जो लोग जातिगत जनगणना की वकालत करते हैं, वे 'अर्बन नक्सल' मानसिकता वाले हैं। जिन नरेंद्र मोदी ने यह बात कही, अब वही कहते हैं कि अगले साल जातिगत जनगणना कराएंगे।
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि जब बिहार में महागठबंधन सरकार ने जाति सर्वेक्षण कराया और उसके आधार पर दलित, आदिवासी, OBC और EBC समुदायों को 65% आरक्षण देने वाला अधिनियम पारित किया। ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। लेकिन सवाल है कि बिहार की 'ट्रबल इंजन' सरकार ने इस एक्ट को संवैधानिक संरक्षण क्यों नहीं दिया? इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल क्यों नहीं किया?
इससे पहले जयराम रमेश ने एक एक्स पोस्ट में लिखा था कि कर्पूरी ठाकुर जी ने 1978 में पिछड़ों को 26 प्रतिशत आरक्षण देकर सामाजिक न्याय की ऐतिहासिक नींव रखी थी। क्या यह सही नहीं है कि आपकी पार्टी के वैचारिक पूर्वज जनसंघ और आरएसएस ने उनकी आरक्षण नीति का खुलकर विरोध किया था? क्या उस समय जनसंघ-आरएसएस ने सड़कों पर कर्पूरी ठाकुर जी के खिलाफ अपमानजनक और घृणा से भरे नारे नहीं लगाए थे? क्या उस दौर में जनसंघ-आरएसएस खेमे के प्रमुख नेताओं ने कर्पूरी ठाकुर सरकार को अस्थिर करने और गिराने में अहम भूमिका नहीं निभाई थी? कांग्रेस नेता ने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री आज उस ऐतिहासिक गलती के लिए अपने वैचारिक पूर्वजों - जनसंघ और आरएसएस - की ओर से माफ़ी मांगेंगे?