चेन्नई/पुणे। पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट में बनाई जा रही कोविड-19 वैक्सीन कोविशील्ड के ट्रायल में भाग लेने वाले एक वालेंटियर ने वैक्सीन की वजह से गंभीर न्यूरोलॉजिकल और ज्ञानेंद्रिय संबंधी समस्याएं होने का आरोप लगाया है। चेन्नई के इस वॉलंटियर ने इस नुकसान के लिए 5 करोड़ के हर्ज़ाने का दावा करने की बात भी कही है। लेकिन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर यह वैक्सीन बना रही भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने इन आरोपों को गलत बताया है। इतना ही नहीं पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने आरोप लगाने वाले वॉलंटियर पर सौ करोड़ रुपये की मानहानि का दावा करने की धमकी भी दी है। 

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का कहना है कि उसे वॉलंटियर की सेहत से जुड़ी समस्याओं के लिए उससे सहानुभूति है, लेकिन उन समस्याओं का वैक्सीन के परीक्षण से कोई लेना-देना नहीं है। कंपनी वॉलंटियर के आरोपों को गलत और दुर्भावनापूर्ण बता रही है। कंपनी ने सफाई दी है कि वह वालेंटियर अपनी हेल्थ प्राब्लम्स के लिए टीके को गलत तरीके से जिम्मेदार बता रहा है।

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आपको बता दें कि कोविशील्ड वैक्सीन एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी मिलकर विकसित कर रहे हैं। इसके प्रोडक्शन और ट्रायल का जिम्मा पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को मिला है। तमिलनाडु के एक वालेंटियर ने दवा बनाने वाले सीरम इंस्टीट्यूट और उसकी सहयोगी कंपनियों से पांच करोड़ रुपए का हर्जाना मांगा है। उसका आरोप है कि वैक्सीन के उपयोग के बाद उसे कॉग्निटिव इंपेयरमेंट और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उसकी याददाश्त पर असर पड़ा है, उसकी लर्निंग और किसी भी काम के लिए फोकस करने और कंसंट्रेशन करने में दिक्कत हो रही है। इसी वजह से उसने 5 करोड़ का हर्जाना मांगा है और कोविशील्ड की टेस्टिंग, उत्पादन और डिस्ट्रीब्यूशन बंद करने की मांग की थी। उसने ऐसा नहीं किए जाने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी है।

इस बारे में वॉलंटियर की तरफ से सीरम इंस्टीट्यूट, ICMR और रामचंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च को लीगल नोटिस भेजा गया है। इसके अलावा ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया, ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ट्रायल के चीफ इन्वेस्टिगेटर एंड्रयू पोलार्ड, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की जेनर इंस्टीट्यूट लैबोरेटरी और एस्ट्राजेनेका को भी नोटिस भेजा गया है।

अब तक यह साफ नहीं है कि अगर वैक्सीन से नुकसान का दावा करने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य से जुड़ी इतनी गंभीर समस्याएं थीं, तो उसका वैक्सीन के परीक्षण के लिए वॉलंटियर के तौर पर चयन किसने, क्यों और किन हालात में किया? और अगर वैक्सीन लगाए जाने से पहले वॉलंटियर तंदुरुस्त था, तो बाद में उसकी सेहत बिगड़ने पर कंपनी इतनी आसानी से पल्ला कैसे झाड़ रही है? मौजूदा हालात में तो यही लगता है कि किसी निष्पक्ष जांच से ही पूरी सच्चाई सामने आ सकती है। अगर वॉलंटियर के दावों में ज़रा भी सच्चाई हुई तो उसकी अनदेखी करना करोड़ों लोगों की सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है।