नई दिल्ली। शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक स्थानों पर हमेशा के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता और विरोध प्रदर्शन केवल निश्चत स्थानों पर होने चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि यह स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वो सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण और रास्तों को ब्लॉक ना होने दे। कोर्ट ने कहा कि असहमति और लोकतंत्र साथ-साथ चलते हैं। 

जस्टिस एसके कौल, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने कहा कि क्योंकि इस मामले में प्रशासन ने सार्वजनिक स्थान को खाली कराने के संबंध में कोई कदम नहीं उठाया इसलिए कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। बेंच ने कहा कि प्रोटेस्ट के लिए सार्वजनिक स्थानों का अतिक्रमण कर लेना स्वीकार नहीं किया जा सकता। 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 21 सितंबर को ही अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने तब यह टिप्पणी की थी कि विरोध प्रदर्शन करने के अधिकार को दूसरे लोगों द्वारा सड़क का प्रयोग करने के अधिकार के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार की पैरवी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि विरोध प्रदर्शन करना मूल अधिकार है लेकिन इसके ऊपर भी पाबंदियां लगाई जा सकती हैं। 

इससे पहले 23 मार्च को कोरोना वायरस लॉकडाउन की घोषणा के बाद पुलिस ने शाहीन बाग धरना स्थल को खाली करा दिया था। दक्षिण पुर्वी दिल्ली में 15 दिसंबर को इस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत हुई थी। करीब 300 महिलाएं इस प्रदर्शन का अग्रणी चेहरा रहीं, इसमें अनेक छोटे-छोटे सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने हिस्सा लिया। दिल्ली के शाहीन बाग से प्रेरित होकर देश भर में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ इसी तरह के विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए। विरोध प्रदर्शनों में बूढ़ी औरतों ने हिस्सा लिया। इस विरोध प्रदर्शन में शामिल एक बुजुर्ग महिला को टाइम्स पत्रिका ने हाल ही में दुनिया के 100 सबसे शक्तिशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया। 

शाहीन बाग के पास गोलियां भी चलीं और पेट्रोल बम भी फेंके गए। लेकिन इसके बाद भी प्रदर्शनकारी पीछे नहीं हटे।