लगभग एक हफ्ते पहले मंडी एक्ट में बदलाव के बाद शिवराज सरकार एक और बड़ा कदम उठाने जा रही है, जिससे मध्य प्रदेश के किसानों पर व्यापक असर पड़ सकता है। एमपी सरकार ने सोयाबीन के पुराने बीज को बाजार में बेचने के लिए केंद्र से अनुमति हासिल कर ली है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की 4 मई को लिखी एक चिट्ठी से स्पष्ट है कि मध्य प्रदेश सरकार को सोयाबीन की वेराइटी JS 93-05 के लिए केन्द्रीय कृषि मंत्रालय की अनुमति मिल गई है।

मध्य प्रदेश सरकार ने 22 अप्रैल 2020 को एक चिट्ठी लिखकर केंद्रीय कृषि मंत्रालय से ये अनुमति मांगी थी कि सोयाबीन की इस JS 93-05 वेराइटी जिसने इस साल तीन जेनेरेशन पूरा कर लिया है, उसे चौथे जेनेरेशन के लिए अनुमति दे दी जाए। इस आधार पर केंद्र सरकार ने सोयाबीन के इस 15 साल पुराने बीज को खरीफ सीजन 2020 में बुआई की अनुमति दे दी है।

केंद्र सरकार की तरफ से लिखी गई चिट्ठी में ये कहा गया है कि जहां तक सोयाबीन की  JS 93-05 वेराइटी को 2025 तक के लिए सरकारी उत्पादन और वितरण की अनुमति देने का सवाल है, उस निवेदन पर फैसला oil & seed विभाग करेगा। लेकिन केंद्र सरकार के इस फैसले से किसान आशंकित हैं। उनका कहना है सोयाबीन के बीज की ये वेरायटी वैसे ही अपनी उम्र पूरी कर चुकी है। अगर इसे पांच साल और इस्तेमाल के लिए अनुमति दी गई तो इससे सोयाबीन के उत्पादन पर भारी असर पड़ सकता है। पुराने बीज से उत्पादन कम होगा, लागत ज्यादा आएगी और फसल को बीमारी का खतरा भी ज्यादा होगा। यही नहीं, किसानों का कहना है कि इन पंद्रह सालों में बीज की बेहतर किस्में बाज़ार में आ चुकी हैं, फिर एक खास किस्म के बीज को पुर्नजीवन देना और पुर्नप्रयोग के लिए अनुमोदित करना समझ से परे है।

किसान संगठनों का आरोप है कि सरकार ने किसानों की बजाय व्यापारियों के हित में ये फैसला किया है। क्योंकि मध्य प्रदेश में सोयाबीन सीड का कारोबार लगभग 300 करोड़ का है। और सोयाबीन हमेशा से राज्य के लिए गोल्डेन क्रॉप मानी गई है। गौरतलब है कि राज्य में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत लगभग 20 हजार हेक्टेयर जमीन पर सोयाबीन सीड का उत्पादन होता है। सामान्य मौसम में 3.5 से 4.0 लाख क्विंटल सोयाबीन सीड की उपज मानी गई है। इसीलिए किसान संगठनों को डर है कि एमपी सरकार सीड मार्केट के दबाव में किसानों को पुराने बीज खरीदने के लिए मजबूर कर सकती है।