सुप्रीम कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के मालिक अर्णब गोस्वामी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पालघर लिंचिंग की घटना से संबंधित टीवी कार्यक्रम में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने और मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का अनुरोध किया था। पालघर लिंचिंग मामले के संबंध में दिखाए गए कार्यक्रम को लेकर अर्णब गोस्वामी के खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाते हुए नागपुर में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस एफआईआर को मुंबई में ट्रांसफर कर दिया है।

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जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने अपने 56 पेज के फैसले में कहा कि इस एफआईआर को रद्द कराने के लिये अर्णब गोस्वामी को सक्षम अदालत के पास जाना होगा। हालांकि, पीठ ने अर्णब गोस्वामी को किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से तीन सप्ताह का संरक्षण प्रदान कर दिया है। इसी तरह मामले की जांच को सीबीआई को ट्रांसफर ना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, “आरोपी यह तय नहीं कर सकता कि जांच कहां होगी। बेंच ऐसा कोई कारण नहीं खोज पाई है जिससे मामले की जांच को सीबीआई को ट्रांसफर किया जाए।”

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बेंच ने कहा कि केवल आरोपी के चाहने पर मामले की जांच सीबीआई को नहीं सौंपी जा सकती, यह केवल असाधारण परिस्तिथियों में हो सकता है। हालांकि, पीठ ने 24 अप्रैल के अपने अंतरिम आदेश को दोहराते हुए अर्णब गोस्वामी के खिलाफ नागपुर में दर्ज एफआईआर के अलावा बाकी सभी एफआईआर रद्द कर दीं। इस दौरान बेंच ने मीडिया की आजादी के बारे में भी टिप्पणी की। पीठ ने यह भी कहा कि अब इस मामले में कोई नई एफआईआर दर्ज नहीं होगी।

कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत पत्रकार का अधिकार ऊंचे पायदान पर होता है और भारत में प्रेस की आजादी उस समय तक है जब तक पत्रकार सत्ता के सामने सच बोल सकता है लेकिन यह स्वतंत्रता निर्बाधित नहीं है।