पटियाला। पंजाब के पटियाला जिले के ढाबलन गांव में पिछले 12 वर्षों से हर रोज कम से कम एक पेड़ लगाए जाते थे। यह गांव इन 12 वर्षों में मनुष्यों के रहने वाले जंगल का रूप ले चुका है। गांव में चारों ओर सघन वृक्ष लगे हुए हैं। हालांकि, बीते 17 मई से गांव में एक भी पेड़ नहीं लग पाया है। कारण साफ है पेड़ लगाने वाला और उनकी देखभाल करने वाला अब इस दुनिया में नहीं रहा।

पौधरोपण को जीवन का मकसद बना चुके हरदयाल सिंह बीते 25 मई को कोरोना वायरस से लड़ते हुए जिंदगी की जंग हार गए। 67 वर्षीय बुजुर्ग की मौत दम घुटने यानी ऑक्सीजन न मिलने की वजह से हुई। हरदयाल सिंह ने अपने जीवन में 10 हजार से अधिक पेड़ लगाए थे, जो लाखों लोगों को ऑक्सीजन देने के लिए पर्याप्त हैं। मगर नियति का खेल यह है कि खुद को जब ज़रूरत पड़ी तो ऑक्सीजन नहीं मिल पाया और उनकी मौत हो गई।

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हरदयाल सिंह की पत्नी कुलविंदर कौर कहती हैं कि पर्यावरण में ऑक्सीनज को बढ़ाने और गांव में सांस लेने लायक हवा बनाने के लिए उन्होंने खुद को समर्पित कर दिया था। पति को याद कर वह फूट-फूटकर रोने लगती हैं। उनकी शिकायत है, परमात्मा और प्रकृति से। वह कहती हैं, 'जिस आदमी ने इतने पेड़ लगाए ताकि ऑक्सीजन बढ़ सके, हवा साफ हो सके, मगर परमात्मा और प्रकृति ने उसे ही ऑक्सीजन नहीं दी...किस्मत देखो। दम घुटने से उसकी मौत हो गई।' 

कुलविंदर के मुताबिक घर के लोगों ने हरदयाल सिंह को बाइक खरीदने के लिए काफी बोला, लेकिन वह जिद पकड़े हुए थे कि बाइक से प्रदूषण फैलता है। हरदयाल के कारण उनके घर में बाइक व कार जैसे वाहन नहीं खरीदे गए। हरदयाल खुद भी साइकिल की सवारी करते थे। कीचड़-मिट्टी से सने हाथ, हाथों में फावड़ा, साइकिल पर मिट्टी की बोरी, इतने में हरदयाल की जिंदगी सिमटी हुए थी। गांव के सरपंच करण वीर सिंह ने कहते हैं कि, 'हमने या तो उन्हें कहीं पेड़ खोदते और लगाते या उसे पानी देते या पौधे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हुए ही देखा है। उन्होंने श्मशान के बगल में एक छोटा जंगल बना दिया है।'

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हरदयाल सिंह साल 2013 में पेप्सू रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन से स्टेनोग्राफर के रूप में रिटायर हुए थे। ग्रामीण एक वाकया याद करते हैं जब कुछ साल पहले रेलवे विभाग को गांव से होकर गुजरने वाली रेलवे लाइन के लिए एक पावर ग्रिड बनाना था, रास्ते में एक पीपल का पेड़ था जिसे अधिकारी काटने की फिराक में थे। पेड़ काटने का आदेश भी दिया गया लेकिन बीच में हरदयाल सिंह आए और आखिरकार ने उन्होंने पेड़ को कटने नहीं दिया। 

हरदयाल सिंह की पत्नी कुलविंदर कौर ने बताया की 17 मई को वे कोरोना संक्रमित पाए गए थे, उस सयम तक उन्हें सांस लेने संबंधी कोई दिक्कत नहीं थी। उनके गांव से चंडीगढ़ के अस्पताल तक की दूरी दो घंटे की है। ग्रामीणों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने के लिए काफी जद्दोजहद की लेकिन ऑक्सीजन बेड ढूंढने में दो दिन लग गए। 19 मई को देर रात चंडीगढ़ के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में उन्हें भर्ती कराया गया था। उनका ऑक्सीजन लेवल बहुत कम था। सेहत में सुधार ना होने की वजह से उन्हें 23 तारीख को वेंटिलेटर पर शिफ्ट किया गया, लेकिन 25 मई को उनकी मृत्यु हो गई।