उद्भवस्थिति संहार कारणीं
क्लेश हारिणीं सर्व श्रेयस्करीं
सीतां नतोSहं राम वल्लभाम्

भगवती जनक राज किशोरी पराम्बा ही इस सम्पूर्ण सृष्टि के उद्भव,स्थिति और संहार की कारण हैं। देवी भागवत के प्रारंभ की कथा आती है कि एक राजा सत्यव्रत थे। उन्होंने तपस्या करके वरदान मांगा कि प्रलय कालीन दृश्य देखूं। उसके सातवें दिन इतनी घोर वर्षा हुई कि संपूर्ण जगत जलाप्लावित हो गया। उस समय एक नाव आई,उस नाव में पृथ्वी के बीज रखकर सप्तर्षियों सहित राजा भी बैठ गये और भगवान  मत्स्यावतार लेकर नाव की रस्सी अपनी सींग में बांधकर चलाने लगे। प्रलय का अथाह जल सर्वत्र फैला हुआ था, उसको देखते हुए प्रयाग पहुंचे। वहां उन्हें अक्षय वट का दर्शन हुआ और उस वटपत्र पर बालमुकुंद का भी दर्शन हुआ।

करारविन्देन पदारविन्दं

मुखारविंदे विनिवेशयन्तं।

वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं,

बालमुकुंदं मनसास्मरामि

बालमुकुंद अपने करारविन्द से दाहिने चरण का अंगूठा अपने श्री मुख में रखे हैं। उनका दिव्य दर्शन हुआ और उन श्री बालमुकुंद के श्री मुख से निकला-

 सर्वंखल्विदं ब्रह्म

नेह नानास्ति किंचन

अर्थात् सब-कुछ ब्रह्म है। ये बालमुकुंद भगवान विष्णु के अवतार हैं। सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान विष्णु शेष शैय्या पर सोये थे, उनकी नाभि से कमल निकला उससे ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी अपना उत्पत्ति स्थान ढूंढ़ने लगे, बहुत समय व्यतीत होने पर ब्रह्मा जी ने भगवान की स्तुति की और कहा कि आप ही जगत् के कारण हैं। तब श्रीमन्नारायण ने कहा कि मैं इस जगत का कारण नहीं हूं। मेरा भी कोई कारण है। ब्रह्मा जी ने कहा कि भगवन्! आपका कारण कौन है? तो विष्णु जी ने कहा कि हमारा कारण परमशक्ति हैं, जगदम्बा हैं। उससे ही जगत् की सृष्टि होती है और मुझे भी वही शक्ति प्रदान करती हैं।

सृष्टि के प्रारम्भ में जब भगवती ने जगत् को उत्पन्न करने का संकल्प किया तो ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई, उन्होंने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि मां! क्या आज्ञा है? मां ने कहा सृष्टि करो, तो ब्रह्मा बोले शक्ति दो, तो मां ने सरस्वती को उत्पन्न किया। उसके बाद सृष्टि होकर नष्ट हो जाती थी, तो पालन का संकल्प किया विष्णु की उत्पत्ति हुई। विष्णु ने आज्ञा मांगी तो भगवती ने पालन का आदेश दिया।

विष्णु ने शक्ति मांगी तो लक्ष्मी को शक्ति के रूप में प्रदान किया तो पालन होने लगा। ‌अब लोग बहुत बढ़ गए तो मां ने थोड़ा सा क्रोध किया। तो रूद्र उत्पन्न हो गये। रुद्र ने हाथ जोड़कर कहा क्या आज्ञा है, तो मां बोलीं कि संहार करो। रुद्र ने कहा कि थोक में संहार करूं या फुटकर? तो जगदम्बा ने कहा कि धीरे-धीरे संहार करना है। तो उन्होंने कहा इसके लिए शक्ति की आवश्यकता है, तो उन्हें गौरी को शक्ति रूप प्रदान करके संहार कार्य में लगा दिया। इस प्रकार भगवती ही इस सृष्टि के उत्पत्ति,पालन और संहार की परम कारण हैं।

 उद्भवस्थिति संहार कारिणीं