भारत वर्ष उत्सव प्रधान देश है। हमारे यहां वर्ष भर में अनेक पर्व उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा है। भारत में चार त्योहार मुख्य रूप से मनाए जाते हैं। श्रावणी (रक्षाबंधन), दशहरा, दीपावली और  होली। बहुत से लोग इन चार पर्वों को वर्णों के त्योहार के रूप में भी देखते हैं। इसी क्रम में आज होली का परम पावन पर्व है। इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। भक्त प्रवर श्री प्रह्लाद के पिता हिरण्यकशिपु नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र भगवद्भक्त हो, और दूसरी ओर प्रह्लाद की भक्ति तो लोक लोकान्तर में भी प्रसिद्ध है। अब प्रह्लाद भक्ति की दिशा में आगे न बढ़ें, इसलिए हिरण्यकशिपु उन्हें अनेक प्रकार से प्रताड़ित करने लगा।

अपने भाई का सहयोग करने के लिए हिरण्यकशिपु की एक बहन थीं जिनका नाम होलिका था। उन्होंने कहा कि भइया! मेरे पास एक साड़ी है जिसको धारण कर लेने से अग्नि का असर नहीं होता। हिरण्यकशिपु ने कहा कि बहन! मेरा एक उपकार कर दो। तुम प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाओ। तुम तो अपनी साड़ी के कारण बच जाओगी और हमारा प्रह्लाद रूपी कंटक दूर हो जायेगा। होलिका ने वैसा ही किया।

जैसे ही प्रह्लाद को गोद में लेकर होलिका बुआ विराजमान हुईं वैसे ही प्रभु कृपा से इतनी तीव्र गति से वायु संचरित हो गई कि होलिका की साड़ी उड़कर भक्त को आविष्ट कर लिया। प्रह्लादजी तो बच गए और होलिका जल गईं। आज भी भारतवासी होलिका दहन करके मानो ये बताना चाहते हैं कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा विषम से विषम परिस्थिति में करते हैं। अतः संसार समुद्र से पार होने के लिए भगवत्शरणागति एक श्रेष्ठ साधन है।

यूं तो होली का त्योहार सम्पूर्ण भारत में सोल्लास मनाया जाता है। किन्तु ब्रज की होली अद्भुत है। वृंदावन में तो इस समय गली-गली में एक ही धुन सुनाई पड़ती है, आज विरज में होरी रे रसिया इसके साथ ही आप सभी को होली की अनेकशः शुभकामनाएं।