अच्छे दिन तो नहीं आए, उसके पहले मौत ने दस्तक दी, हुकुमचंद मिल के मजदूर पिता की मौत पर फफक पड़ी बेटी

हुकुमचंद मिल के मजदूर जगदीश सिंह जादौन की बेटी मनीषा ने कहा कि जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पहले कार्यक्रम में मजदूरों के बकाया रुपए जमा कराए जाने की घोषणा की तो वे बहुत खुश हो गए थे।

Updated: Jan 25, 2024, 04:36 PM IST

इंदौर। इंदौर के बंद पड़े हुकुमचंद मिल के मजदूरों को 32 साल से अटके हुए पैसों के भुगतान के लिए सीएम मोहन यादव ने पिछले महीने ही चेक सौंप दिए थे। हालांकि, असलियत ये है कि उन्हें अबतक रुपए नहीं मिले हैं और पैसों के इंतजार में मजदूर दम तोड़ रहे हैं। जल्द ही अच्छे दिन आने वाले हैं, यह कहते-कहते इंदौर के 88 वर्षीय मजदूर जगदीश सिंह जादौन की 17 जनवरी की मौत हो गई। 

जगदीश जादौन मिल का बकाया रुपया पाने के लिए 32 साल से लड़ाई लड़ रहे थे। वे उन पात्र मजदूरों में थे जिन्हें उनकी बकाया राशि मिलना है। वे हर हफ्ते मजदूर यूनियन की मीटिंग में जाते थे। उनकी बेटी
मनीषा कहती हैं कि पापा कहते थे बेटा, अच्छे दिन आने ही वाले हैं। हमारे पैसे खाते में अब आ जाएंगे। बीमारियों के कारण जो साढ़े 3 लाख का कर्जा है, सबसे पहले उसी को उतारूंगा। छोटा सा मकान खरीद लेंगे, लेकिन रुपए तो नहीं आए, माैत उससे पहले आ गई। पापा ही हमारे लिए सब कुछ थे। अभी तो हमारे उनके कर्मकांड के लिए भी रुपए नहीं है।

हुकुमचंद मिल के मजदूर जगदीश सिंह जादौन की बेटी मनीषा ने कहा कि जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पहले कार्यक्रम में मजदूरों के बकाया रुपए जमा कराए जाने की घोषणा की तो वे बहुत खुश हो गए थे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को 224 करोड़ का प्रतीकात्मक चेक सौंपते फोटो देखा तो लगा कि अब हमारी आस पूरी हो गई। पर हमें क्या पता था कि वे जीते जी न उस रकम को खाते में देख पाएंगे, न कर्ज उतरेगा, न कोई मकान खरीदेंगे।

मनीषा के मुताबिक जादौन को आठ सालों में दो बार अटैक आया और किडनी में भी दिक्कत हो गई थी। उन्हें काफी पहले से अस्थमा था। इलाज के लिए उनके पास रुपए नहीं थे। उधार लेते रहे तो कर्ज 3.5 लाख रुपए से ज्यादा का गया। कोरोना के बाद हालत और बिगड़ते गई। 88 साल की उम्र में वे लगभग बिस्तर पर ही थे।