भोपाल। मध्य प्रदेश की स्कूली शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर गंभीर सवालों के घेरे में है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के भोपाल दौरे के दौरान बच्चों में कुपोषण और स्कूलों की बदहाल स्थिति पर की गई टिप्पणी के बाद सियासी और प्रशासनिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। इस बयान को आधार बनाते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला और शिक्षा से लेकर पोषण तक पूरे सिस्टम को विफल करार दिया है।
जीतू पटवारी ने कहा कि वह धर्मेंद्र प्रधान का अभिनंदन करते हैं क्योंकि उन्होंने मध्य प्रदेश की वास्तविक स्थिति देश के सामने रखी है। पटवारी के मुताबिक बच्चों के पोषण के लिए प्रतिदिन केवल 12 रुपए खर्च दिखाया जाता है। जबकि, सरकारी कागजों में गायों के चारे पर 40 रुपए प्रतिदिन का प्रावधान है। उन्होंने आरोप लगाया कि न बच्चे कुपोषण से बच पा रहे हैं और न ही गौशालाओं में गायों की स्थिति सुधर रही है। यह ऐसा शासन है जहां न मानव जीवन की अहमियत है और न पशु जीवन की, सिर्फ बजट और फाइलों का खेल चल रहा है।
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पटवारी ने दावा किया कि मध्य प्रदेश आज शिशु मृत्यु दर में देश में पहले स्थान पर है। कुपोषण और स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बेहद चिंताजनक है। लेकिन सरकार न तो कोई ठोस कार्रवाई करती है, न जांच, न जवाबदेही तय होती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यवस्था में फैला अंधकार महज प्रशासनिक चूक नहीं बल्कि सत्ता की उदासीनता और भ्रष्टाचार का नतीजा है।
उन्होंने सरकारी UDISE आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि साल 2017-18 में कक्षा 1 से 12 तक कुल नामांकन 1 करोड़ 60 लाख था जो साल 2024-25 में घटकर 1 करोड़ 04 लाख रह गई। यानी सात साल में 56 लाख बच्चे स्कूल व्यवस्था से बाहर हो गए। पटवारी ने सवाल उठाया कि ये बच्चे कहां गए, क्या वे मजदूरी करने को मजबूर हुए, बाल विवाह या बाल श्रम का शिकार बने या फिर व्यवस्था से भरोसा ही टूट गया?
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बजट को लेकर भी उन्होंने सरकार पर निशाना साधा है। पटवारी के मुताबिक साल 2017 में स्कूल शिक्षा का बजट 7 हजार करोड़ रुपए था जो 2024-25 में बढ़कर 37 हजार करोड़ रुपए हो गया। इसके बावजूद हालात यह हैं कि मिड-डे मील में बच्चों को सूखी रोटी और नमक मिल रहा है। सेब, अंजीर, बादाम और दूध जैसे पोषक आहार कागजों में ही सीमित हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश के 14 हजार से ज्यादा स्कूलों में केवल एक शिक्षक हैं, 10 हजार स्कूल बिना प्रिंसिपल के चल रहे हैं और करीब 25 फीसदी स्कूलों में विज्ञान और गणित के शिक्षक ही नहीं हैं। पटवारी ने सीधा सवाल किया कि अतिरिक्त 30 हजार करोड़ रुपए आखिर गए कहां।
इसी बीच स्कूलों की निगरानी को लेकर एक और चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। स्कूल शिक्षा विभाग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश के 87,943 स्कूलों में से 70,967 स्कूलों का इस वित्तीय वर्ष में कम से कम एक बार निरीक्षण किया गया है। लेकिन 16,967 स्कूल ऐसे हैं जिन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। इन स्कूलों का न कलेक्टरों ने निरीक्षण किया, न जिला शिक्षा अधिकारियों ने और न ही किसी अन्य जिम्मेदार अफसर ने।
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निरीक्षण के मामले में सतना जिला सबसे खराब स्थिति में है जहां 1,675 स्कूलों का अब तक कोई निरीक्षण नहीं हुआ। इसके बाद छतरपुर का नंबर आता है जहां 1,488 स्कूलों में कभी कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। इन स्कूलों में बच्चों को किस तरह पढ़ाया जा रहा है और बुनियादी सुविधाओं की क्या हालत है इसकी जानकारी तक किसी को नहीं है।
हालांकि, कुछ जिलों में स्थिति बेहतर बताई गई है। हरदा जिले में कम स्कूल होने के कारण सभी 661 स्कूलों का निरीक्षण किया जा चुका है। विदिशा के 1,983 और ग्वालियर के 1,441 स्कूलों का भी पूरी तरह निरीक्षण हुआ है। इसके बावजूद सिधि, छिंदवाड़ा, सागर, शहडोल, रीवा, धार और अलीराजपुर जैसे जिलों में हालात संतोषजनक नहीं माने जा रहे।
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भोपाल दौरे पर आए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्य सरकार को स्कूलों और बच्चों पर विशेष ध्यान देने के निर्देश दिए हैं। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि जब बजट बढ़ चुका है, योजनाएं मौजूद हैं और आंकड़े सामने हैं तो फिर बच्चे कुपोषित क्यों हैं, स्कूल खाली क्यों हो रहे हैं और हजारों स्कूल बिना निगरानी के कैसे चल रहे हैं?