नई दिल्ली। 24 घंटे से भी कम समय के भीतर वित्त मंत्री द्वारा छोटी बचत के ब्याज दरों में कटौती का फैसला वापस लिए जाने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। वित्त मंत्री द्वारा अचानक फैसला बदलने को लेकर यही सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर इतनी जल्दी वित्त मंत्रालय ने अपने फैसले को क्यों बदला? अब बिजनेस टुडे ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है कि अपने फैसले से पलटने का निर्णय वित्त मंत्री और उनके मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय के दखल के बाद लिया। 

दरअसल गुरुवार सुबह से पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव का दूसरा चरण शुरू होने वाला था। लेकिन दूसरे चरण के मतदान शुरू होने से ठीक पहले ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने ट्विटर हैंडल पर बुधवार को वित्त मंत्रालय द्वारा छोटी बचत के ब्याज दरों से जुड़े हुए नोटिफिकेशन को रद्द करने की घोषणा कर दी। वित्त मंत्री ने कहा था कि बचत के ब्याज दरों में कटौती से जुड़ा हुआ नोटिफिकेशन भूल वश जारी हुआ था। 

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भले ही निर्मला सीतारमण ने कहा कि उनके मंत्रालय से भूलवश ये नोटिफिकेशन जारी हुआ लेकिन बिजनेस टुडे में वित्त मंत्रालय के अधिकारी के हवाले से अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि वित्त मंत्रालय को अपना फैसले बदलने के लिए सुबह सुबह ही प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया था। जिसके एक घंटे के भीतर नए रेट के फैसले को रद्द करने का फैसला कर लिया गया।

क्या था फैसला 

दरअसल बुधवार को वित्त मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन जारी करते हुए पीपीएफ यानी पर्सनल प्रोविडेंट फंड पर मिलने वाले सालाना ब्याज दर को 6.4 फीसदी करने का फैसला किया था। 1974 के बाद यानी पिछले 47 वर्षों में सरकार पहली बार इतना कम इंट्रेस्ट देने वाली थी। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने वन ईयर टाइम डिपॉज़िट पर मिलने वाले ब्याज दर को 5.5 फीसदी से घटाकर 4.4 फीसदी कर दिया था। इसके साथ ही वरिष्ठ नागरिकों की बचत योजना सीनियर सिटिज़न सेविंग स्कीम के तहत ब्याज दर को 7.4 फीसदी से घटा कर सरकार ने 6.5 फीसदी कर दिया था। 

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वित्त मंत्रालय के इस फैसले पर अभी विरोध के स्वर उठना शुरू ही हुए थे कि अचानक सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया। अब बिजनेस टुडे की रिपोर्ट से एक बात स्पष्ट हो गई है कि सरकार ने वित्त मंत्रालय के फैसले को पलटने का फैसला पश्चिम बंगाल में होने वाले मतदान में भारी नुकसान होने की आशंकावश लिया था। हालांकि इस दावे के बीच सवाल यह भी उठता है कि जिस तरह से एनएसएसओ के बेरोज़गारी दर से जुड़े डेटा को लोकसभा चुनाव होने तक रोक लिया गया, क्या केंद्र सरकार ने इसी तर्ज़ पर ब्याज दरों में कटौती के फैसले को राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों तक के लिए टाल दिया है?