नई दिल्ली। किसान आंदोलन और कृषि कानूनों के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार के फैसले से भारतीय जनता पार्टी के एक नेता खुश हैं, तो दूसरे को ये फैसला सरकार के खिलाफ नज़र आ रहा है। ऐसे में किसकी बात को सच माना जाए? दरअसल हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बयान से लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उन्हें काफी राहत मिली है, जबकि केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत तो कर रहे हैं, लेकिन साथ ही उसे सरकार के खिलाफ भी बता रहे हैं।  

गेंद अब सुप्रीम कोर्ट के पाले में गई: खट्टर 

डेढ़ महीने से ज़्यादा वक्त से जारी किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों के सबसे ज्यादा निशाने पर रहे हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुकून दे रहा है। खट्टर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई कमेटी से काफी खुश हैं। उनका कहना है कि कमेटी बनाने से गेंद अब सुप्रीम कोर्ट के पाले में चली गई है, लिहाज़ा कोर्ट का निर्णय जो होगा वो सबको स्वीकार्य होगा। उनके बयान में अपने सिर से मुसीबत टलने वाला भाव नज़र आता है।

यह भी पढ़ें: नए कृषि कानूनों के समर्थक हैं सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी के चारों सदस्य

सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारे खिलाफ है: कैलाश चौधरी, कृषि राज्य मंत्री 

दूसरी तरफ केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी की नज़र में सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनकी यानी बीजेपी की सरकार के खिलाफ आया है। कैलाश चौधरी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हमारी इच्छा के विरुद्ध हुआ है, हम चाहते थे कि कानून यथावत रहें और होल्ड न हों। लेकिन इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सर्वमान्य है, इसलिए हम उसका स्वागत कर रहे हैं। 

यह भी पढ़ें: लोहड़ी पर कृषि कानूनों की प्रतियां जलाने का किसान संगठनों का एलान, समिति से नहीं करेंगे बात

मनोहर लाल खट्टर खुश और कैलाश चौधरी नाराज़ सुप्रीम कोर्ट के एक ही फैसले से हैं लेकिन, दोनों की नाराज़गी और खुशी का कारण अलग अलग है। खट्टर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से खुश हैं क्योंकि उनका मानना है कि अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में चली गई है। वहीं कैलाश चौधरी को कोर्ट का फैसला इसलिए रास नहीं आ रहा है क्योंकि कोर्ट ने अपने फैसले में कृषि कानूनों को होल्ड करने के लिए कहा है। 

दूसरी तरफ किसान संगठन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ज़रा भी संतुष्ट नहीं हैं। किसानों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों को फिलहाल होल्ड कर दिया है, जबकि वे इन कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने की मांग कर रहे हैं। और सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी से तो किसान पूरी तरह असहमत हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी में सभी सदस्य ऐसे हैं, जो कृषि कानूनों के मसले पर पहले से ही सरकार के पाले में खड़े हैं। किसान संगठन तो यहां तक कह रहे हैं कि सरकार अपने ऊपर से दबाव कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के ज़रिए यह समिति लेकर आई है।