नए कृषि कानूनों के समर्थक हैं सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी के चारों सदस्य

सुप्रीम कोर्ट ने कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसानों के मुद्दों और ज़मीनी हक़ीक़त को समझने के लिए चार सदस्यों की कमेटी बनाई है

Updated: Jan 12, 2021, 06:32 PM IST

Photo Courtesy : The Financial Express
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के अमल पर फिलहाल रोक लगा दी है। कोर्ट ने इन तीनों कानूनों पर किसान संगठनों की आपत्तियों को समझने और वास्तविकता का जायज़ा लेने के लिए चार सदस्यों की कमेटी भी बनाई है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई इस कमेटी के चारों सदस्य ऐसे हैं, जो पहले ही कृषि कानूनों के समर्थन में अपनी राय जाहिर कर चुके हैं या सरकार के सामने भी कानूनों के समर्थन की बात कह चुके हैं।  

कोर्ट की बनाई चार सदस्यों वाली इस कमेटी में भारतीय किसान यूनियन (मान) के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, कृषि अनुसंधान विशेषज्ञ प्रमोद कुमार जोशी, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और शेतकरी संगठन के अनिल घनवत शामिल हैं। भूपिंदर सिंह मान का संगठन उन किसान संगठनों में शामिल है, जिन्होंने 13 दिसंबर को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात करते कृषि कानूनों का समर्थन किया था। भूपिंदर सिंह मान ने खुद भी अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू से कहा था कि कृषि कानूनों को लागू करना चाहिए, लेकिन कुछ सुरक्षित उपायों के साथ। ऐसे में ज़ाहिर है भूपिंदर सिंह मान कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के समर्थन में नहीं हैं।

कमेटी के दूसरे सदस्य कृषि विशेषज्ञ प्रमोद जोशी तो खुलकर किसान आंदोलन का विरोध कर चुके हैं।15 दिसंबर 2020 को प्रमोद जोशी और ICRISAT के कंट्री डायरेक्टर अरबिंद के पंधी का फाइनेंशियल एक्सप्रेस में संयुक्त रूप से लिखा एक लेख छपा था। यह लेख ' Farm Laws: Bridging The Trust Gap' के शीर्षक से छपा था। लेख में तीनों कानूनों को किसानों के हित में तो बताया ही गया था लेकिन साथ ही किसान आंदोलन की भरपूर आलोचना की गई थी। 

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प्रमोद जोशी के इस लेख में कहा गया था कि कृषि कानूनों में कोई भी बदलाव उभरते वैश्विक कृषि अवसरों को प्रभावित करेगा। जोशी के लेख में किसान आंदोलन की आलोचना करते हुए लिखा गया था कि किसान संगठन लगातार सरकार के सामने अपनी मांगों को बदल रहे हैं। अब किसान संगठन सीधे कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर आमादा हो गए हैं। किसान संगठन कानूनों को रद्द करने की मांग ऐसी स्थिति में कर रहे हैं जब सरकार ने इन तीनों कानूनों के माध्यम से मार्केट को फ्री कर दिया है। 

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कमेटी के तीसरे सदस्य अशोक गुलाटी का भी कुछ ऐसा ही मानना रहा है। गुलाटी ने पिछले महीने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा था। जिसमें उन्होंने तीनों कृषि कानूनों का समर्थन किया था। गुलाटी ने लिखा था कि इन कानूनों की वजह से किसानों की आय बढ़ेगी और ग्राहकों को भी कृषि उत्पादों पर अपनी जेब से कम पैसे खर्च करने होंगे। गुलाटी ने अपने लेख में कानूनों का विरोध करने वालों को भ्रम का शिकार बताया था। ये सारी बातें वही हैं, जो मोदी सरकार भी कहती है। यानी गुलाटी और सरकार की राय मोटे तौर पर एक ही है। कमेटी के चौथे सदस्य अनिल घनवत और उनका संगठन शेतकरी संघटना भी मांग कर चुका है कि सरकार को कृषि कानून वापस नहीं लेने चाहिए। हां, अगर ज़रूरी हो तो उनमें कुछ संशोधन किए जा सकते हैं।  

ज़ाहिर है सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई कमेटी के चार सदस्यों में से एक भी ऐसा सदस्य नहीं है जो किसानों द्वारा की जा रही कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग का समर्थन करता हो। मध्य प्रदेश कांग्रेस ने समिति में सिर्फ कानून समर्थक सदस्यों को जगह दिए जाने पर सख्त एतराज़ जाहिर किया है।

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दूसरी तरफ डेढ़ महीने से ज़्यादा वक्त से सड़क पर बैठकर आंदोलन कर रहे किसान संगठन लगातार मांग कर रहे हैं कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले। ऐसे में सवाल यही उठता है जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई कमेटी के चारों सदस्य कृषि कानूनों के समर्थक हैं, तो क्या वे इस मसले पर एक निष्पक्ष राय दे पाएंगे? सवाल यह भी है कि जब उनका घोषित रुख आंदोलनकारी किसानों की मांग के पक्ष में नहीं, तो उनकी बातों पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को किस हद तक भरोसा होगा? 

ऐसी कमेटी किसानों के साथ न्याय कैसे करेगी: सुरजेवाला 

वहीं कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई कमेटी में शामिल सदस्यों के ऊपर सवाल उठाए हैं। सुरजेवाला ने कहा है कि ऐसी कमेटी किसानों के साथ न्याय नहीं कर सकती। न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक सुरजेवाला ने कमेटी में शामिल सदस्यों की मंशा पर सवालिया लगाते हुए कहा है कि 'सुप्रीम कोर्ट ने आज किसानों से बातचीत के लिए 4 सदस्यों की कमेटी बनाई है। कमेटी में शामिल 4 लोगों ने सार्वजनिक तौर पर पहले से ही निर्णय कर रखा है कि ये काले क़ानून सही हैं और कह दिया है कि किसान भटके हुए हैं। ऐसी कमेटी किसानों के साथ न्याय कैसे करेगी? '