नई दिल्ली। देशभर में कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व प्रेसिडेंट डॉ राजन शर्मा का बड़ा बयान सामने आया है। डॉ शर्मा ने साफ तौर पर कहा है कि साइंटिस्ट्स, एक्सपर्ट्स और डॉक्टर्स की अनदेखी देश के लिए भारी पड़ रही है। शर्मा ने बिगड़े परिस्थितियों को लेकर कहा है कि पिछले साल के अनुभवों से सीख न लेने, चुनाव के दौरान लापरवाही बरतने और धार्मिक आयोजनों पर रोक न लगाने का परिणाम देश को भुगतना पड़ रहा है।

देश के एक प्रमुख समाचार एजेंसी भाषा से बातचीत के दौरान डॉ शर्मा ने कोरोना से हुए मौतों को लेकर अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र की मोदी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार करार दिया है। साल 1999 से लेकर 2020 तक आईएमए के विभिन्न पदों पर रहे डॉक्टर शर्मा ने सीधे तौर पर कहा है कि देश में हेल्थ सेक्टर को सुदृढ करने के लिए घोषणाएं तो बड़ी-बड़ी की गयीं लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं किया गया। 

डॉ शर्मा ने पूछा है कि पश्चिम बंगाल में इतना लंबा चुनाव कराने की क्या आवश्यकता थी? उन्होंने कहा, 'चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया, हरिद्वार में व्यापक धार्मिक आयोजन कराए गए। आज देश इन्हीं सब का नतीजा भुगत रहा है।' शर्मा ने यहां तक कह है कि एक्सपर्ट्स की लगातार अनदेखी करना एक बहुत बड़ा जुर्म है।

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दूसरी लहर से निपटने के लिए केंद्र द्वारा उपयुक्त कदम उठाए गए या नहीं? इस सवाल का जवाब देते हुए डॉ शर्मा ने कहा, 'राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) है। इसका काम ही है महामारी से संबंधित शोध करना और महामारी को काबू करना। यहां स्मॉल पॉक्स समेत कई अन्य खतरनाक बीमारियों के वैक्सीन बनाए गए हैं। हिमाचल प्रदेश के कसौली में केंद्रीय अनुसंधान संस्थान है, जिसने कई महत्वपूर्ण रिसर्च किए हैं। यह सब एक दिन में नहीं हुआ था। देश में कोरोना फैले एक साल से ज्यादा हो गया लेकिन इन संस्थानों की मदद नहीं ली गई, यहां के एक्सपर्ट्स की अनदेखी की गई। हम अबतक सरकार को जगाने की ही कोशिशों में लगे हुए हैं।'

हमारे पास कोई योजना ही नहीं- डॉ शर्मा

भविष्य की चुनौतियों को लेकर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हमारे पास कोई योजना ही भविष्य के लिए कोई योजना ही नहीं है। पूर्व आईएमए चीफ ने कहा, 'अबतक एक हजार से अधिक डॉक्टर्स कोरोना के खिलाफ लड़ते-लड़ते अपनी जान गंवा चुके हैं। एक दिन में 50 डॉक्टरों की मौत हुई है। मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसिडेंट के के अग्रवाल तक को अपनी जानें गंवानी पड़ी। दरअसल, हमारे पास कोई योजना ही नहीं है। हमारे पास कोई नेशनल टास्क फोर्स नहीं है और न ही हम जिनोमिक्स अध्ययन करते हैं। हम वायरस के वैरिएंट्स का भी अध्ययन नहीं करते। हम किसी अच्छे मॉडल का अनुसरण तक नहीं करते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो विज्ञान, वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की अनदेखी देश को भारी पड़ रही है।'