कर्नाटक। भारत की प्रतिष्ठित पर्यावरण कार्यकर्ता और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सालूमरदा थिमक्का का शुक्रवार को निधन हो गया। 114 वर्षीय थिमक्का लंबे समय से अस्वस्थ थीं और उपचार के लिए बेंगलुरु के जयनगर अपोलो अस्पताल में भर्ती थीं। इसी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके परिवार ने पुष्टि बताया कि पिछले कुछ महीनों से उनकी तबीयत लगातार खराब थी।

थिमक्का का जन्म 30 जून 1911 को कर्नाटक के तुमकुरु जिले के गुब्बी तालुक में हुआ था। पर्यावरण संरक्षण में असाधारण योगदान के कारण उन्हें देशभर में वृक्ष माता और सालूमरदा (जिसका अर्थ है पेड़ों के पंक्ति की जननी) की उपाधि मिली। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर हुलिकल से कुदुर के बीच लगभग 4.5 किलोमीटर सड़क किनारे 385 बरगद के पौधे लगाए और जीवन भर उनकी देखभाल ऐसे की मानो वे उनके अपने बच्चे हों। यह सफर यहीं नहीं रुका, उन्होंने बाद में कुल मिलाकर 8000 से अधिक पौधे लगाए और अनगिनत वृक्षों की परवरिश भी की थी।

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अपने जीवन में उन्होंने कभी औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी लेकिन पर्यावरण संरक्षण को अपनी जीवन साधना बना लिया। निःसंतान होने के कारण आए भावनात्मक खालीपन को उन्होंने प्रकृति से रिश्ता जोड़कर भरा और पौधों को संतान की तरह पालना उनका जीवन का मिशन बन गया।

थिमक्का के असाधारण पर्यावरणीय योगदान को देश ने अनेक सम्मानों से नवाजा। उन्हें साल 2019 में पद्मश्री, 1995 में राष्ट्रीय नागरिक सम्मान, 1997 में इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार, 2010 में हम्पी विश्वविद्यालय का नादोजा अवॉर्ड, कर्नाटक राज्योत्सव अवॉर्ड तथा कुल 12 से अधिक बड़े पुरस्कार प्राप्त हुए। साल 2020 में कर्नाटक सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की थी।

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उनके निधन पर कर्नाटक के वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री सहित कई राष्ट्रीय नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने सोशल मीडिया पर लिखा, “थिमक्का का जाना प्रकृति के एक संरक्षक का जाना है। उन्होंने हजारों पेड़ लगाए और उन्हें बच्चों की तरह पाला। पर्यावरण के प्रति उनका प्रेम उन्हें हमेशा अमर रखेगा।” पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा, केंद्रीय मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी, उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार, पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा सहित कई मंत्रियों, सांसदों और विधायकों ने भी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि उनके जैसी मानवतावादी हस्ती का जाना देश की बड़ी क्षति है।

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थिमक्का हजारों लोगों के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने अपने जीवन का लगभग हर क्षण धरती को हरा-भरा बनाने में समर्पित किया। भले ही आज थिमक्का हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके लगाए वृक्ष और पर्यावरण संरक्षण की भावना आने वाली पीढ़ियों को हमेशा राह दिखाते रहेंगे।