नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच विवाद सुलझता नहीं दिख रहा है। आज आंदोलन के 23वें दिन भी लाखों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। इसी बीच किसान आंदोलन को उन महिलाओं का भी समर्थन मिल रहा है जिनके पति, बेटे या भाई ने कर्ज के बोझ से निराश होकर आत्महत्या की है। बताया जा रहा है कि खुदकुशी कर चुके 2000 किसानों की विधवाएं प्रदर्शन में शामिल हुई हैं। यहां उन्होंने अपने दिवंगत परिजनों की फ़ोटो दिखाकर कृषि कानून का विरोध दर्ज कराया।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, पंजाब के मालवा क्षेत्र से मंगलवार को करीब दो हजार महिलाएं 17 बसों और 10 ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में सवार होकर निकली थीं। इन महिलाओं को टिकरी बॉर्डर तक लाने का काम किसान संगठन, भारतीय किसान यूनियन (उग्रहण) ने किया था। फिलहाल ये प्रदर्शनकारी महिलाएं टिकरी बॉर्डर से 7 किलोमीटर दूर उग्रहण समूह के कैंप में ही रह रही हैं।

आंदोलन में शामिल होने के लिए इतनी ठंड में घर छोड़कर आईं महिलाओं का कहना है कि आज हम इसलिए यहां आएं हैं ताकि भविष्य में किसी अन्य महिला को हमारी तरह विधवा न होना पड़े, किसी और को जवान बेटे का शव फंदे से लटका न मिले या किसी बहन को अपना भाई खोना न पड़े। जिन महिलाओं ने टिकरी बॉर्डर पर आंदोलन में हिस्सा लिया है, वे ज्यादातर छोटे किसान परिवारों से हैं और उनके घर में सीमित जमीन है। ये महिलाएं मनसा, बठिंडा, पटियाला और संगरूर सहित पंजाब के अलग-अलग जिलों से आई हैं।

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प्रदर्शन में शामिल हुई 52 वर्षीय बलजीत कौर ने एक प्रमुख हिंदी अखबार को बताया कि साल 1999 में उन्होंने अपने पति गुरचरण सिंह को खो दिया था। उन्होंने कहा, 'हमारे पास तीन एकड़ की खेती थी। पति के ऊपर 5 लाख रुपए का कर्ज हो गया था और उन्हें अपनी छोटी बहन की शादी भी करनी थी। उन्होंने तनावपूर्ण स्थिति में आत्महत्या कर ली। हमारे बच्चे छोटे थे, हमने जमीन को किराए पर दिया फिर कुछ साल बाद बच्चा बड़ा हो गया तो वह खेती करने लगा। हमारे जैसे छोटे किसानों को इस कानून से सबसे ज्यादा खतरा है।' बलजीत को इस बात का डर है कि पति के जाने के बाद उनके जीवन में अब जो है कहीं वह भी न छिन जाए।

भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहण) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलान ने कहा कि हम इस ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं कि कैसे कर्ज में दबे पंजाब के किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। उन्होंने कहा, 'एक अनुमान के मुताबिक साल 2006 से अबतक पंजाब में करीब 50 हजार आत्महत्या की घटनाएं हुई हैं। यदि नए कृषि कानून लागू होते हैं तो किसान पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे और आत्महत्या की घटनाएं और बढ़ेंगी।