मध्‍य प्रदेश में एक बड़े प्रशासनिक फेरबदल का इंतजार किया जा रहा है। बड़ा यानी संख्‍या में अधिक अफसरों के फेरबदल का इंतजार लेकिन हुआ उल्‍टा। मुख्‍यमंत्री सचिवालय के मुखिया अफसर को ही बदल दिया। यह इस लिहाज से बड़ा बदलाव है क्‍योंकि मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव का यह फैंसला हैरत में डालने वाला है। ताजा फेरबदल में अपर मुख्‍यसचिव डॉ. राजेश राजौरा की मुख्‍यमंत्री सचिवालय से विदाई हो गई। यह विदाई चौंकाने वाली है क्‍योंकि डॉ. राजेश राजौरा मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव के विश्‍वस्‍त अफसरों में शुमार होते हैं। कुछ माह पहले ही मुख्‍यमंत्री के एक और करीबी अफसर सीएम सेक्रेटिरिएट में सचिव रहे आईएएस भरत यादव की अचानक विदाई हो गई थी। 

इस कारण मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सचिवालय में अफसरों का नहीं टिकना भी चर्चाओं में हैं। मुख्‍यमंत्री के सचिव भरत यादव और एसीएस डॉ. राजेश राजौरा के पहले प्रमुख सचिव राघवेंद्र सिंह और संजय शुक्ला पर भरोसा जताया गया था लेकिन फिर उन्‍हें भी यकायक हटा दिया गया था। 
इस बार डॉ. राजेश राजौरा का मुख्‍यमंत्री सचिवालय से जाना वैसा ही चौंकाने वाला है जैसा उनका मुख्‍य सचिव न बन पाना। मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव और एसीएस डॉ. राजेश राजौरा की जुगलबंदी को देखते हुए यह माना जा रहा था कि सितंबर 2024 में वे ही मुख्‍य सचिव बनाए जाएंगे लेकिन दिल्‍ली से आईएएस अनुराग जैन को मुख्‍य सचिव बना कर भेज दिया गया। इस पर मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने डॉ. राजेश राजौरा के अधिकार कम नहीं होने दिए। उन्‍हें मुख्‍यमंत्री सचिवालय का प्रमुख बना कर शक्ति संतुलन किया गया। 

अंदरखाने की खबर है कि वास्‍तव में यह शक्ति संतुलन हुआ नहीं था। अफसरों की टसल काम में बाधा बन रही थीं। यहां तक कि कुछ मामलों पर मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव और मुख्‍य सचिव अनुराग जैन के बीच भी कुछ मामलों पर असहमति की खबरें बाहर आईं। डॉ. राजेश राजौरा के हटने की यही वजह मानी जा रही है। अब एसीएस नीरज मंडलोई को सीएम सचिवालय में अफसरों का मुखिया बनाया गया है। सौम्य स्वभाव के नीरज मंडलोई पर जिम्मा है कि वे सीएम और सीएस के बीच अनुराग बढ़ाएं।

अगस्‍त में अनुराग जैन को रिटायर होना है। यदि केंद्र से उन्‍हें सेवावृद्धि नहीं मिली तो डॉ. राजेश राजौरा के मुख्‍य सचिव बनने के रास्‍ते खुले हैं। सेवावृद्धि मिलती है तो डॉ. राजेश राजौरा को अधिक इंतजार करना पड़ेगा। तब संभव है कि प्रशासनिक समीकरण कुछ और हो। ताजा बदलाव को इस समीकरण के तौर पर भी देखा जा रहा है। संभावना तो यही है कि सीएम डॉ. मोहन यादव के साथ डॉ. राजेश राजौरा की ऐसी ट्यूनिंग है कि सीएम उन्हें दोबारा पॉवर सेंटर बनाएंगे। कब? इसका जवाब अभी तो नहीं है। 

तीन आईएएस का झगड़ा, करप्ट कौन, बूझो तो जाने

पर्यावरण मंजूरी के लिए गठित एमपी स्‍टेट एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी (सिया) के अध्यक्ष रिटायर्ड आईएएस शिव नारायण चौहान और विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत कोठारी के बीच टकराव चरम पर पहुंच गया है। अध्यक्ष शिव नारायण चौहान ने प्रमुख सचिव नवनीत कोठारी सहित दो आईएएस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर एफआईआर की अनुशंसा की है। सिया अध्‍यक्ष शिवनारायण सिंह का आरोप है कि सिया की आखिरी बैठक 7 मई को हुई। तब से बैठक नहीं हुई।

सिया की सहयोगी स्टेट एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी (सेक) की लगातार बैठकें हो रही हैं। इसकी सदस्य सचिव आईएएस उमा महेश्वरी बैठकें करवा रही हैं। सिया अध्यक्ष शिवनारायण चौहान सदस्य सचिव को सिया की बैठक के लिए कई बार पत्र लिख चुके हैं। कई बार बैठक के स्थान व समय तय किए, पर बैठक नहीं हुई। नियमानुसार सिया को 45 दिनों में प्रकरण पर निर्णय करना जरूरी है। ऐसा न होने पर परियोजना को स्‍वीकृति मिल जाती है। ऐसे 237 प्रकरणों में सदस्य सचिव ईसी दे चुके हैं।

सिया अध्‍यक्ष पूर्व आईएएस शिवनारायण सिंह इसे भ्रष्‍टाचार का नमूना बता रहे हैं जबकि प्रमुख सचिव नवनीत कोठारी के अनुसार सबकुछ नियमानुसार हुआ है। सिया अध्‍यक्ष शिवनारायण सिंह चौहान ने इस मामले में सीएस अनुराग जैन को पत्र लिख कर पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत कोठारी और सिया की सदस्य सचिव उमा माहेश्वरी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश कर दी। इसके बाद जब सिया अध्‍यक्ष शिवनारायण सिंह चौहान कार्यालय पहुंचे तो उनके दफ्तर पर ताला लगा हुआ था। उन्होंने सीधे मुख्‍यमंत्री को शिकायत की। शिकायतों के बाद ताला खुला। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रमुख सचिव नवनीत कोठारी ने उनके कक्ष में ताला लगवाया था। ताला तो खुल गया लेकिन इसके बाद विवाद का पिटारा भी खुला हुआ है।

तीन आईएएस में से कौन सही है या गलत यह तो नियमों के अनुसार देखा जाएगा लेकिन 45 दिन बैठक न कर 400 से ज्‍यादा परियोजनाओं को स्‍वत: अनुमति देने का रास्‍ता साफ किया गया है तो यह एक गंभीर मामला है। अफसरों का विवाद को मुख्‍यमंत्री और मुख्‍य सचिव देख लेंगे लेकिन जिन परियोजनाओं को सिया के परीक्षण के बिना अनुमति मिल गई उनके लाभ-हानि का फैसला तो बाकी रह जाएगा। शायद, इस मामले में पता ही नहीं चलेगा कि तीन आईएएस अफसरों में आखिर करप्‍ट आईएएस कौन है?

सड़क पर गड्ढा, सरकार और सुशासन

हर बार बारिश में पानी भरने के कारण नगर निगम आलोचना के केंद्र में रहता है और बाद में सड़कों की खराब हालत को लेकर लोक निर्माण विभाग। लेकिन इस बार तो बारिश में ही लोक निर्माण विभाग यानी पीडब्‍ल्‍यूडी चर्चा में आ गया है। ग्‍वालियर, इंदौर के बाद अब भोपाल में भी सड़क पर 10 फीट से ज्‍यादा बड़ा गड्ढा हो गया। व्‍यस्‍ततम मार्ग पर सड़क के धंसने से कोई जन हानि नहीं हुई लेकिन यह विकास कार्यों की गुणवत्‍ता की पोल खुलने जैसा है। 
इसके पहले भोपाल में ब्रिज पर 90 डिग्री कोण से मोड़ बना देने के कारण पीडब्‍ल्‍यूडी विभाग की किरकिरी हो चुकी है। मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सख्‍त कदम उठाते हुए इंजीनियरों को सस्‍पेंड भी किया।

भोपाल का मामला शांत भी नहीं हो पाया था कि इंदौर का बिज चर्चा में आ गया। वहां एक ही ब्रिज पर 90 डिग्री कोण पर दो मोड़ बना दिए गए। मामला उजागर होने पर नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय अन्‍य विधायकों के साथ औचक निरीक्षण किया। जब मंत्री विजयवर्गीय ने अफसरों से पूछा कि यह डिजाइन तकनीकी रूप से सही है तो अफसरों को जवाब देते नहीं बना। अब डिजाइन सुधारने के निर्देश दिए गए है। 

सवाल तो यही है कि ऐसे काम हो क्‍यों रहे हैं? इस बारे में जब कांग्रेस ने सरकार को घेरा तो पीडब्‍लयूडी मंत्री राकेश सिंह ने कहा कि भोपाल की उस सड़क का निर्माण कांग्रेस सरकार में हुआ था। ये गड्ढे उसी के समय के हैं। मंत्री राकेश सिंह जवाब दे रहे हैं कि 2002 में यह सड़क सीपीए से पीडब्‍लयूडी को हस्‍तांतरित हुई थी। यह तो प्रशासनिक प्रक्रिया की बात हुई। अब तो इस सड़क का रखरखाव पीडब्‍ल्‍यूडी कर रहा है। अगर 20 साल बाद बाहर आ रहे इन गड्ढों में गिर कर किसी की जान चली जाती तो दोषी कौन होता?

कलेक्टर का थप्पड़, आवाज हुई, असर नहीं

पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह के साथ विवाद के कारण चर्चित हुए भिंड कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव एक बार फिर विवाद हैं। इस बार उनका एक वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में कलेक्टर संजीव श्रीवास्‍तव एक परीक्षार्थी को थप्पड़ मारते दिखाई दे रहे हैं। घटना एक अप्रैल 2025 की बताई जा रही है। स्नातक परीक्षाओं के दौरान नकल की शिकायतों पर कलेक्टर संजीव श्रीवास्‍तव पंडित दीनदयाल कॉलेज, लाड़मपुरा परीक्षा केंद्र का निरीक्षण करने पहुंचे थे। यहां एक छात्र पर नकल का शक होने पर किया था।

वीडियो उजागर होने के बाद कलेक्‍टर निशाने पर आ गए। मामला उछला तो छात्र ने शिकायत भी कर दी लेकिन फिर एफआईआर का आवेदन वापस ले लिया। छात्र ने कहा कि किसी ने दबाव में शिकायत करवाई थी। अब शिकायत वापस क्‍यों ली यह तो समझा जा सकता है लेकिन विपक्ष भी कलेक्‍टर पर कार्रवाई की मांग कर रहा है। सवाल यही है कि यदि छात्र नकल कर रहा था तो उस पर नियमानुसार कार्रवाई होनी थी। कलेक्‍टर थप्‍पड़ मार कर न्‍याय क्‍यों कर रहे हैं? वीडियो वायरल हो कर पुराना हो गया है लेकिन सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया है। साफ है कि थप्पड़ कांड की गूंज तो हुई लेकिन असर किसी पर नहीं हुआ।