यूं तो बुलडोजर न्‍याय असंवैधानिक और मानव अधिकारों के हनन की श्रेणी में आता है लेकिन भोपाल में कुछ समय से एक खास कॉलोनी में बुलडोजर चलाए जाने का इंतजार हो रहा है। यह कॉलोनी रिटायर्ड आईएएस जैसे रसूखदारों की है। इंतजार किया जा रहा है कि विवादों में नियम को ताक पर रख कर बुलडोजर न्‍याय की परंपरा कायम करने वाली सरकार नियम तोड़ कर बनाए गए अफसरों के बंगलों पर बुलडोजर कब चलाएगी।

कुछ माह पहले खबरें सामने आई थीं कि पूर्व मुख्‍य सचिव एसआर मोहंती, पूर्व अपर मुख्‍य सचिव आरएस जुलानिया सहित रसूखदारों ने कलियासोत डैम इलाके में स्थित पॉश सोसाइटी व्हिस्परिंग पाम्स में तय नियमों से कई गुना अधिक निर्माण कर लिया है। भोपाल मास्टर प्लान के अनुसार इस क्षेत्र में प्‍लाट के आकार का 6 प्रतिशत क्षेत्रफल में निर्माण की अनुमति है। लेकिन अफसरों ने पचास फीसदी से अधिक का निर्माण कर लिया है। इसके लिए सर्वेंट क्‍वार्टर, गैरेज जैसे प्रावधानों का सहारा लिया गया।

जब ये अवैध निर्माण सुर्खियों में आया तो कॉलोनी में आम लोगों के लिए प्रवेश ही रोक दिया गया। जब प्रशासन अपने अफसरों के निर्माण पर मूकदर्शक बना रहा तो हाईकोर्ट में शिकायत की गई। शिकायतकर्ता कलियासोत का क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील हैं। फिर भी यहां 50 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में निर्माण किया गया है। इससे न केवल मास्टर प्लान का उल्लंघन हुआ है बल्कि आसपास के जलस्रोतों और हरित क्षेत्र पर भी नकारात्मक असर पड़ा है। कॉलोनी में अवैध शॉपिंग मॉल का निर्माण भी किया गया है। इस पर जस्टिस विशाल मिश्रा की सिंगल बैंच ने नोटिस जारी किया है। सरकार को 24 नवंबर तक जवाब देना है। अब टाउन एंड कंट्री प्‍लानिंग और नगर निगम को इस निर्माण की वास्‍तविक स्थिति बतानी है।

2005 से लेकर अब तब भोपाल का मास्‍टर प्‍लान बनाने की कवायद कई बार हुई लेकिन आज तक मास्‍टर प्‍लान आया नहीं है। इस बीच कई प्रावधान बदले गए तो कई जगह मास्‍टर प्‍लान के विरूद्ध निर्माण भी कर लिया गया है। जब निर्माण पर आपत्ति होगी तो कह दिया जाएगा कि यह मास्‍टर प्‍लान नहीं था तो इसका दोष निर्माता का नहीं, सरकार का है। किसी विवाद या अपराध में झट से नियमों का हवाला देकर आरोपियों के पक्‍के निर्माण को अवैध बता कर तोड़ दिया जाता है। अब इंतजार किया जा रहा है कि भोपाल के बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में पूर्व आईएएस के निर्माण पर बुलडोजर चलेगा? या सरकारी अमला नियम कायदों में पेंच खोज कर अपने अफसरों को बचा लेगा।

आईजी से एसपी तक उलझे, घर के भेदी ने खोली पोल! 

हवाला के पैसों की डकैती मामले में मध्‍य प्रदेश पुलिस की जितनी बदनामी हुई अब जांच के तरीके पर भी उतने ही शक और सवाल उठ रहे हैं। सिवनी जिले में 8-9 अक्टूबर की दरमियानी रात पुलिसकर्मियों ने एक कार में से 3 करोड़ बरामद किए थे। हवाला के जरिए जा रहे पैसों को आधी रकम दे कर छोड़ दिया गया। लेकिन जब आधी रकम में से भी 25 लाख कम निकले तो व्‍यापारियों ने पुलिस में शिकायत कर दी। पुलिस अफसरों की शिकायत को स्‍थानीय पुलिस ने हलके में लिया लेकिन मीडिया में खुलासा होने के बाद मामला गर्मा गया। इसके बाद मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर एसडीओपी पूजा पांडे समेत 11 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर गिरफ्तार किया गया है।

इस मामले में नया मोड़ तब आया जब हवाला कारोबारी सोहनलाल परमार ने आरोप लगाया कि हिरासत के दौरान आईजी के इशारे पर पर उन्‍हें बेरहमी से पिटा गया है। सोहनलाल परमार के शरीर पर चोटों और मारपीट के निशान वाली तस्वीरें भी सामने आई हैं। सोहनलाल परमार ने आरोप लगाया है कि आईजी, सिवनी एसपी सुनील मेहता और जबलपुर एएसपी आयुष गुप्ता के नेतृत्व में दो पुलिसकर्मियों ने बुरी तरह पीटा।

सिपाही से लेकर आईजी तक संदेह को बढ़ा देने वाले इस मामले के खुलासे के पीछे भी बेवफाई की एक कहानी है। बताया जाता है, कार में अवैध पैसा जा रहा है इस सूचना पर पुलिस टीम जांच के लिए पहुंचा था। रुपए मिलने के बाद एक सिपाही को इस जांच टीम में से बाहर निकाल दिया गया। पुलिस अफसरों ने सोचा कि एक सिपाही को हटा देंगे तो बंटवारे में ज्‍यादा पैसे मिलेंगे। लेकिन बात मीडिया तक पहुंच गई और मामला बिगड़ गया। संदेह है कि मीडिया तक बात पहुंचाने का काम विभाग के ही किसी व्‍यक्ति ने कर दिया और फिर आगे का किस्‍सा सबको पता है।

ऑनलाइन शिकायत वाले दतिया में महिला को घसीटना

कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है कि एक बुरे कदम के चक्‍कर में अच्‍छी कवायद भी पिछड़ जाती है। दतिया जिला प्रशासन के साथ भी ऐसा ही हुआ। जनता की समस्‍या को हल करने के लिए दतिया प्रशासन ने नई पहल की। कलेक्‍टर की ओर से घोषित किया गया कि जिला प्रशासन के सोशल मीडिया अकाउंट के कमेंट बॉक्स में समस्याएं लिखी जा सकती है। उनके समाधान की ज़िम्मेदारी प्रशासन की है।

इस घोषणा को अच्‍छी पहल बताते हुए लोगों ने समस्‍याएं लिखनी शुरू कर दी थी। इसी दौरान एक वीडियो वायरल हो गया। यह वीडियो दतिया कलेक्ट्रेट परिसर में एक महिला को घसीट कर ले जाने का है। हुआ यूं कि अपनी समस्‍या हल होने से नाराज महिला ने आत्मदाह की धमकी दे दी। पुलिसकर्मियों ने महिला को काबू में कर घसीट कर बाहर निकाल दिया। महिला को घसीटे जाने के वक्त कलेक्टर स्वप्निल वानखेड़े स्वयं मौके पर मौजूद थे। महिला का आरोप है कि वह कई बार शिकायत कर चुकी है, लेकिन अधिकारी सुनवाई नहीं करते हैं। वीडियो में कलेक्टर की आवाज सुनाई दे रहे हैं कि यह मामला सिविल न्यायालय में विचाराधीन है, इसमें प्रशासनिक स्तर पर कोई हस्तक्षेप संभव नहीं है।

प्रशासनिक दृष्टि से बात सही हो सकती है लेकिन एक महिला आवेदक को घसीट कर बाहर निकालना उचित नहीं कहा जा सकता है। यह इस बात का भी सबूत है कि सोशल मीडिया तक तो ठीक है, व्यक्तिगत समस्याएं लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचना ऐसा अपमानजनक भी हो सकता है।

छुट्टियों की पॉलिटिक्‍स, जयंती जरूरी या त्यौहार

गणेश चतुर्थी पर अवकाश के बदले भोपाल में महानवमी के दिन 1 अक्‍टूबर का स्‍थानीय अवकाश घोषित करने की कलेक्‍टर की फाइल मंत्रालय पहुंची तो आपत्ति के साथ लौट आई। मुख्‍य सचिव अनुराग जैन ने यह कहते हुए लौटा दिया कि अक्‍टूबर माह में पहले ही बहुत छुट्टियां हैं। इस फाइल को लौटाने के बाद सीएस अनुराग जैन ने संकेत दिए कि उन्‍हें कर्मचारियों की ज्यादा छुटियां पसंद नहीं हैं। लगभग आधे साल छुट्टियां होती हैं, इस कारण काम प्रभावित होता है। भोपाल कलेक्‍टर की फाइल लौटाते हुए उन्होंने 5 डे वीक पर निर्णय लेने के लिए 4 आईएएस की कमेटी बना दी है। गृह विभाग, वित्त विभाग, राजस्व विभाग और सामान्य प्रशासन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की कमेटी प्रदेश में 5 डे वर्किंग को खत्म करने पर भी विचार कर रही है।

छुट्टियों को कम करने के सवाल पर कर्मचारियों की दूसरी ही राय है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि त्यौहार और 5 डे वीक की छुट्टियां खत्म करने की जगह जयंतियों की छुटियां कम की जानी चाहिए। त्‍यौहार पर छुट्टियां जरूरी है तो 5 डे वीक काम के तनाव को कम करने के लिए जरूरी है। जयंती की छुट्टियों पर ही कैंची चलाई जानी चाहिए।

सरकार के लिए कर्मचारियों की यह मांग मानना ही तो मुश्किल है। सरकार विभिन्‍न समूहों को खुश करने के लिए उनसे जुड़े किरदारों की जयंती व पुण्‍यतिथि पर अवकाश घोषित करती है। यानी, जयंती और पुण्यतिथियों की भी अपनी राजनीति है। ऐसे में यह देखना दिलचस्‍प होगा कि अफसरों की कमेटी कर्मचारियों के तनाव, त्‍यौहार आदि का ध्‍यान रखती है या राजनीतिक समीकरणों का।